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वास्तुशास्त्र के ‘डॉक्टर’ बने- हरिकिशन सोमानी

गत 23 वर्षों से वास्तु के क्षेत्र में पारामर्शदाता के रूप में सीकर निवासी हरिकिशन सोमानी एक अत्यंत प्रतिष्ठित नाम हैं। देश-विदेश में अपनी सेवा देने के साथ हरिकिशन सोमानी की उपलब्धियों में अब वास्तुशास्त्र में पीएच.डी. की उपाधि भी शामिल हो गई है।

गत दिनों वास्तुविद एवं समाजसेवी हरिकिशन सोमानी को श्री महर्षि कॉलेज ऑफ वेदिक एस्ट्रोलॉजी, उदयपुर द्वारा वास्तु शास्त्र में पीएच.डी. की उपाधि से सम्मानित किया गया। कॉलेज द्वारा श्री सोमानी को वास्तु साइंस में गोल्ड मेडल, डिग्री एवं प्रमाण पत्र प्रदान किया गया है।

मूलत: सीकर निवासी हरिकिशन ने अपना शोध कार्य ‘‘वास्तु इन रेजिडेंशियल एंड इंडस्ट्रियल एरिया’’ विषय पर डॉ. हर्षद भाई जोशी के मार्गदर्शन में पूरा किया। हरिकिशनजी पिछले 23 सालों में वास्तु विज्ञान के क्षेत्र में कार्यरत हैं एवं सीकर में वास्तु क्षेत्र में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करने वाले प्रथम व्यक्ति हैं।


सामान्य परिवार में लिया जन्म

वर्तमान में राजस्थान निवासी डॉ. हरिकिशन सोमानी की देश ही नहीं अपितु विश्व के कई देशों के लिये प्रख्यात वास्तविद के रूप में अनूठी पहचान है। सन् 1998 में ‘‘सर्वेभवन्तु सुखिन:’’ की कामना के साथ डॉ. सोमानी ने आवासीय एवं औद्योगिक क्षेत्र में वास्तु परामर्श की शुरूआत की। व्यावसायिक सोच से आगे बढ़कर वे ‘‘सर्वमंगल’’ की कामना रूपी यह आलोक सफलतापूर्वक सतत रूप से फैला रहे हैं।

उनके द्वारा मार्गदर्शित कई वृहद स्तरीय प्रोजेक्टस कार्यान्वित हो चुके हैं, एवं अनेकों प्रोजेक्ट्स प्रगति पर हैं। डॉ. सोमानी का जन्म 30 सितम्बर 1960 को श्री सीताराम सोमानी के यहाँ लांचड़ी जिला हिसार (हरियाणा) में हुआ था।

उन्होंने सीकर से ही स्नातक स्तर तक की शिक्षा ग्रहण की। 16 अप्रैल 1984 को श्री रिद्धकरण सारड़ा (रेनवाल वाले, वर्तमान में हैदराबाद निवासी) की सुपुत्री लता के साथ परिणय सूत्र में बंध गये। वर्तमान में आपके परिवार में 1 पुत्र (राहुल) व 2 पुत्रियाँ (पारूल एवं चंचल) हैं।


ऐसे बढ़े वास्तु के पथ पर कदम

डॉ. हरिकिशन सोमानी की प्रबल भावना थी स्वास्थ्य आर्थिक व व्यापार से परेशान लोगों के लिये सुखी जीवन का मार्ग प्रदर्शित करना। उनकी इसी भावना ने ही उन्हें वास्तुशास्त्र की ओर अग्रसर किया। डॉ. सोमानी जनहित की भावना से प्रेरित होकर लगभग पिछले 23 वर्षों में वास्तुशास्त्र की अपनी रूचि को परिवर्धित कर अपनी विशेषता बनाते हुए वैदिक वास्तुशास्त्र का देश विदेश के विविध क्षेत्रों में ध्वज फहरा चुके हैं।

उन्होंने सन् 2011 में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन वास्तु की उपाधि प्राप्त की। अब डॉ. सोमानी को श्री महर्षि कॉलेज ऑफ वैदिक एस्ट्रोलॉजी द्वारा वास्तुशास्त्र में पीएच.डी. की उपाधि से सम्मानित किया गया है।


समाजसेवा की तरह उनकी वास्तु सेवा

डॉ. सोमानी की शोध यात्रा पीएच.डी. पर भी थमी नहीं है बल्कि यह सतत् रूप से चलती ही जा रही है। इसी का परिणाम है कि उन्होंने वास्तु व विभिन्न ऊर्जाओं के संतुलन तथा नकारात्मक ऊर्जा के निष्कासन के लिये अपने तरीके विकसित किये हैं। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य समस्या के समाधान, विद्यार्थी व युवाओं में आत्मविश्वास की वृद्धि, पूजा, हवन, ध्यान, शांति व समृद्धि जैसे मुद्दों पर भी डॉ.सोमानी ने गहन शोध से सफलता हासिल की है।

किसी भी भूमि व भवन की समस्त ऊर्जाओं का अध्ययन करके उसका सही एवं सटिक विश्लेषण करना उनकी विशेषता को सिद्ध करता है। वैसे तो यह सेवा भी अप्रत्यक्ष समाजसेवा ही है, लेकिन इसके साथ वे समाजसेवी गतिविधियों से सीधे रूप से भी सम्बद्ध हैं। डॉ. सोमानी वर्तमान में श्री माहेश्वरी समाज प्रन्यास, सीकर के उपाध्यक्ष एवं श्री गोपीनाथ गौशाला, सीकर के कार्यकारिणी सदस्य के दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं।

सन् 2003 में डॉ. सोमानी की सोच व सुझाव ने ही माहेश्वरी युवा मंच, सीकर की स्थापना की नींव रखी। डॉ. सोमानी, श्री श्याम प्रेमी मंडल, सीकर के वरिष्ठ सदस्य हैं एवं पूर्व में लायंस क्लब, सीकर में सभी पदों के दायित्व का निर्वहन कर महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं।


विशुद्ध विज्ञान है वास्तुशास्त्र

डॉ. सोमानी का कहना है वास्तुशास्त्र वास्तव में विज्ञान का ही दूसरा नाम है। भारतीय ऋषि मुनियों ने पंच महाभूतों के संतुलन की बारीकियों को खोजकर ही इसके नियम बनाए हैं। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु एवं आकाश, इन पंच महाभूतों का समानुपात ही वास्तु है। पंच महाभूतों के समुचित समावेश से युक्त भूमि, आवास, देवस्थान, व्यवसाय व उत्पादन क्षेत्र का समुचित विचार इस विद्या के अंतर्गत आता है।


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