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भावी पीढ़ी के लिए धन-संचय करना उचित अथवा अनुचित?

बीसवीं सदी के माता-पिता अपने बच्चों के भावी भविष्य के लिए धन संचय करते हैं। इसके लिए माता-पिता अपनी जरूरतों में कटौती भी करते हैं। अपने बच्चों को पढ़ा-लिखाकर अपने पैरों पर खड़ा होने के काबिल बनाने के पश्चात भी उनके लिए पाई-पाई जमा करते रहते हैं। इसके लिए उन्हें अपनी इच्छाओं को मारना भी स्वीकार होता है। जबकि इक्कीसवीं सदी की युवा पीढ़ी की सोच अलग है। वह सिर्फ खुद के लिए जीना चाहती है। वर्तमान का आनंद लेना चाहती है। भविष्य के लिए धन-संचय में उनकी रुचि ना के बराबर होती है। बच्चों को पढ़ा-लिखाकर काबिल बनाना उनका भी मकसद है, पर बच्चों के लिए पूंजी जमा करना उनकी सोच में नहीं होता।

ऐसे में विचारणीय हो गया है कि भावी पीढ़ी के लिए धन-संचय करना कितना उचित है अथवा अनुचित? आइये जानें इस स्तम्भ की प्रभारी सुमिता मूंदड़ा से उनके तथा समाज के प्रबुद्धजनों के विचार।


संतान को काबिल बनाना ज्यादा जरूरी
सुमिता मूंधड़ा, मालेगांव

सुमिता मूंधड़ा

हम अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर काबिल बनाने के लिए अनेकानेक समझौते करते हैं। बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए अपने शौक और अपनी इच्छाओं को भी भूल जाते हैं। इतना ही नहीं बच्चों के लिए धन-संचय करने के लिए भी जी-तोड़ कोशिश करते हैं अर्थात अपना वर्तमान ही नहीं अपना भविष्य भी अपने बच्चों के भविष्य के ऊपर न्यौछावर कर देते हैं।

अपने बुढ़ापे और विकट परिस्थितियों के लिए धन संचय करना उचित है पर बच्चों को जिम्मेदार बनाने के पश्चात भी भावी पुश्तों के लिए स्वयं की इच्छाओं का दमन करते ही रहना सर्वथा अनुचित है। शायद यही वजह है कि आज अधिकांश युवा माता-पिता की जिम्मेदारी उठाने से कतराते हैं, सिर्फ अपनी मौज-मस्ती और आनंद में अपनी सारी कमाई उड़ाते हैं और जब कोई अनचाहा खर्च आ जाये तो माता-पिता की जमा-पूंजी पर अपना अधिकार जताते हैं।

इतना ही नहीं अधिकांश युवा तो अपने भविष्य के बड़े खर्चों को भी माता-पिता के मत्थे मढ़ने की जुगत लगाते रहते हैं। माता-पिता भी बच्चों की खुशियों के लिए जीवनभर पीसने को तैयार रहते हैं जो उनकी सबसे बड़ी भूल है।

अपनी आधी उमर तो परिवार के ऊपर न्यौछावर कर दी है, अब बच्चों को काबिल बनाने के पश्चात माता-पिता को अपने निजी जीवन को सजाना, संवारना और निखारना चाहिए। अपनी इच्छाओं को पूरा करते हुए आनंदमय जीवन जीना चाहिए। बच्चों को आय के अनुसार धन-संचय और व्यय पर नियंत्रण करना सिखाना चाहिए। यह भी आत्मनिर्भरता का एक महत्वपूर्ण पाठ है।


सिर्फ पीढ़ियों के लिए धन संचय अनुचित
विनीता काबरा, जयपुर

हमारी संस्कृति में धन का संचय करने की परंपरा रही है। इसके पीछे हमारे बुजुर्गों के तर्क भी सही हैं कि मुसीबतें कभी बताकर नहीं आती हैं। इसलिए भविष्य की सुरक्षा के लिए धन का संचय हमेशा से उचित ही माना गया है। हमारी धन का संचय करने की प्रवृत्ति के कारण कोरोना महामारी में जहां विश्व के सारे देश अर्थव्यवस्था के बुरे दौर से गुजर रहे थे, उस समय हमारा देश इसी संचय करने की प्रवृत्ति के कारण जल्दी उबर गया।

जब विश्व में आर्थिक मंदी छाई हुई थी तब भी हमारे देश को कोई खास नुकसान नहीं हुआ था। आराम से गुजर बसर होने के बाद बचे धन का संचय ही उचित है। अपव्ययता समाज में अराजकता ला देती है। धन का अनर्गल अपव्यय समाज में संतुलन बिगाड़ कर भावी पीढ़ियों का भविष्य अंधकार में धकेल देता है।

धन का संचय हमेशा पीढ़ियों के लिए करें, यह जरूरी नहीं है। समाज के उत्थान, जरूरतमंदों की मदद व दान पुण्य के लिए धन का संचय करके हम हमारी पीढ़ियों को धन का उचित उपयोग व संस्कार भी दे सकते हैं। हमारी आज की युवा पीढ़ी सिर्फ वर्तमान में जीने में विश्वास के चलते ‘खाओ, पियो और मौज करो’ वाली जीवन शैली पर चल रही है।

वर्तमान में जीना सही है लेकिन भविष्य का कुछ पता नहीं होता तो धन का संचय करना जरूरी है। लेकिन मितव्ययिता में जीवन यापन करके सिर्फ आने वाली पीढ़ियों के लिए धन का संचय करना भी गलत है। अगर हम अपनी पीढ़ियों को कुशल व काबिल बनाएंगे तो उनको इस संचित धन की कोई जरूरत नहीं रहेगी। अगर वो अपव्ययी व लक्ष्मी का अनादर करने वाले होंगे तो उनके लिए कितना भी धन संचित कर लो कम ही रहेगा।


स्वयं की आवश्यकता की पूर्ति भी जरूरी
विठ्ठल दास सोनी ‘शाम’, सोलापुर

‘जो कपूत तो क्युं धन संचे…’ यह कहावत पुरानी हो पर आज भी यह उतनी ही सार्थक लगती हैं। आज की पीढ़ी कुछ नयी सोच रखती हैं। और अपने और बच्चों पर भी खर्च करते हैं, धन संचय करना चाहते हो तो आपकी संतान उसे बढ़ाने के बजाय खर्च करने में दिलचस्पी रखने वाली ही रह सकती है।

क्योंकि आजकल कि युवा पीढ़ी में यही मानसिकता है। दूसरे यदि जमा-पूंजी होगी तो वह आलसी, नाकारा व निरुद्देशी बन सकती हैं।

धन संचय के बजाय आप उन्हें अच्छे संस्कारों की पूंजी दें ताकि वे अपने जीवन में धन कमाने में सफल रहें। फिर भी अगर कोई चाहे तो संचय करें अपनी इच्छाओं, भावनाओं को दबाकर संचय न करें। आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाए तो भले ही आप संचित धन भावी पीढ़ी के लिए बचाकर रखना चाहे तो रख सकते है।


भविष्य के लिए सीमित बचत आवश्यक
विनोद गोपालदास फाफट, नागपुर

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, यह हम पर निर्भर हैं कि हमें कौन सा पसंद आता है। सहज और निष्कंटक भविष्य के लिए सही आर्थिक प्रबंधन हमारे जीवन को सुखद, समृद्धिशाली, स्वास्थपूर्ण, शांतिमय बनाने का कारक होता है। जरूरी बचत आर्थिक प्रबंधन का एक अभिन्न हिस्सा है।

कोई भी महान दूरगामी प्रबंधन सीमित समय में परिपूर्ण नहीं हो पाता, ऐसे में जरूरी है कि इसे अविरत चलाया जाए। मुझे गर्व है कि हमारी भारतीय संस्कृति सदा से इस पर चलते आई है। इन बातों की अहमियत कोरोना काल ने स-उदाहरण बड़े ही अच्छे से पूरें विश्व को समझा भी दी है। इसीलिए हमारी इस संस्कृति को पूरे विश्व ने अब सर्वश्रेष्ठ मान भी लिया है।

प्रतिस्पर्धा के आज के युग में आर्थिक बचत एवं प्रबंधन हमारी सफलता का एक मजबूत आधार है। जितने जल्द इस पर काम शुरू हो, मंजिल उतनी आसान होते जाती हैं।

हम वर्तमान का आनंद लेते हुऐ, बच्चों को पढ़ा लिखाकर काबिल बनाने के साथ भी अपनी इच्छा आकांक्षा को ना दफनातें हुए यह कर सकते हैं। वैसे भी अधिकांश पालकों को तो इस सिलसिले को कॅरी फॉरवर्ड ही करना है। फिर यह अनुचित कैसे?


अत्यधिक धन संचय अनुचित
पूजा काकाणी, इंदौर

भावी पीढ़ी के लिए धन संचय करना उचित है। आज की इतनी महंगाई में धन जमा करना उचित है, किंतु एक हद तक। माता-पिता अपनी आवश्यकता जैसे संतान के ब्याह, उच्च शिक्षा, नवघर निर्माण आदि के लिए धन संचय करते हैं, तो वह आज की होड़ में जरूरी है, किंतु अपने पोते-पोती, नाती-नातीन आदि के लिए करते हैं, तो वहां अनुचित है।

क्योंकि वह बहुत दूर की बात हो गई। व्यक्ति को बुरे समय के लिए भी धन की बचत करनी चाहिए। सच्चा पिता अपने बच्चे का ध्यान रखता है और सच्चा पुत्र अपने पिता के प्रति आज्ञाकारी होता है।

जरूरत से बहुत ज्यादा धन भी इकट्ठा नहीं करना चाहिए, क्योंकि अगली पीढ़ी आलसी होती जाती है। सोचती है कि इतना धन है तो मेहनत क्यों करें? धन- संपत्ति का महत्वपूर्ण भाग है। यह आपको सम्मान दिलाता है और आपको आपदाओं से जूझने में सामर्थ्य प्रदान करता है।


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