Mulahiza Farmaiye
मुलाहिज़ा फरमाइये
वक्त भी ये कैसी पहेली दे गया
उलझने को ज़िन्दगी और समझने को उम्र
दे गया…!
मुकम्मल कहाँ हुई, ज़िन्दगी किसी की,
इंसान कुछ खोता ही रहा, कुछ पाने के
लिए।
खुश रहना सीखिए, बाकी सब चलता रहेगा
कोई अपना बिछड़ता रहेगा, कोई पराया
मिलता रहेगा।
वक्त तो सिर्फ वक्त, पे ही बदलता है,
बस इंसान ही है
जो किसी भी वक्त बदल जाता है
तू भी खामख्वाह बढ़ रही है, ए धूप,
इस शहर में पिघलने वाले,
दिल ही नहीं है
उलझनों का बोझ, दिल से उतार दो…
बहुत छोटी है ज़िन्दगी
हँस के गुज़ार दो……।।
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