महिला अधिकारों की रक्षक- प्रीति भट्टड़
प्रीति भट्टड़ ने कानून की शिक्षा हासिल की तो बस संकल्प ले लिया महिला अधिकारों की रक्षा तथा उनके सशक्तिकरण का। चाहे वकालात की अथवा लीगल मैनेजर के रूप में सेवा लेकिन उनका यह अभियान सतत चलता ही रहा। आईये जानें उनकी कहानी उन्हीं की जुबानी..
कोयंबटूर। (तामिलनाडू) की श्रीमती प्रीति भट्टड़ जन्म और प्राथमिक शिक्षा महाराष्ट्र के छोटे से गांव मूल में हुई। बी.कॉम. कर पीजी इकोनोमिक की डिग्री नागपुर विश्वविद्यालय से प्राप्त की। स्कूली दिनों से मंच के प्रति एक लगाव और खिंचाव बना रहा। स्कूल से कालेज तक मंच संचालन, वाद विवाद स्पर्धा, निबंध लेखन और पद्य लेखन का एक क्रम सा चला रहा।
प्रीति भट्टड़ को वाद विवाद स्पर्धाओं में राज्य स्तरीय तक जाने और जीतने का मौका मिला। उन्हीं दिनों एक अखबार ‘‘लोकमत’’ में पत्रकारिता का भी अवसर मिला। वकालत की पढ़ाई शुरू की, पर पूरी पढ़ाई तमिलनाडु के कोयम्बटूर में विवाहोपरांत हुई।
लॉ की डिग्री लेकर 2009 से 2017 तक चैन्नई एवम कोयम्बटूर कोर्ट में प्रैक्टिस की। 2017-18 में चोलामंडलम इन्वेस्टमेंट फाइनेंस NBFC कंपनी में लीगल सीनियर एक्सींक्यूटिव का काम संभाला, और अब HDFC बैंक में लीगल मैनेजर के रूप में कार्यरत हैं।
विवाह बाद भाषा में भिन्नता के वजह से कार्यक्षेत्र में कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। लेकिन शायद यही चुनौतियां तमिल भाषा जल्दी सीखने में मेरी सहायक रही।
विवाह बाद भी चली सफलता की यात्रा
विवाह बाद पढ़ाई पूरी कर काम करना एक संयुक्त परिवार में रहकर घर के बड़ों और बच्चों के प्रति साथ ही बाकी पारिवारिक जिम्मेदारी और दायित्वों को पूरा करना किसी के लिये आसान नहीं न मेरे लिये था। पढ़ाई पूरी करना ही एक स्वप्न समान था, मगर पारिवारिक सदस्यों की सहायता और मेरी जिद ने राह आसान कर दी।
इसमें विशेष योगदान रहा मेरे पति सुरेश भटटड और मां उर्मिला सत्यनारायण सारडा का। अब तो दोनों बेटियां खुशी और गरीमा भी साथ हैं। इन सभी के बीच भी मंच और कविता लेखन के प्रति मेरा रूझान हमेशा बना रहा और उन्होंने वह पूरा करने का अवसर दिया। माहेश्वरी सभा ने समाज में होने वाले स्नेह सम्मेलन से मंच संचालन का अवसर दिया।
महिला जागरूकता की प्रखर वक्ता
कम्पनी और बैंकिंग के क्षेत्र में कार्य करने से यह तो समझ आ रहा था कि कानूनी अधिकार, आर्थिक स्वावलंबन व निवेश इन सभी विषयों से महिलायें पूर्णत: अवगत नहीं। यह मानसिकता, कि महिलाओं के कानूनी अधिकार याने ‘‘परिवार विभाजन,’’ यह बात हमेशा मुझे चुभती रही। इन्हीं बातों को ध्यान में रख इन विषयों पर महिलाओं के लिये फ्री सेमिनार लेना शुरू कर किया। इसमें महिलाओं के लिये अच्छा निवेश, साइबर क्राइम, आर्थिक स्वावलंबन जैसे पसंदीदा विषय रहे।
जैन माहेश्वरी, तमिल, गुजराती आदि अलग-अलग समाज की महिलाओं से जुड़ने का अवसर सेमिनार से प्राप्त हुआ। जहां कुछ महिलायें वास्तव में समस्या में थी, जिसे शायद कभी न कह पाती, उन तक पहुंच उनको सहायता पहुंचाने का मौका मिला। यह श्रृंखला आज भी चल रही है, लॉकडाउन में जूम ऐप पर सेमिनार लिये, जिसमे समाज की उत्तरांचल और पूर्वांचल की महिलायें भी शामिल रहीं। लेकिन कुछ एनजीओ से जुड़ बाल उत्पीड़न जैसे संवेदनशील विषयों पर जागरूकता शिविर आयोजित किये।
कई संगठन मुझे मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित कर चुके हैं और इनमें मैंने नि:शुल्क सेवा दी है। लीगल और बैकिंग दोनो क्षेत्रों में काम करते वक्त यह बात तो समझ आई कि हमारे समाज के महिलाओं अपने आर्थिक स्वावलंबन और कानूनी अधिकारों में शायद पूर्णता परिचित नहीं इसी को ध्यान में रख लीगल विद फायनेंस पर महिलाओं के लिये सेमिनार लेना शुरू किया जो अब तक चल रहा है।
पारिवारिक और कार्यक्षेत्र की जिम्मेदारी और दायित्वों को पूरा कर अगर समय हो तो हमें अवश्य समाज के प्रति अपना योगदान देना चाहिये।
मुश्किलें, चुनौतियां तो हर किसी की राह में हैं मगर-
उम्र थका नहीं सकती। ठोकरें गिरा नहीं सकती।।
अगर जिद हो जीतने की तो। परिस्थितियां भी हरा नहीं सकती।।