Personality of the month

‘संगीत सुधा की स्वर लहरी में डूबी गहरी-गहरी’- ज्योत्स्ना जाजू

नागपुर निवासी ज्योत्स्ना जाजू संगीत के क्षेत्र की एक ऐसी विशिष्ट पहचान है, जो न सिर्फ अपनी सुर-लहरी से बल्कि अपने संगीत प्रशिक्षण से देश-विदेश में संगीत का जादू फैला रही हैं। विश्व के कई देशों में इनके शिष्य है, जो ऑनलाईन प्रशिक्षण ले रहे हैं, और जब वे भारत भ्रमण पर आते हैं तो प्रत्यक्ष भेटकर उनसे प्रशिक्षण प्राप्त करने को अपना सौभाग्य समझते हैं।

वर्तमान में ज्योत्सना जाजू संगीत की दुनिया में एक प्रतिष्ठित नाम बन गई है। उनकी मधुर आवाज व सुरताल के जितने भी मुरीद है उससे कम उनके संगीत प्रशिक्षण के भी नहीं। उनकी संगीत ‘बरखा आर्ट अकॅडमी’ को 32 साल पूरे हो चुके है और अपनी संगीत यात्रा में हजारो विद्यार्थियों को प्रशिक्षित कर चुकी हैं। कोरोना काल में जब संपूर्ण जीवन घर की चार दिवारी में थम गया था तब पति मनोज जाजू की प्रेरणा से ऑनलाईन संगीत प्रशिक्षण की शुरूआत की और कोरोना के बाद भी ये प्रणाली सबको सुविधाजनक होने के वजह से अविरल चल रही है।


अबोध अवस्था से शुरू संगीत यात्रा

श्रीमती जाजु का जन्म आर्वी (जि. वर्धा) में श्री सुंदरलाल एवं स्व. श्रीमती सरोजदेवी केला के यहाँ हुआ। आर्वी जैसे छोटे से गाँव में रहते हुए संगीत की शुरुआत अनजाने ही मात्र 3 वर्ष की उम्र में हुई और आज तक चल रही है। संगीत की 7 परीक्षाये सिर्फ 14 वर्ष की उम्र तक याने 9वी कक्षा तक पूर्ण हो गयी। अब आगे क्या? तो संगीत चलता रहे इसलिये सितार, दिलरूबा जैसे वाद्य भी सीखे। बीए में प्रायवेट संगीत विषय लेकर महारत हासिल की पर इतने में कहां मन संतुष्ट था आगे संगीत में एमए करने की चाह मे अमरावती अपने चाचाजी के यहाँ रह कर अपनी शिक्षा संपन्न की।


उच्च शिक्षा के प्रति दृढ संकल्प

श्रीमती जाजू अपनी इस सफलता का श्रेय अपने माता- पिता, बुआजी एवम् शत प्रतिशत अपने पति मनोज कुमार जाजु को देती हैं। जब आप एमए फायनल में थी उसी दौरान आपका विवाह नागपुर प्रतिष्ठित श्री लक्ष्मीनारायण जाजू के सबसे छोटे सुपुत्र मनोजकुमार के साथ हुआ। संयुक्त परिवार में समय व्यतित हो रहा था पर मन में संगीत रचा बसा चैन नही लेने दे रहा था। सो आगे की शिक्षा के लिये मुंबई प्रस्थान करने के लिये मनोजजी एवम् ससुरजी का विशेष प्रोत्साहन मिला और मुंबई प्रस्थान किया वहाँ चर्चगेट एसएनडीसी युनिवसिटी में 2 साल तक एमफिल (मास्टर ऑफ फिलॉसॉफी) इन म्यूजिक की डिग्री हासील की।

मुंबई का सफर इतना आसान नही था पर मन में लगन हो तो नामुमकीन भी मुमकीन हो जाता है। वहाँ जयपुर अत्रोली घराने की सुप्रसिद्ध गायिका स्व. पद्मावती शालीग्राम जिन्हे दादासाहेब फाल्के अर्वाड मिला हुआ उनसे संगीत सिखने का अवसर प्राप्त हुआ और कॉलेज में प्रख्यात गायिका सुश्री प्रभाताई आत्रे से मार्गदर्शन मिला। ये जीवन में मिली संगीत की सुवर्णसंधी थी। एमफिल के बाद जीवन में इनकी बिटिया बरखा रानी आयी। बस यहीं से फिर नागपुर प्रस्थान हुआ।

क्योंकि बच्चों को परिवार का प्यार मिले पर साथ में जॉब की खुशखबरी भी मिली, यवतमाल में अमोलकचंद सिनियर कॉलेज में। पर नौकरी में मन नही लगा क्योंकि संगीत को लेकर मन में कुछ अलग कल्पना थी तो जॉब में लिमिटेशन थे। इसलिये फिर से नागपुर आ गये। फैमिली बढ़ी बेटा आया। दो बच्चों को प्रोफेशन के साथ संभालना आसान न था।


फिर लिया जीवन ने नया मोड़

दिल्ली की एमएमवी म्यूजिक कम्पनी के साथ कॉन्ट्रैक्ट साइन किया पर उस समय नागपुर में बच्चों को अकेले छोड़कर दिल्ली बार-बार जाना थोड़ा मुश्किल हो रहा था। अपने कॅरियर के लिये बच्चों की जिंदगी से समझौता उन्हें मंजूर नही था। तब तय किया कि जीवन में संगीत रहना जरूरी है फिर तरीका कोई भी अपनाया जा सकता है वो दिन आपके जिंदगी का टर्निंग पाईंट था। बस यहीं से टीचिंग में आ गई।

मनोजजी चाहते थे कि आप अकॅडमी शुरू करो बस नयी राह नयी चाह शुरू हो गयी। मात्र एक स्टूडेंट से धरमपेठ नागपुर में क्लास स्टार्ट की माँ सरस्वती की कृपा से आज 100 स्टूडेंट हैं। 25-25 साल से स्टूडेंट अभी तक जुड़े हुए हैं। आज भी वे हिंदू त्योहार के अनुसार भजन, गीत खुद कंपोज करके सिखाती हैं। उनका एक अनुठा स्टाइल है जिसमें भजन के साथ, शास्त्रीय संगीत की पकड़ मजबूत है।

संगीत सिखने की कोई उम्र नही होती आप जब सोचो संगीत सिखना स्टार्ट कर सकते है। अकॅडमी में 3 साल से लेकर 80 साल तक के विद्यार्थी सिखते है। ज्योत्सनाजी का पंच वाक्य है ‘जो बोल सकता वो गा सकता’ तराशने वाला चाहिये। वे वॉईस डेवलपमेंट पर भी काम कर रही है। भविष्य में अपने संगीत कों थेरेपी के रूप में स्थापित करना चाहती है।


संगीत की दुनिया में बिखेरी सुर-लहरी

श्रीमती जाजू ने अपना पूरा जीवन संगीत को समर्पित कर दिया। 20 साल तक आकाशवाणी केंद्र नागपुर में अपनी प्रस्तुति दी। नेशनल टीवी, संस्कार टीवी पर भी भजन, गीत, गजल की प्रस्तुति दी। नाम संकीर्तन, कोशिश-ए-ग़जल, ब्याह रो चाँव पार्ट 1, पार्ट 2, आज राधा गोविंद बनी, भजन श्रृंखला भी तैयार की, जो संगीत रसीको में अत्याधिक लोकप्रिय हुई।

यही नही रुकता ‘श्री माहेश्वरी टाईम्स’ ने समाज में प्रथम बार श्री महेश वंदना को संगीतमय सीडी के रूप में वर्ष 2013 में कम्पोज करवाया, जिसमें श्रीमती जाजू ने अपनी सुमधुर आवाज दी है। यह ऑडियो सीडी पूरे भारत वर्ष में अत्यंत लोकप्रीय हुई। इसके साथ ही इनके द्वारा कंपोज किया, स्वागत-गीत इनकी मधुर आवाज में समाज में आकर्षण का केंद्र है।


Related Articles

Back to top button