विषम स्थितियों की ‘‘योद्धा’’- रजनी माहेश्वरी
उनके जीवन में कई विषम परिस्थितियाँ आयीं लेकिन उनके हौंसले के सामने आखिरकार उन्हें घुटने टेकना ही पड़े। कानपुर निवासी रजनी माहेश्वरी विषम परिस्थितियों की एक ऐसी ही ‘‘योद्धा’’ हैं, जिन्हें विषम परिस्थितियाँ भी कभी पराजित नहीं कर पायीं। 50 वर्ष की उम्र में एमबीए जैसी व्यावसायिक डिग्री प्राप्त करना भी उनकी ऐसी ही उपलब्धियों में शामिल हैं।
कानपुर निवासी 50 वर्षीय रजनी माहेश्वरी न सिर्फ माहेश्वरी समाज अपितु हर परिचित के लिये आदर्श ही हैं। उनका जीवन अपने आपमें उनके लिए प्रेरणा की खुली किताब बन गया है। कारण है, उनका हौंसला जिसके सामने हर विषम परिस्थिति को हमेशा नतमस्तक होना पड़ा।
तभी गत दिनों जब उन्होंने उम्र के अर्द्ध शतक में एमबीए जैसी उच्च व्यावसायिक उपाधि प्राप्त की तो भी लोगों को अत्यधिक आश्चर्य नहीं हुआ। उम्र के इस पड़ाव पर आमतौर पर लोग परम्परागत शिक्षा प्राप्त करने की भी कोशिश नहीं करते।
ऐसे में उनके इस प्रयास की सभी ने सराहना तो की लेकिन साथ ही यह भी दबी जुबान में कहने से नहीं चूके कि उनके लिये तो कुछ भी असंभव नहीं है। महिला संगठन द्वारा आयोजित कार्यक्रम सुमिरन 2018 में ऑल इंडिया के सुश्रिता नारी प्रतियोगिता में श्रीमती लोइवाल ने तृत्तीय स्थान प्राप्त किया था। इस वर्ष 2020 में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर उत्तरप्रदेश महिला उद्योग व्यापार मंडल ने उन्हें “शक्ति स्वरूपा अलंकरण” से सम्मानित किया।
परिवार को दिया आर्थिक संबल:
7 नवंबर 1970 को श्रीमती माहेश्वरी का जन्म दुर्गापूर निवासी श्री गिरधर दास भट्टड़ और श्रीमती पुष्पा देवी भट्टड़ के यहां हुआ। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से उन्होंने अंग्रेजी विषय में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। फिर कानपुर निवासी श्री राजीव लोइवाल से उनका विवाह हो गया। 14 जनवरी 2013 को अचानक उनके पति का दुखद निधन हो गया।
बड़ी बेटी दर्शिता 19 साल की थी और सीए का इंट्रेस एग्जाम दिया ही था और छोटी बेटी दिव्या 14 साल की थी और कक्षा 9 की वार्षिक परीक्षा देने वाली थी। इन्होंने नियती के इस क्रूर फैसले का भी सामना किया और अपनी दोनों बेटियों का भविष्य संवारने और अपने पति की प्रिटिग इंक बनाने की फैक्ट्री को सुचारू रूप से चलाने में जुट गई। लोगों को लगा था कि एक अबला क्या व्यवसाय संभालेगी? लेकिन उन्होंने इसे सफलतापूर्वक आगे बढ़ाते हुए सिद्ध कर दिखाया कि वे ऐसी सबला हैं, जो किसी से कम नही हैं।
एक माह में व्यवसाय पुन: स्थापित:
उन्होंने 25 साल बाद फिर से पढ़ाई करने का फैसला किया और डिस्टेंस ऑनलाइन के तहत मुंबई से एमबीए करने लगी। जिन्दगी अपने रफ्तार से चल रही थी। मगर फिर वक्त ने इनकी और एक कठिन परीक्षा ली। 18 जून 2019 को , जब वे अपने एमबीए के तीसरे सेमेस्टर की परीक्षा दे रही थी, इनकी फैक्ट्री में भीषण आग लग गई और पूरी फैक्ट्री जल कर राख हो गई।
फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और नियती का फिर डट कर सामना करते हुए एक महीने में ही दूसरी फैक्ट्री लगा ली। आज इनकी बड़ी बेटी सीए बन गई और मुंबई के आईसीआईसीआई बैंक में कार्यरत हैं। छोटी बेटी बीबीए अंतिम वर्ष की परीक्षा दे रही है और कॉलेज से ही उनका प्लेसमेंट हो गया है।
इन्होंने दोनों बेटियों को स्वावलंबी बना दिया और मुस्कुराते हुए जिन्दगी का सफर तय कर रही है। इसका श्रेय वो ईश्वर की कृपा, पुर्वजों का आशिर्वाद और परिवार और दोस्तों के सहयोग और स्नेह को देती है। अब अपने एमबीए से प्राप्त व्यावसायिक ज्ञान का उपयोग श्रीमती माहेश्वरी अपने उद्यम के चहुंमुखी विकास में कर रही हैं।