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कोरोना काल में भी बने कोरोना योद्धा- मुरलीधर सारडा

पर्यावरण संरक्षण तथा अंतिम यात्रा में आने वाली परेशानी से सम्बंधित परिवार को बचाने के लिये प्रारम्भ ‘‘स्वर्गारोहण सीढ़ी’’ प्रदान करने का पुणे निवासी वरिष्ठ 71 वर्षीय मुरलीधर सारडा का प्रयास एक अभियान बन गया, जिसमें अब 200 सीढ़ी प्रदान करने का लक्ष्य बन गया है। श्री सारडा का यह योगदान कोरोनाकाल में भी सतत जारी रहा जिसके लिये उन्हें ‘‘कोरोना योद्धा’’ के सम्मान से भी नवाजा जा चुका है।

वरिष्ठ समाजसेवी के रूप में पहचान रखने वाले पुणे निवासी 71 वर्षीय मुरलीधर सारडा ने वर्ष 2019 में पहली स्वर्गारोहण सीढ़ी निगड़ी स्थित श्मशान भूमि में अपने बड़े भाई स्व. श्री द्वारकादास सारड़ा के पुण्य स्मरण में समर्पित की। इनकी कुछ नया करने की सोच और जोश को पुणे जिल्हा माहेश्वरी प्रगति मंडल और महेश सांस्कृतिक मंडल पिंपरी-चिंचवड़ ने बढ़ावा दिया। धीरे-धीरे यह अभियान बन गया।

वर्तमान में श्री सारडा के मार्गदर्शन में 30 स्वर्गारोहण सीढ़ी का लोकार्पण पूना, तलेगांव तथा जालना में अलग अलग मुक्तिधाम में किया गया और 20 सीढ़ी का लोकार्पण सितम्बर के अंत तक इंदौर के अन्नपूर्णा क्षेत्र माहेश्वरी समाज मंडल द्वारा इंदौर स्थित अलग-अलग मुक्तिधाम में श्री सारडा के मार्गदर्शन में किया जा रहा है।


कोरोना काल में सहयोगी बना अभियान

स्वर्गारोहण सीढ़ी की उपयोगिता सर्वाधिक कोरोना काल में सभी समाज बंधुओं को समझ आयी। किसी व्यक्ति की मृत्यु के बाद बांस की सीढ़ी बनाने के लिए एक अनुभवी व्यक्ति की आवश्यकता होती है, लेकिन कोरोना काल में वरिष्ठ और अनुभवी लोग अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सके।

इसे ध्यान में रखते हुए उनके द्वारा स्वर्गारोहण सीढ़ी स्टील की बनाई जा रही है और इसकी खासियत यह है कि इसे मोड़ा जा सकता है। इसे दुपहिया वाहन पर भी आसानी से एक अकेला आदमी भी ला-लेजा सकता है और विशेष रूप से, यह पर्यावरणीय हानि को कम करने में भी मदद करती है। साथ ही सीढ़ी के सामान पर होने वाला 700 रुपये का खर्च कुछ परिवारों का कम करके, उनको आर्थिक हानि से भी बचाती है। उन्हें 2022 के अंत तक 200 सीढ़ी का लक्ष्य पूरा करना है और हर गांव- शहर को इस कार्य से जोड़ना है। इस योगदान के लिये समाज द्वारा श्री सारडा को महेश नवमी पर्व पर ‘‘कोरोना योद्धा’’ की उपाधि से भी नवाजा जा चुका है।

बचपन से मिले सेवाभावी संस्कार

श्री सारडा का जन्म 15 नवम्बर 1950 में शिरूर पुणे में श्री किसन सारड़ा व श्रीमती चंद्रभागा सारडा के यहाँ हुआ। दुर्भाग्य से 8 वर्ष पश्चात वर्ष 1958 में ही माँ का देहावसान हो गया। ऐसे में सेठ शोभाचंद बाफना तथा सेठ धाड़ीवाल ने पूरे परिवार को सहारा दिया। आप 6 भाईयों में सबसे छोटे थे। अत: बड़ी भाभी का ही माँ की तरह स्नेह प्राप्त हुआ। फिर जीवन को समाजसेवी धर्मपत्नी श्रीमती रत्नमाला का साथ मिला। बी.कॉम. की पढ़ाई पूर्ण भी नहीं कर पाये थे कि आपको पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण आजीविका की ओर अग्रसर होना पड़ा।

तीन बहनों का स्नेह भी प्राप्त हुआ

वर्ष 1973 में जीजाजी श्री किसन राठी उन्हें काम की तलाश में पुणे लेकर आये तो उनकी कर्मभूमि ही धीरे-धीरे पिंपरी-चिचवड (पुणे) बन गई। वर्तमान में आपके परिवार में दो विवाहित पुत्री वनिता दरगड़ (पुणे) तथा रेशमा जाखेटिया (जलगांव) तथा पुत्र सुशील सारडा का पौत्र-पौत्री, नौती-नातिन आदि से भरापूरा परिवार शामिल है। श्री सारडा पुणे में राठी इंजीनियरिंग तथा टेल्को (टाटा मोटर्स) में वर्ष 2000 तक सेवारत रहकर सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

समाजसेवा में सदैव सक्रिय

श्री सारडा वर्ष 1978 से समाज के प्रति समर्पित हो गये। उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर पिंपरी चिंचवड माहेश्वरी समाज की स्थापना की और ये संस्थापक के रूप मे उभर कर सामने आये। इसके साथ ही आप संस्थापक-महेश सांस्कृतिक मंडल पिंपरी चिंचवड, कार्याध्यक्ष-महेश सांस्कृतिक मंडल पिंपरी चिंचवड, सलाहकार-संस्थापक महेश सांस्कृतिक मंडल पिंपरी चिंचवड, कार्यकारणी सदस्य-महाराष्ट्र प्रदेश माहेश्वरी समाज तथा उपाध्यक्ष-पुणे जिल्हा माहेश्वरी प्रगती मंडल पुणे के रूप में सेवा दे चुके हैं।

1990 में मित्रों सतीश सोमाणी, शिरीष माणुधने, अशोक जाखेटिया आदि के साथ मिलकर सामाजिक उद्देश्य से श्री मंगल केंद्र (बर्तन किरायेपर देने की सुविधा) की नींव रखी। इसमें सभी समाज को सामाजिक कार्य हेतु नि:शुल्क बर्तन दिये जाते हैं। इस संस्था को 31 साल पुरे हो चुके है। श्री सारडा की धर्म पत्नी रत्नमाला सारडा का इसमें बहुत बड़ा योगदान है।


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