Mulahiza Farmaiye
मुलाहिजा फरमाइये- अगस्त 2020
पढ़िए अगस्त 2020 का मुलाहिजा फरमाइये हमारे इस स्तम्भ में
तुम अपने पास रखो अपने सूरज का हिसाब
मुझे तो आखिरी घर तक दिया जलाना है
अपनों के अवरोध मिले हर वक़्त रवानी वही रही
साँसों में तूफानों के रफ़्तार पुरानी वही रही
लाख सिखाया दुनिया ने, हमको भी कारोबार मगर
धोके खाते रहे और मन की नादानी वही रही
यही तय जानकर कूदो उसूलों की लड़ाई में
कि रातें कुछ ना बोलेंगी चिरागों की सफाई में
बुरी सोचों के कारोबार में इतनी कमी तो है
कमाई होती है बरकत तो नहीं होती कमाई में
पी मिलन को तरसते हैं दोनों के ही नैन….!!
मात्र राधा ही नहीं कृष्ण भी होते हैं राधा बिन बैचेन…!!!!
प्रकृति तेरा रूठना भी जरूरी था,
इंसान का घमंड टूटना भी जरूरी था।
हर कोई खुद को खुदा समझ बैठा था,
उसका ये शक दूर होना भी जरूरी था।
चाँद पर जाने की चाहत थी
पर धरती का संवारना जरूरी था
मै सब कुछ हासिल कर सकता हूँ
इस ग़लतफ़हमी से निकलना जरूरी था।।
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