क्यों निषिद्ध है बिना लहसुन प्याज से निर्मित भोजन
-वैद्यराज रमेशकुमार माहेश्वरी
भोपाल
पुराने समय में लहसुन-प्याज से निर्मित भोजन को वैष्णव परिवारों में निषिद्ध माना जाता था। लेकिन आज की आधुनिक सोच वाले लोगों ने इसे दकिया-नुसिता मानकर नकार दिया है। ऐसे में विचारणीय हो गया है कि क्यों निषिद्ध रहा है, लहसुन प्याज से निर्मित भोजन?
कहते हैं जैसा अन्न वैसा मन अर्थात हम जो कुछ भी खाते हैं, हमारा मन वैसा ही बन जाता है। सात्विक भोजन का हमारे मन और शरीर पर सात्विक प्रभाव पड़ता है लेकिन वर्तमान में लोगों की जीवनशैली यानी रहन-सहन और खानपान पूरी तरह बदल गया है।
आज स्वयं को शाकाहारी कहने वाले लोग तामसिक भोजन(यानी लहसुन-प्याज, तीखा, मिर्च-मसाला) करने से परहेज नहीं करते जबकि हमारी सनातन संस्कृति में भोजन सामग्री को प्रसाद के रूप में तैयार कर इसका भोग पहले अपने इष्ट देवताओं को लगाने की परंपरा रही है।
इसमें जैसा कि भोजन प्रसादी यानी भोग का नाम आता है, तो निश्चित ही उसमें तामसिक भोजन शामिल नहीं होता, लेकिन शने:शने: हम हमारी इस परंपरा से दूर होते जा रहे हैं।
सामाजिक आयोजनों में हो प्रतिबंधित:
सात्विक आहार मानसिक पवित्रता बढ़ाता है इसलिए वैष्णव सम्प्रदाय के लोग आज भी लहसुन-प्याज से परहेज करते हैं। लेकिन वर्तमान में माहेश्वरी समाज में होने वाले अनेक आयोजनों में तामसिक भोजन की व्यवस्था रहती है, जिससे अधिकांश लोग प्रसादी ग्रहण नहीं कर पाते।
अतः सामाजिक कार्यक्रमों में बिना लहसुन प्याज के भोजन प्रसादी की व्यवस्था होनी चाहिए। समाज के अधिकांश वैष्णवजन इष्ट आराधना करते हैं तथा भोग लगाने के बाद ही भोजन ग्रहण करते हैं और निश्चित ही भोग में बना भोजन सात्विक व शुद्ध होगा यानी बिना लहसुन प्याज का।
हम सब जानते हैं कि शास्त्रों में भी यह तामसिक पदार्थ की श्रेणी में ही आते हैं, इसलिए ही तो देवताओं को भी इसका भोग नहीं लगता। यह भक्तिमार्ग में भी निषिद्ध माना गया है।
आध्यात्मिक दृष्टि से तामसी:
प्याज और लहसुन शरीर को लाभ पहुंचाने के हिसाब से चाहे कितना ही लाभकारी और गुणकारी क्यों ना हो, लेकिन मानसिक और आध्यात्मिक नजरिये से तामसिक भोजन का पदार्थ है इसलिए वैष्णवजन प्याज, लहसुन का उपयोग नहीं करते। इनसे चित्त की शांति और प्रसन्नता भंग होती है।
यदि पवित्र बनना है, तो इनका त्याग करना ही उचित है। अन्न चरित्र निर्माण करता है? अतः हम क्या कर रहे हैं, इस बात का सदैव ध्यान रखना चाहिए। इसलिए समाज के आयोजनों के भोज में शुद्ध भोजन बिना लहसुन-प्याज की भोजन प्रसादी हो या फिर दोनों प्रकार के भोजन की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए। उचित तो यही होगा कि लहसुन-प्याज के बिना ही भोजन निर्मित हो। यह बातें आज के बदलाव के दौर में भले ही दकियानूसी लगे, लेकिन वैष्णवजन आज भी इन्हे मानते हैं।