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पीड़ित मानवता के मसीहा- नरसिंगदास मंत्री

जरूरतमंद रोगियों व उनके परिजनों के सामने आर्थिक परेशानी के कारण यह स्थिति किसी ऐसी विपदा से कम नहीं होता, जिसके सामने वे अपने आपको असहाय महसूस करते हैं। ऐसे रोगियों को यदि इस स्थिति में किसी का अपनत्वभरा सहारा व सहयोग मिल जाऐ तो सहयोगकर्ता उनके लिये किसी मसीहा से कम नहीं होता। नागपुर निवासी नरसिंगदास मंत्री एक ऐसे ही मसीहा हैं, जिन्होंने नि:स्वार्थ भाव से मानवता की सेवा की लगभग 23 वर्ष पूर्व शुरुआत की थी और उनकी यह सेवा उम्र के 84वें पड़ाव पर भी अनवरत जारी है।

नागपुर जैसे महंगे शहर में मध्यभारत के हजारों लोग विविध बीमारियों का इलाज कराने आते हैं। ऐसे गरीब जरूरतमंद सहित सभी वर्गों की सुविधा के लिए समाजसेवी नरसिंगदास मंत्री टेकड़ी रोड माहेश्वरी भवन के पीछे सीताबर्डी में 70 बिस्तरों वाले राधाकृपा अतिथिगृह का संचालन अतिथि देव भव की भावना को ध्यान में रखकर कर रहे हैं।

यहां धर्मार्थ दवाखाना भी है जहां निःशुल्क व बहुत ही कम शुल्क में विविध जांच व इलाज की सुविधा भी उपलब्ध है। व्यापार में सफलता का परचम लहराने के पश्चात नरसिंगदास मंत्री ने समाज के प्रति अपना दायित्व निभाने का ऐसा रास्ता चुना जो नागपुर ही नहीं बल्कि मध्यभारत में समाज के लिए एक मिसाल बन गया है। इतना ही नहीं वे नि:शुल्क चिकित्सालय तो वर्ष 2000 से ही संचालित कर रहे हैं।


नरसिंगदास मंत्री का जन्म मध्यप्रदेश के हरदा गांव में हुआ लेकिन उनकी संपूर्ण शिक्षा नागपुर में हुई। कला निकाय में उन्होंने ग्रेज्युएशन किया और फिर नौकरी में लग गए। वर्ष 1962 से 1984 तक वे नौकरी करते रहे फिर सोचा खुद के भरोसे कुछ खास किया जाए अन्यथा नौकरी करते ही जीवन बीत जाएगा। नौकरी छोड़ी और कारोबार में उतर गए। सफलता दर सफलता पायी और उन्हें अपने समाज के लिए कुछ करने की इच्छा जागृत हुई।

उन्होंने महसूस किया कि नागपुर शहर देश के मध्यम बसा होने के कारण मध्य भारत से लोग इलाज कराने आते हैं लेकिन महंगा शहर होने के कारण मरीजों की विविध जांच, अस्पताल खर्च, दवा खर्च के साथ ही रहने का खर्च बहुत अधिक होता है। गरीब-मध्यम वर्ग के परिवार यह खर्च उठाने में समर्थ नहीं होते लेकिन अपने परिवार के सदस्य का इलाज कराने के लिए घर-जमीन तक गिरवी रख दिया करते हैं।

नरसिंगदास मंत्री ने ऐसे लोगों की मदद की योजना बनाई। अपने कुछ समविचारी साथियों को साथ लेकर श्री मंत्री ने चेरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की। नागपुर के सीताबर्डी में उन्होंने मरीजों के लिए एक धर्मार्थ दवाखाना भी शुरू किया। धीरे-धीरे यहां इलाज के लिए आने वालों की संख्या बढ़ने लगी।


श्री मंत्री ने जब देखा कि यहां अन्य अस्पतालों में इलाज कराने आने वाले मरीजों को रहने में तकलीफ होती है तो उन्होंने राधाकृष्ण अतिथिगृह के नाम से एक विश्रामगृह 8 मार्च 2009 को शुरु किया। इस अतिथिगृह का मूल उद्देश्य ही अतिथि देवो भवः रखा गया। कुछ समय पूर्व ही इसकी चौदवीं वर्षगांठ हो चुकी है। इस विश्रामगृह में 25 अटैच कमरे हैं। 11 कमरों में एसी की सुविधा है। 12 बेडवाला एक हॉल भी है।

यहां पर खानपान की भी सुविधा मरीजों तथा उनके परिजनों के लिए उपलब्ध है। मरीजों को मूलभूत वैद्यकीय सेवाएं उपलब्ध हों इसलिए धर्मार्थ दवाखाना (ओपीडी) भी सुसज्जित किया गया है। मरीजों को निःशुल्क दवाएं व निदान उपलब्ध कराये जाते हैं। सभी प्रकार की जांच किफायती दरों पर की जाती है। अभी वर्षों में लाखों मरीजों ने इस सेवा का लाभ उठाया है।


श्री मंत्री ने ठान रखा है कि वे अपना पूरा जीवन समाज की सेवा में समर्पित कर देंगे। यही कारण है कि जीते जी तो वे अपने साथियों के साथ ट्रस्ट बनाकर लोगों की सेवा कर ही रहे हैं। मरणोपरांत भी उन्होंने अपनी आंखें और देहदान का संकल्प लिया है, मतलब यह कि मृत्योपरांत भी उनकी आंखों से दो नेत्रहीनों को इस प्यारी दुनिया का दीदार करने को मिलेगा और उनका देहदान निश्चित रूप से समाज की भलाई के काम आएगा।

वे चाहते हैं उनकी देह मेडिकल शिक्षा हेतु और नेत्र जरूरतमंद को मिले। 84 वर्षीय नरसिंगदास आज स्वार्थ लिप्सा व अवसरवाद के दौर के बीच रहकर भी अनजान मरीजों की सेवा कर जिदंगी का सच्चा सुख पा रहे हैं। धर्मपत्नी पुष्पादेवी इनका कदम से कदम मिलाकर साथ दे रही हैं।

माहेश्वरी समाज की सेवा गतिविधियों के अंतर्गत नागपुर में निर्मित माहेश्वरी भवन में भी श्री मंत्री का सहयोग रहा है। उनकी योजना में कन्या छात्रावास का निर्माण भी शामिल है। श्री मंत्री समाजसेवियों को प्रेरित करते हुए कहते हैं कि सेवा संस्था या भवन तो लोग बना लेते हैं, लेकिन उन्हें सतत रूप से चलाना बड़ी बात है।


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