निसर्ग के नायक- नवल डागा
पर्यावरण संरक्षण का परचम तो कई लोग थामे हुए हैं, फिर भी पर्यावरण का दूषित होना थम नहीं रहा। कारण है, उनके समर्पण की कमी। यदि वे जयपुर निवासी पर्यावरणविद् नवल डागा के पर्यावरण के प्रति ‘‘जुनून’’ का एक अंश भी अपने जीवन में आत्मसात कर लें तो पर्यावरण को सुधारने में समय नहीं लगेगा। आइये जानें पर्यावरण के प्रति कितने समर्पित हैं, श्री नवल डागा।
‘‘जुनून’’ वह अवस्था है, जो किसी भी कार्य के प्रति समर्पण का सर्वोच्च शिखर प्रदान करती है। एक ऐसा सर्वोच्च शिखर, जिस पर पहुंच कर उसके लिये अपने लक्ष्य से बढ़कर कुछ नहीं होता। जयपुर निवासी पर्यावरणविद् नवल डागा का सम्पूर्ण जीवन ही पर्यावरण के प्रति जुनून की हद तक समर्पित हो चुका है।
वैसे तो पर्यावरण पर मानव ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि का अस्तित्व निर्भर करता है। लेकिन श्री डागा ने पर्यावरण ही नहीं बल्कि इसके संरक्षण को अपने जीवन में इस तरह शामिल किया कि उनका सम्पूर्ण जीवन ही पर्यावरणमय हो गया या कहें पर्यावरण को ही समर्पित हो गया। कई टेलीविजन चेनल व रेडियो स्टेशन श्री डागा के साक्षात्कार का प्रकाशन भी कर चुके हैं।
पिता की प्रेरणा ने दिखाई दिशा:
श्री डागा का जन्म 1 दिसम्बर 1956 को जयपुर (राजस्थान) में स्व. श्री शिवरतन व स्व. श्रीमती चम्पादेवी डागा के यहां दो भाई व 4 बहनों से भरे परिवार में हुआ था। उनका परिवार मूल रूप से बीकानेर का निवासी था, लेकिन व्यावसायिक कारणों से जयपुर आ गया था। श्री डागा ने वर्ष 1976 में बीकॉम किया और उनकी नौकरी लग गई।
उस समय के मान से वेतन भी अच्छा ही था, लेकिन पिताजी को यह उचित नहीं लगा। कहा, ‘‘ऐसा काम कर जिससे तेरे नाम से मैं पहचाना जाऊं।’’ अधिक पूछने पर उनका परामर्श पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने के लिये था। इसके लिये उन्होंने पेड़ों की एक हजार उपयोगिता भी बताई। अभी तक वे मात्र 6 दिन ही नौकरी पर गये थे, वेतन भी नहीं मिला था और इस नये लक्ष्य के लिये नौकरी को तिलांजलि दे दी।
सर्वप्रथम पेड़-पौधे ही बने आजीविका:
उस समय आयु के मान से भी उन्हें आजीविका का चयन करना था। पिताजी का फल बागवानी तथा बीज का व्यवसाय था। उन्होंने आरड़ू का प्लांटटेशन भी किया था। परिवार खेत में ही रहता था। बस श्री डागा ने भी वहीं से अपने स्व व्यवसाय की शुरआत कर दी।
उन्होंने 13 जुलाई 1977 को अपने खेत पर ही नर्सरी प्रारंभ की, जिसमें टमाटर व बैंगन आदि की पौध तैयार की जाती थी। इसकी सफलता के बाद वन विभाग के लिये बीज व लिट्रेचर सप्लाय, लेवल, ट्री प्रिटिंग आदि व्यवसाय भी प्रारंभ किये। इस तरह उनका व्यवसाय ही नहीं बल्कि उनके जीवन की संपूर्ण दिनचर्या ही पेड़-पौधों को समर्पित हो गई।
पेड़ों के लिये रिश्ते किये सीमित:
धीरे-धीरे पेड़-पौधे उनके लिये सिर्फ व्यवसाय नहीं बल्कि उनके जीवन का हिस्सा ही बनते चले गये। इनकी देखरेख व संरक्षण तथा इसके प्रति जनजागृति उत्पन्न करना ही उनके जीवन का लक्ष्य बन गया। इस अभियान ने उनके जीवन की दिनचर्या को इतना व्यस्त कर दिया कि उन्हें अपने संबंध तक सीमित कर देना पड़े। श्री डागा ने रिश्तों को सीमित रखने के लिये एक नियम बनाया जिसके अंतर्गत वे अपने यहां आयोजित कार्यक्रम में अत्यंत निकटवर्ती रिश्तेदारों को ही आमंत्रित करते हैं, जिससे उन्हें भी अनावश्यक रिश्ते नहीं निभाने पड़ें।
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इसी का प्रमाण श्री डागा की माताश्री के देहावसान के पश्चात उठावने की रस्म के दौरान दिखा। इसके लिये श्री डागा ने अखबारों में बकायदा विज्ञापन प्रकाशित करवाकर स्नेहीजनों की संवेदना को स्वीकार करते हुए उनसे घर पर उठावने की रस्म नहीं कर रहे हैं, ऐसा अनुरोध तक कर लिया।
परिवार को भी रखा सीमित:
विवाह पूर्व से ही श्री डागा का पर्यावरण के प्रति समर्पण के कारण सम्पूर्ण जीवन ही बदल चुका था। समय बचाने के लिये न सिर्फ रिश्तों को उन्होंने सीमित किया अपितु टीवी जैसे मनोरंजन के साधनों से भी दूरी बना ली थी। उन्होंने आज तक अपने घर के अंदर टेलीविजन को प्रवेश तक नहीं दिया। घर के अंदर भी शुद्ध प्राकृतिक तौर तरीके का जीवन यापन ही शुरू कर दिया।
इन सबका नतीजा यह रहा कि लोग उन्हें असामान्य समझने लगे, लेकिन ऐसे में भी श्रीमती शारदा डागा ने उनकी जीवनसंगीनी बनने का निर्णय लेकर उनके जीवन को संबल दे दिया। वे आज भी पर्यावरण संरक्षण के लिए उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हैं।
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उनके परिवार में मात्र एक पुत्री ही है क्योंकि पुत्री का जन्म होने के मात्र दो दिन बाद ही श्री नवल डागा ने यह कहकर परिवार नियोजन को अपना लिया था कि यदि परिवार बढ़ता गया तो उसे समय भी देना पड़ेगा, जिससे उनका लक्ष्य प्रभावित होगा। इस निर्णय से पत्नी को छोड़ संपूर्ण परिवार यहां तक कि ससुरजी भी बहुत नाराज हुए थे, लेकिन श्री डागा अपने मार्ग पर दृढ़ रहे।
हर भेंट भी पर्यावरण के नाम:
आप गत 43 वर्षों से विभिन्न भेंट सामग्री आदि के साथ ही अनी पुस्तक शृंखला पर्यावरण हजारा द्वारा भी पर्यावरण संरक्षण की ज्योति जलाते रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण के अंतर्गत अभी तक आपकी 556 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें पर्यावरण हजारा के विभिन्न भाग भी शामिल हैं।
ये पर्यावरण पर आधारित एक हजार स्वरचित दोहों का संग्रह हैं। दोहों की विशेषता है, इन सभी में नीचे की मात्राओं का न होगा। बिना नीचे की मात्रा के एक हजार दोहों का सृजन अत्यंत दुष्कर कार्य है और वह भी पर्यावरण के संदेश के साथ। उनके द्वारा उपहार स्वरूप दी जाने वाली भेंट सामग्री पर भी पर्यावरण संरक्षण के संदेश अंकित रहते हैं।
लॉकडाउन में पर्यावरण की सेवा:
कोरोना महामारी के कारण गत दिनों हुए लॉकडाउन की अवधि में जब हर आम व्यक्ति खाद्य पदार्थों के लिये परेशान था, ऐसे में भी नवल डागा परिवार बिल्कुल भी प्रभावित नहीं हुआ। कारण था, घर पर उगाई गईं सब्जियां। ये सब्जियां बिना किसी प्रकार के कीटनाशकों के प्रयोग के पूर्णत: प्राकृतिक वातावरण में उत्पन्न की जाती है। इसके कारण उनके घर का मेन्यू तो बिगड़ने से बचा और कई परिवारों के भी वे मददगार बन गए।
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इस दौरान उनकी लेखनी ने योगा व पेड़ों की उपयोगिता से संबंधित 185 विषयों तथा गाय से संबंधित भी 105 विषयों पर विभिन्न दोहों का सृजन किया। श्री डागा आशु कवि हैं और उसमें भी इन दोहों की विशेषता थी, नीचे की मात्राओं का न होना। वर्तमान में श्री डागा अपने ३६ पूर्वजों के नाम पर पक्षियों के परिंडे विभिन्न क्षेत्रों में लगा रहे हैं।
प्रकृति का घर है उनका निवास:
श्री नवल डागा का निवास स्थान भी आम लोगों के लिए किसी दार्शनीय स्थल से कम नहीं है। कारण ही इसका प्राकृतिक संसाधनों से ओतप्रोत होना। उनका मकान 111 वर्गगज में 5 मंजिला बना हुआ है, लेकिन यदि दूर से देखा जाए तो वह मकान नहीं बल्कि हरियाली का झुरमुट नजर आएगा। कारण यह है कि उन्होंने अपने निवास स्थान को पूरी तरह हरियाली से ढंक रखा है। उनके पांच मंजिला घर पर ऊपर तक लंबी-लंबी अनेक तरह की बेलें फैली हैं।
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पर्यावरण संरक्षण से जुड़ी हर चीज उनके घर में मौजूद हैं। उनकी विशेषता है कि अपने मिलने जुलने वालों से सबसे अधिक बातें वे पर्यावरण के बारे में करते हैं। यह उनकी प्रेरणा का ही असर है कि उनके निवास स्थान के आसपास के घर भी हरियाली से सराबोर नजर आते हैं। यही नहीं नवल डागा के घर के सामने वाली सड़क ही नहीं और भी काफी दूर तक पेड़ ही पेड़ लगे नजर आते हैं। साथ ही पर्यावरण संरक्षण से जुड़े स्लोगन भी हर ओर दिखते हैं।
यह इसी हरियाली का परिणाम है कि उनके मकान में गर्मी के दिनों में भी एयरकंडीशनर या वाटर कूलर आदि की जरूरत ही नहीं होती क्योंकि इस हरियाली के कारण स्वत: ही उनके मकान में लगभग 10 डिग्री कम तापमान रहता है। वहीं ठंड के दिनों में तापमान अधिक कम भी नहीं होता।
अजूबे से कम नहीं पूरा मकान:
उनके घर में प्रवेश करने के साथ ही एक-एक इंच की जगह का नायब इस्तेमाल देखा जा सकता है। दरवाजे का एक पलड़ा छोटा और दूसरा बड़ा होना स्वयं में एक रहस्य है। मकान की सीढ़ियों से लेट-बाथ तक के क्षेत्र में जीवनोपयोगी और पर्यावरण संरक्षण के स्लोगन लिखी कुल 1525 टाइल्स लगाई हुई है। सीढ़ियों के साथ लगी रैलिंग भी बहुपयोगी है। फोल्ड होने वाली विभिन्न सात प्रकार की रेलिंग को 20 सेकंड से भी कम समय में लगा और हटा सकते हैं, वहीं सीढ़ी के एक ओर लगे लकड़ी के बोर्ड को पलंग बनाया जा सकता है।
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सन् 1987 में बने इस मकान को भूकंपरोधी बनाने के लिए ग्राउंड फ्लोर की सभी दीवारों को साइकिल की ताड़ियों से बांधा गया है, वहीं एनर्जी सेविंग के लिए घर के बाहर की ओर जीवंती, गिलोय और कई तरह की उपयोगी बेल और पौधे लगे हैं। अपनी इन अनूठी विशेषताओं के कारण यह घर इन दिनों युवा आर्किटेक्टस और पर्यावरण प्रेमियों के लिए एक ट्रेनिंग स्कूल बना हुआ है।
फर्नीचर की भी अनोखी व्यवस्था:
इस मकान की हर चीज अदभुत, अनोखी और खास है। ड्राइंग रूम की सेंट्रल टेबल बड़ी खूबसूरत है। इस पर खाना रखने के बाद किचन में जाने की जरूरत नहीं है। खाने के सभी बर्तन सेंटर टेबल की ड्राअर्स में ही रखे हैं और वह भी इतनी खूबसूरती से छिपे हुए मानों जैसे इन्हें किसी डिजाइन में छिपा दिया गया हो। इस टेबल की डिजाइन करने वाले भी स्वयं श्री डागा ही हैं।
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पूरे मकान की खिड़कियों पर ग्रिल इस तरह से लगाई गई है ताकि पूरा हाथ अंदर जा सके और सफाई में कोई परेशानी नहीं आए। सफाई का ध्यान रखने के लिए दीवारों में कोने नहीं छोड़े गए हैं। इस घर की सभी दीवारें भूकंपरोधक है। किसकी चिट्ठी आई, किसको पत्र भेजना है, किसकी बुकिंग हो गई और किसकी बुकिंग बाकी है? दूर-दूर तक कोई असमंजस ना हो इसलिए नवल डागा ने सभी चीजों के लिए बनाई है। अलग से शेल्फ।
उनके पास पोस्टकार्ड रखने के लिए भी अलग से शेल्फ है, जिसमें साल के सभी महीनों और तारीखों के अलग विभाजन किए गए हैं। कब किसने क्या भेजा इसकी जानकारी रखने में कोई परेशानी नहीं। सभी सामग्री को रखने का निर्धारित स्थान होने से जरूरत होने पर ढूँढने में लगने वाले समय की बचत होती है। झाड़ू व्यवस्थित रखने हेतु दीवार में चुनाई के साथ ही पांच पाइप दबाए गए हैं।
अलमारी व पलंग सब अजूबे:
इस मकान का हर दरवाजा अलमारी है। कमरों के दरवाजे के पीछे वाली खाली जगह को प्रिल लगाकर बुक शेल्फ में बदल दिया है। वहीं हर छोटी बड़ी अलमारी का दरवाजा काम का है। कोई हैंगिंग ट्रेसिंग टेबल है, तो कोई कुछ रखने की जगह।
लकड़ी के पलंग पर तो आप सभी सोए होंगे मगर इनके पलंग पत्थर से बने हुए हैं और दीवार के साथ चुने गए हैं। हर पलंग में रजाई, गद्दे, गिफ्ट आयटम और कहीं आने जाने के समय कपड़े तक बदलकर उन्हें विस्तार के नीचे डंप करने की व्यवस्था भी है। इन पलंगों की खास बात यह है कि सालों साल ना तो इसकी रंगत उड़ेगी और ना ही इसमें दीमक लगेगी।
हर कहीं प्रकृति के लिये मोहब्बत:
श्री नवल डागा के उस अनोखे घर में जहां सब कुछ अनोखा और अलग है, वहां छत कैसे अछूती रह सकती है। लिहाजा यहां गर्दन को जरा-सा ऊंचा करने की देर है, सैकड़ों संदेश और काम की कतरनों के साथ जरूरी सूचनाएं और रिमाइंड लिखे नजर आएंगे, लेकिन बात यही खत्म नहीं हो जाती, इस नोटिस बोर्ड के पीछे बने हुए हैं, एक-दो नहीं, सैकड़ों लॉकर जिन्हें ग्राहकों के नाम से अलॉट किया गया है।
इनमें उस ग्राहक के ऑर्डर की हर चीज रखी जाती है। श्री डागा की एक और अनूठी कृति है, 2928 फुट लंबे कपड़े पर लिखे 2928 स्लोगन। इनमें सिर्फ और सिर्फ गाय की ही महिमा का गुणगान है। इसकी लंबाई पर मत जाइए क्योंकि यह लगातार बढ़ रही है लेकिन किसी रिकॉर्ड के लिए नहीं, बल्कि हर उस इंसान के लिए जो पर्यावरण और प्रकृति को बचाने के लिए कुछ करना चाहता है। मकसद गाय के साथ सृष्टि को बचाना और संवारना है, कल के लिए।