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पृथ्वी की दिव्या औषधि- सर्पगंधा

हमारा आयुवेद विश्व का ऐसा प्राचीनतम चिकित्सा शास्त्र है, जिसने हमें कई अचूक औषधियों का ज्ञान दिया है। इनमें से ही एक है, सर्प गंधा जो अपने अद्भूत गुणों के कारण पृथ्वी की दिव्य औषधि मानी जाती है।

सर्पगंधा एक पौधा है, जिसकी जड़ों का रंग पीले या भूरे रंग का होता है। वहीं, इसकी पत्तियों का रंग चमकीला हरा होता है और ये हमेशा तीन-तीन के जोड़े में होती हैं। इसके फूल का रंग सफेद और वायलेट होता है। ऐसा माना जाता है कि इस पौधे को घर में लगाने से सांप नहीं आते हैं।

साथ ही इसे सांप के काटने पर दवा की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका वैज्ञानिक नाम रावोल्फिया सर्पेंटिना (Rauvolfia Serpentina) है। इसे इंडियन स्नेकरूट के नाम से भी जाना जाता है। सर्पगंधा की जड़ को पीसकर इसके पाउडर को खाने के लिए भी उपयोग किया जा सकता है।

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  • अनिद्रा: सर्पगंधा का उपयोग अनिद्रा की समस्या से राहत पाने के लिए किया जा सकता है। एक शोध के अनुसार, सर्पगंधा में सेरोटोनिन (मूड को बेहतर करने वाला केमिकल) पाया जाता है, जिस कारण यह नींद की गुणवत्ता में सुधार करने का काम कर सकता है। इस लिहाज से कह सकते हैं कि सर्पगंधा के उपयोग से इंसोमनिया (घ्हेदस्हग्a) की अवस्था में राहत मिल सकती है।
  • उच्च रक्तचाप: शरीर में रक्तचाप के बढ़ने से कई तरह की समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। उच्च रक्तचाप की स्थिति में सर्पगंधा का सेवन इसे संतुलित करने का काम कर सकता है। इसके लिए इसमें पाए जाने वाले एल्कलॉइड रक्तचाप के स्तर को कम करने में सहायक हो सकते हैं।
  • पेट की समस्या: पेट की समस्याओं को दूर करने के लिए सर्पगंधा का उपयोग किया जा सकता है। इसमें पाए जाने वाले एल्कलॉइड के कारण यह पेट की समस्या में लाभ पहुंचाने में मदद कर सकता है।
  • तनाव: तनाव या Depression के उपचार में सर्पगंधा की जड़ों का प्रयोग किया जाता है।
  • अनिद्रा: भारतीय सर्पगंधा शरीर को आराम देने, शांत करने और नींद के लिए बहुत अच्छा है। यह अनिद्रा, बेचैनी या सामान्य थकान से पीड़ित लोगों को अपने नियमित कार्य करने की क्षमता प्रदान करता है। अगर आप अनिद्रा के रोगी हैं तो रात को सोने के समय एक चौथाई छोटा चम्मच सर्पगंधा चूर्ण घी के साथ मिलाकर खा लें।
  • यौन रोग: विभिन्न यौन समस्याओं में इस जड़ी का विशेष प्रभाव रहता है। इसको छोटी चंदन भी कहा जाता है। इस औषधि के प्रयोग से होने वाले लाभ स्थायी होते हैं और रोग का नाश होता है।

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