मात्र शुभकामनाओं से शुभ नहीं होता
मार्च महिने की शुरुआत ‘महिला दिवस’ की धूम से होती है। पत्र-पत्रिकाओं, सामाजिक संस्थानों द्वारा तरह-तरह से इसे पेश किया जाने लगता है। महिलाओं के वर्चस्व पर अनेकों सवाल उठाये जाते हैं और उनके तत्कालीन हक भी दर्शाये जाते हैं। दिन रात व्हाट्सेप पर महिलाओं पर तंज करने, जोक बनाने और रील बनाने वालों के मन में भी एक दिन महिलाओं के प्रति इज्जत जाग उठती है और शुभकामना संदेशों से मोबाईल भर जाता है। मात्र शुभकामनाओं से शुभ नहीं होता।
क्या इतनी मात्र ही महिला दिवस की उपलब्धि है? क्या यह एक दिवसीय समारोह महिलाओं का उत्थान कर देगा? नहीं, परंतु एक दिन एक सोच को जन्म जरूर देगा।
शुभ मात्र शुभकामनाओं से नहीं होता, शुभ मात्र दूसरों द्वारा भी नहीं किया जा सकता, शुभ के लिये अपने आप बुद्धि विवेक से तर्क संगत प्रयास चाहिये।
अपने उत्थान के लिये महिलाओं को सर्वप्रथम शिक्षित और ज्ञानी बनना होगा। शिक्षा से अर्थ मात्र क्लासरूम शिक्षा नहीं होता, यह ज्ञान व्यवहारिक भी होना चािहये। जीवन के किसी क्षेत्र में कारगुजारी और कला को विकसित कर भी ज्ञानी बना जा सकता है। आर्थिक आत्मनिर्भरता महिलाओं को आत्मविश्वास और उचित सम्मान दिलाती है। महिला विकास की ये दूसरी और महत्वपूर्ण सीढ़ी है। इस ओर महिलाओं का बहुत अधिक ध्यान केंद्रित होगा।
सफलता की इन दो सीढ़ी के बाद महिलाओं को पुन: आत्मविश्लेषण करना होगा। सफलता के साथ जीवन की जवाबदारियां आनंद, सुख शांति को समझना भी बहुत जरूरी है। फल लगने के बाद वृक्ष नीचे को झुक जाते हैं ताकि फलों का स्वाद और आनंद समाजजन उठा सकें। रसास्वादन हो।
हमारे समाज में और पूरे देश में इस बदलाव से कुछ सवालिया निशान भी उठे हैं। अहं का टकराव, टूटते परिवार, बच्चों की परवरिश अधर में लटके वैवाहिक संबंध?
फैशन की तरह संस्कृति एक दिन में नहीं बदल जाती है। एक जवाबदारी उठाकर दूसरी जवाबदारी से पल्ला नहीं झटक सकते। सामाजिक व्यवस्था के गड़बड़ाने से सब कुछ गड़बड़ा जाता है। इस महिला दिवस पर प्रगति की दौड़ दौड़ते कुछ विचार कीजिये।
शिक्षा अर्जित कीजिये, ज्ञान को विकसित कीजिये, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनिये, स्वाभिमान से जियो पर पुरुष और परिवार के सम्मान पर चोट मत कीजिये। अपनी परम्परागत प्राथमिकताओं से मुंह मत मोड़िये।
परिवार संचालन की प्राथमिकता को समझिये। संतति विकास के वरदान को स्वीकार कीजिये। बच्चों के उचित लालन पालन की जवाबदारी स्वीकारिये।
अपने आपमें इतनी क्षमता पैदा कीजिये कि आप घर और बाहर की इन दोनों जिम्मेदारियों को बखूबी निभा सकती हैं और सहस्त्रों महिलाएं आज भी इसे बड़े ही संतुलित ढंग से निभा रही हैं।
दो नावों में सवार होने के पहले उस सवारी के लिये शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार होइये। दूसरों के अभिमान को ठेस पहुंचाये बिना अपने स्वाभिमान को रक्षित कीजिये। महिला होने का सुख आनंद, इज्जत, गर्व आप तभी बटोर पायेंगी। सर्वस्व शुभ की सहस्त्र शुभकामनायें।