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युवा पीढ़ी का सामाजिक संगठनों से जुड़ना उचित अथवा अनुचित?

आज की युवा पीढ़ी सिर्फ और सिर्फ अपनी पारिवारिक और व्यक्तिगत जिम्मेदारियों में उलझी रहती है, उसे समाज से कोई लेना-देना नहीं। समाज का नेतृत्व करने के लिए भी वह सामाजिक संगठनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा नहीं लेना चाहती। उसे लगता है कि समाज संगठन में समय देना सिर्फ समय की बर्बादी है। जबकि अब समाज के उम्रदराज कार्यकर्ता भी चाहते हैं कि नयी पीढ़ी सामने आए व संगठनों के कार्यों को समझे और जिम्मेदारियों को उठाये। युवा पीढ़ी का संगठनों से जुड़ना निश्चित ही समाज के लिए भी हितकारी होगा। युवाओं की नई सोच, उच्च शिक्षा और नए विचार समाज की प्रगति और विकास में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। सामाजिक संगठनों से जुड़कर अपने समाज बंधुओं से मिलना-जुलना युवाओं के सर्वांगीण विकास के लिए भी आवश्यक है।

ऐसे में यह विचारणीय हो गया है कि युवाओं का सिर्फ अपने परिवार और दोस्तों में सिमटकर रह जाना उचित है या अनुचित? आइये जानें इस स्तम्भ की प्रभारी सुमिता मूंदड़ा से उनके तथा समाज के प्रबुद्धजनों के विचार।


युवाओं का संगठन से अलगाव हानिकारक
सुमिता मूंधड़ा, मालेगांव

sumita mundra

जिस समाज में हम रहते हैं, अपने सुख-दुख बांटते हैं; हमें उन समाज बंधुओं और संगठनों से जुड़कर रहना चाहिए। आधुनिक भागदौड़ भरी जीवनशैली में अगर हम राष्ट्रीय सामाजिक संगठनों से ना भी जुड़ पाएं तो कम से कम स्थानीय संगठनों से तो जुड़े रहना ही चाहिए। समाज-बंधुओं के साथ हम अपनी खुशियां बांटकर बढ़ा सकते हैं। आड़े समय में अगर हमारा परिवार पास ना भी रहे तो स्थानीय समाज बंधु-बांधव हमारे साथ परिवार-सम खड़े रहते हैं। आपसी संपर्क से हम अपनी छोटी-बड़ी समस्याओं को हल कर सकते हैं।

अपने बच्चों के वैवाहिक रिश्तों को जोड़ने और आवश्यक जानकारी प्राप्त करने में सामाजिक संगठन बंधुगण हितकारी होते हैं। हमारा सामाजिक संपर्क हमारे व्यापार-व्यवसाय में भी काम आता है। कभी-कभी तो स्थानीय संगठनों की सिफारिशों से हमारे अटके काम भी झटके में पूरे हो जाते हैं। संगठन में शक्ति होती है; अगर किसी समाज-बंधु के साथ कोई अन्याय या दुर्व्यवहार हो तो पूरा समाज अन्याय के खिलाफ एकाकार हो जाता है।

कहीं-कहीं पर सामाजिक संगठन में होनेवाली राजनीति और मतभेद के कारण नवपीढ़ी सामाजिक संगठनों की अपेक्षा दोस्तों पर अधिक भरोसा करने लगी है। नवपीढ़ी को समाज से जोड़ने और संगठनों पर भरोसा बढ़ाने की दिशा में अनुभवी कार्यकर्ताओं को विचार करना चाहिए।

नई पीढ़ी का सामाजिक संगठनों से जुड़ना संगठनों के लिए हितकारी होगा। नई सोच और नई विचारधारा के जुड़ने से सामाजिक सर्वांगीण विकास होगा। संगठन के अनुभवी कार्यकर्ताओं को निश्चिंत होकर युवावर्ग पर संगठन का कार्यभार सौंपना ही चाहिए। नए युवा कार्यकर्ता अब सामाजिक संगठनों की आवश्यकता भी हैं और मांग भी।


उचित ही नहीं आवश्यक है
अयोध्या चौधरी, अलीराजपुर

आज की युवा पीढ़ी का सामाजिक संगठनों से जुडना उचित ही नहीं अपितु आवश्यक है। युवा पीढ़ी को यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि व्यक्ति की पहचान समाज से ही है। आज की युवा पीढ़ी भटकाव के मोड़ पर है और हमारी जनसँख्या का ग्राफ ढलान पर है। चिंतन आवश्यक है। ऐसे में अपने सामाजिक अस्तित्व की धरोहर को सुरक्षित रखने के लिए सामाजिक संगठन से जुड़कर अपनी सामाजिक पहचान बरकरार रखना बहुत जरूरी है। सामाजिक संगठनों से जुड़कर ही हम समाज हित में कुछ कर सकते हैं।

समयाभाव शायद युवा पीढ़ी की समस्या हो सकती है लेकिन जहां चाह वहां राह बन सकती है। अपनी काबिलियत अपने हुनर से हम समाज को लाभान्वित कर सकते हैं। संगठन से जुड़ना पद प्राप्ति का लक्ष्य नहीं होना चाहिए, संगठन से जुड़कर अपनी कार्य निष्ठा से अपनी पहचान स्वयं बनानी चाहिए।

संगठन से जुड़कर ही हम अपनी समाज सेवा की भावना को मूर्त रूप दे सकते हैं व समाज के महत्व और समाज की आवश्यकता को समझ सकते हैं। युवा पीढी यदि माह मे एक दिन भी सद्भाव से संगठन को समर्पित करें तो यह समय समर्पण धन समर्पण से कहीं ऊपर है।


समाज उन्नति में भी सहायक
कुसुम कुईया, ग्वालियर

हमारा अपने समाज बंधुओं से जुड़े रहना अति आवश्यक माना जाता है। हमेशा से मान्यता रही है हमारी पहचान भी समाज से जुड़े रहने पर बढ़ती है जो एक लंबे समय के लिए किए गए निवेश के समान है। लेकिन वर्तमान में सोच बदलती जा रही है।

आज की पढ़ी-लिखी युवा पीढ़ी की दुनिया सिर्फ अपने परिवार और कार्यक्षेत्र के इर्द-गिर्द घूमती रहती है। वे अपनी जीवनशैली में इतने उलझ गए हैं कि हमें अपने पड़ोसी के नाम काम की जानकारी भी नहीं होती है। सोशल मीडिया दोस्तों की सूची में बढ़ोतरी होना ही हमारे लिए स्टेटस की बात होती है, पर अपने ही जबकि समाज के लोगों के साथ उठना बैठना कोई मायने नहीं रखता। उन्हें यह सब उन्नति में बाधक लगते हैं। समाज में जाना आना उचित ही रहता है।


युवा देश का भविष्य
नेहा बिनानी ‘शिल्पी’, मुंबई

किसी भी देश का भविष्य उसके युवा ही निश्चित करते हैं। उन पर ही निर्भर करता है कि वो समाज, देश की धरोहर, संस्कृति को कितना सम्मान देते हैं, उसकी सुरक्षा करते हैं और उसे आगे बढ़ाते है। किंतु वर्तमान भौतिक वादी युग में युवाओं में भौतिक सुख-सुविधाओं को अधिकाधिक पाने की ललक है, ना अपने समाज, न संस्कृति की।

युवाओं की शक्ति और उनके जोश से सदैव किसी कार्य में आगे बढ़ने में बहुत सहायता होती है फिर चाहे वो आजादी की लड़ाई हो या, संस्कारों को जीवित रखने की। इसलिए बहुत अनिवार्य है कि युवा वर्ग समाज की बागडोर संभाले एवं उसे उचित दिशा में उन्नति की ओर लेकर जाए।


शत प्रतिशत उचित युवाओं का जुड़ना
सुहाग देवपूरा, अहमदाबाद

युवा पीढ़ी यानि कि हमारे नौजवान हमारे समाज का महत्वपूर्ण अंग है। हमारे समाज का भविष्य हमारी युवा पीढ़ी की सोच, व्यवहार व प्रदर्शन पर निर्भर करता है। युवा पीढ़ी में जोश, उमंग की कोई कमी नहीं होती है। वह हमेशा कामयाबी के शिखर तक पहुंचना चाहती है। अपने जुनून व काबिलियत, योग्यता से जिम्मेदारियों को वहन करके एक सुस्वरूप व सकारात्मक समाज की रचना कर सकते हैं।

विकास की नींव रख सकते हैं। आज युवा पीढ़ी का सामाजिक संगठनों से जुड़ना 100% सही है। युवा सामाजिक संगठनों से जुड़कर समाज को नई राह दिखाकर सुसंस्कृत सम्मान को स्थापित कर सकता है। युवा पीढ़ी, वृद्धावस्था व आने वाली पीढ़ी के बीच सेतु की कड़ी है।

वह हमारे सामाजिक रीति रिवाज़ों, मूल्यों’ संस्कृति, पहचान की संवाहक है। हमारा समाज एक सुदृढ़, सुसभ्य, सुसंस्कृत एवं श्रेष्ठ समाज के रूप में स्थापित है। अतः इसकी पहचान को बनाये रखने व आगे ले जाने के लिये युवा पीढ़ी को सामाजिक संगठनों से जुड़कर समय के साथ लय बनाकर अपना योगदान प्रदान कर अपने सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वहन करना चाहिए।


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