Mulahiza Farmaiye
मुलाहिजा फरमाइये- जुलाई 2020
पढ़िए जुलाई 2020 का मुलाहिजा फरमाइये हमारे इस स्तम्भ में
जनाब घायल तो यहां एक परिंदा है।
अगर फिर से जो उड़ सका वही जिंदा है।
कुछ तो अलग गुनाह किये होंगे हमने मिलकर,
कि हाथ गंगाजल के बजाय मदिरा से धोने पड़ रहे है!!
मैं चुपके से टूटा था
गिरता तो शोर हो जाता
कभी खुद से भी रूबरू हो ए नादान
क्या पत्थरों में ईश्वर को ढूंढता फिरता है
पत्थर सा बदनाम हूं साहब अपने शहर में
आईना कहीं भी टूटे नाम मेरा ही आता है
आजमाना अपनी यारी को पतझड़ में मेरे दोस्त
सावन में तो हर पत्ता हरा नजर आता है
मेरे ऐबों को तलाशना बंद कर देगें लोग…
मैं तोहफे में अगर उन्हें आईना दे दूं…
उड़ान वालों उड़ानों पर वक्त भारी है
परों की नहीं अब हौसलों की बारी है
थोड़ा रहम कर ए जिंदगी कुछ संवर जाने दे
तेरा अगला ज़ख्म भी सह लेंगे पहले वाला भर जाने दे
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