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निज पर शासन-फिर अनुशासन

अनुशासन अर्थात् प्रबंधन एक ऐसी कला है, जो हमें सफलता की राह दिखाती है। लेकिन यह अनुशासन तब तक सम्भव नहीं जब तक निज अर्थात स्वयं पर अनुशासन न हो।

प्रकृति ने प्रत्येक मनुष्य को तीन साधन से संपन्न किया है। मन, वाणी और शरीर। मन से व्यक्ति सोचता है, वाणी से बोलता है और शरीर से कर्म करता है। ये तीनों साधन अगर संयम और आत्मनियंत्रित हैं तो ऐसा कोई कार्य नहीं है जो मानव की पहुंच के बाहर है या यूं कहा जाए कि मनुष्य को श्रेष्ठता प्राप्त करने के लिए इन तीनों पर नियंत्रण पाना बहुत आवश्यक है। शरीर, इन्द्रियों, वाणी और मन को वैâसे नियंत्रित किया जाए इस बात पर विशेष ध्यान देना आवश्यक है। अनुशासन का जीवन में उतना ही महत्व है जितना जीवन जीने के लिए आहार की आवश्यकता होती है।


किसी भी व्यक्ति में कार्यकुशलता जन्म से नही आती बल्कि किसी कार्य को करने का सही समय, लक्ष्य और आत्म नियंत्रण ही उसकी सफलता की कुंजी है। अगर हम संकल्प कर ले और सभी कार्यों को करने का एक समय निश्चित करके उसके विषय में सानुकुल समय सारणी बनाकर कार्य करें तो निश्चित ही हमें जीवन में सफलता प्राप्त होगी ही। लेकिन आज मोबाईल और कंप्यूटर के युग ने आने वाली पीढ़ियों को समय के महत्व को समझने से अनभिज्ञ कर दिया है।

बच्चे लम्बे समय तक मोबाईल पर समय देने लगे जिससे उन्हें कई विपत्तियों का सामना करना पड़ सकता है। अगर हमारी आने वाली जनरेशन समय रहते अपने जीवन को अनुशासित नही करती है तो ये हम सभी के लिए एक विकट परिस्थिति का निर्माण कर रहे हैं। दुनिया को जीतने के लिए पहले हमें खुद को जितना होगा। विनम्रता, सहिष्णुता और इन्द्रियों पर नियंत्रण ये तीन सूत्र हम अपने जीवन में अपनाते हैं तो अभ्यास द्वारा हम आत्मअनुशासन द्वारा प्रगति कर सकते हैं।

जो ध्येय हमें जीवन में पाना है उसके लिए आत्मानुशासन बहुत आवश्यक है। आत्मानुशासन मतलब अपनी इन्द्रियों पर अनुशासन, अपनी वाणी पर अनुशासन, अपने मन पर अनुशासन है। जिस व्यक्ति ने इन सभी पर नियंत्रण कर लिया वह किसी भी मुश्किल से मुश्किल राह को भी पाने में समर्थ और शक्तिमान है। निज पर शासन फिर अनुशासन यानि पहले खुद पर अनुशासन और शिष्टता का पालन करने वाला ही दूसरों पर शासन कर सकता है।


जैसे अगर हम अपनी आने वाली पीढ़ी को कोई पथ निर्देशित करते हैं तो पहले हमें स्वयं को उसे अपनाना होगा, क्योंकि ज्यादातर बच्चे अपने माता-पिता का अनुसरण करते हैं। इसीलिए हम सभी को मिलकर जीवन में कई अनुशासन और शिष्टता अपनानी होगी, जिससे आने वाली पीढ़ी भी उनका पालन कर सके। अनुशासित जीवन के लिए हम सभी को संकल्प लेना होगा।

‘‘प्रकृतिः अपि ईश्वरस्य अनुशासने तिष्ठति। यः नरः पूर्णतया अनुशासन पालयति सः स्वजीवने सदा सफलः भवति। अतः अनुशासनस्य पालनं जीवने बहु आवश्यकं भवति।’’


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