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लॉकडाउन के बाद क्या अब ऑनलाइन की और बढ़ेंगे कदम?

कोरोना वायरस महामारी ने जनमानस पर स्वास्थ्य के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था पर न सिर्फ प्रहार किया है, बल्कि इसके परिणाम स्वरूप इन व्यवस्थाओं में भी परिवर्तन की शुरुआत की है इनमें प्रमुख है, घटते सीधे सामाजिक संपर्क और ऑनलाइन सामाजिक कम्पनियों ने अपनी संपर्क व व्यवसाय के लिये खुला आकाश। लॉकडाउन के कारण कई कार्यप्रणाली विवशता में वर्क फ्रॉम होम थी, लेकिन इस दौर में उन्हें जो भी लाभ हुआ, इसके बाद उन्होंने इसे स्थायी रूप से अपनाने का ही मन बना लिया है।

यही स्थिति अन्य व्यवसाय में भी है। अभी तक ऑन लाईन व्यावसायिक प्लेटफार्म के बावजूद आम व्यक्ति इनसे दूर था, लेकिन वर्तमान दौर में बढ़ती होम डिलेवरी की मांग व आम व्यक्ति के इनके द्वारा खरीदी करने का आदी बन जाने की पूरी संभावना है ऐसे में यह प्रश्न उठ खड़ा हुआ है कि क्या अब ऑनलाइन की ओर ही हर क्षेत्र के कदम बढ़ेंगे? क्या परम्परागत काम-धंधे सिमटकर रह जाएंगे? भावी उद्योग व्यवसाय के स्वरूप के अस्तित्व को लेकर महत्वपूर्ण बन चुके इस विषय पर आईये जाने इस स्तंभ की प्रभारी सुमित्रा मूंदड़ा से उनके तथा समाज के प्रबुद्धजनों के विचार।

लॉकडाउन से ऑनलाइन की तरफ बढ़ते कदम:
– सुमिता मूंध़ड़ा, मालेगांव

प्रधानमंत्री मोदी वर्षों से भारत की जनता को बार-बार डिजिटीकरण सीखने और अपनाने के लिए निवेदन कर रहे थे। भारत की आधी जनता ने उनकी बात पर अमल किया और आधी जनता आजतक पुरानी परिपाटी पर ही चल रही थी। पर कोरोना महामारी ने आज सबको ऑनलाइन और डिजिटलीकरण अपनाने के लिए मजबूर कर दिया है। जब तक कोरोना वायरस की दवा या टीका तैयार नहीं हो जाता है , हमें अपने स्वास्थ्य के लिए सजग तो रहना ही पड़ेगा और इसके लिए ऑनलाइन का रास्ता ही सबसे सुरक्षित है। अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से- बड़े व्यापारी संगठनों ने तो वर्क फ्रॉम होम को आसानी से अपना लिया है, इससे उनको मुनाफा भी हो रहा है। इससे कर्मचारियों की सुरक्षा के साथ-साथ उनके ऊपरी ख़र्चे भी कम हो गए हैं। पर मध्यमवर्गीय व्यवसाय पर इसके भारी दुष्परिणाम दिखाई देंगे, जिसपर हमारी अर्थव्यवस्था टिकी है। हर व्यापार व काम को तो ऑनलाइन नहीं किया जा सकता।

सुमिता मूंध़ड़ा

सामाजिक और पारिवारिक दृष्टिकोण से – मोबाईल के कारण रिश्ते वैसे भी सिमटने लगे थे, आपस में मिलना-जुलना कम होता जा रहा था, अब कोरोना लॉकडाउन ने इसपर आग में घी का काम किया है। भविष्य में पारिवारिक कार्यक्रम अब अपनों तक सिमट कर रह जाएंगे। सामाजिक कार्यक्रमों में भी गिरावट आएगी , मिटिंग्स तो वैसे भी ऑनलाइन होने लगी ही है। हम देख ही रहे हैं कि माहेश्वरी समाज के उत्पति दिवस ‘महेश नवमीं’ के सभी कार्यक्रम ऑनलाइन लिए जा रहे हैं ; इससे सामाजिक दूरियां बढ़ने ही वाली है। चारदीवारी में सिमटकर रह जाएंगे हमारी दोस्ती-रिश्ते-नाते। सोशल डिस्टेंसिग का बस एक सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि बाहरवालों से दूरी और परिवार से नजदीकियां बढ़ी है।


ऑनलाइन क्रय विक्रय समय की मांग:
– शालिनी चितलांगिया, राजनांदगांव

वर्तमान में कोरोना महामारी से निजात पाने हेतु कई तरह के नियम लॉकडाउन के रूप में जनता के लिए लागू किये गए। इससे हमारी अर्थव्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ रहा था लेकिन इसी प्रभाव को संतुलित करने हेतु ऑनलाइन क्रय विक्रय प्रणाली ने वास्तव में बहुत ही सहायक, सुरक्षित, सुचारू और बहुत अच्छी भूमिका निभाई है। एक क्लीक पर आपकी पसंद की और गुणवत्ता से परिपूर्ण वस्तु का आप तक पहुँच जाना एवं रुपये का भुगतान भी ऑनलाइन हो जाना वर्तमान समय की महती आवश्यकता थी। अब यह हर आयु वर्ग के लोगो द्वारा अपना ली गई है, इसलिए ऐसा लगता है आगे भी इसका विस्तृत रूप ही देखने मिलेगा।

आर्थिक-सामाजिक सर्वेक्षण
शालिनी चितलांगिया

व्यवसाय चाहे पारंपरिक हो या आधुनिक उसे समय और मांग के अनुसार बदलते रहना ही चाहिए जिस प्रकार किसी भी वस्तु का फैशन बदलता रहता है, पुरानी की जगह और अच्छी एवम नई वस्तु आ जाती है। उसी प्रकार व्यवसाय करने के तरीके में ऑनलाइन प्रणाली का समावेश न केवल आपको टेक्नोलॉजी का जानकार बनाएगा बल्कि आपके व्यवसाय को भी दूर दूर तक फैलाने में सहायक सिद्ध होगा। अतः मुझे लगता है ऑनलाइन व्यवसाय की ये क्रांति आगे तक जाएगी और हर प्रकार के व्यवसायों को अपने अनुरूप ढालकर पारंपरिक व्यवसाय में आधुनिकता का सकारात्मक मेल कर बहुत लाभकारी सिद्ध होगी।


नये अंदाज नई सोच के साथ:
– पूजा नबीरा, काटोल

लॉकडाउन के खुलने के पश्चात् भी आत्मनियंत्रण के साथ ही दिनचर्या बनानी होगी. किन्तु एक उद्घोष आत्मनिर्भरता का भी आकार ले रहा है। यदि हमें इस और भी सोचना है तो लोकल अर्थात निजी स्थान की बस्तुओं को भी बढ़ावा देना ही होगा। स्थानीय चीजों के लिए जागृति हेतु यदि हाथ न उठे तो मध्यम वर्ग भी हताश हो जायेगा। अतः आवश्यक यह है कि जनमानस यह बनाया जाये कि ऑनलाइन की तिलस्म को छोड़ निश्चित नियमों का पालन करते हुए आसपास की दुकानों को ही खरीदी केंद्र बनाया जाये।

पूजा नबीरा

लॉकडाउन की ऑनलाइन की मज़बूरी कहीं आदत न बन जाये वरना अर्थव्यवस्था तो रसातल में पहुँच ही गई है सामान्य जन जीवन का मनोबल भी बिखर कर कहीं अवसाद बन महामारी के साइड इफ़ेक्ट के रूप में दुनिया को पंगु न बना दे। अतः ऑनलाइन ख़रीददारी की जगह समुचित सुरक्षा नियमों का पालन कर खुदरा बाजार से ही खरीदी करें। निश्चित ही वर्क फ्रॉम होम ने एक नई सोच को जन्म दिया और कार्य गति को सुचारु रूप से बरकरार रखने में एक नया दृष्टिकोण भी विकसित किया जो एक सकारात्मक कदम रहा किन्तु खरीदी के लिए एक मुहीम की तहत स्वदेशी और स्थानीय बस्तुओं को ही प्राथमिकता देनी होगी।


ऑनलाईन और ऑफलाईन दोनों जरूरी:
– भगवती प्रसाद बिहानी,आसाम

लॉकडाउन का तो बहाना है, लोग तो पहले से ही ऑनलाइन सामान मंगाने के आदि हो चुके हैं। लॉकडाउन के कारण तो अब हम दो कदम और आगे बढ़ गए हैं । इससे मंझोले व्यापारी का तो डूबना तय है। ना लोग दुकान पर जायेगे, ना सामान खरीदेंगे, तो नुकसान होना तय ही है। सरकार को शुरुआत में तो अर्थव्यवस्था में लाभ मिलेगा पर आने वाले समय में यह भारी नुकसान की तरफ जाती दिखाई दे रही है।

भगवती प्रसाद बिहानी

सरकार को चाहिए कि कुछ ऐसे नियम बनाए जो ऑनलाइन भी काम होता रहे और व्यापारियों को नुकसान भी झेलना नहीं पड़े। कई ऑनलाईन शॉपिंग कंपनियां हैं उनकी सेल तो हर साल बढ़ती ही जा रही है, लेकिन नुकसान भी कई गुना बढ रहा है। जैसे फ्लिपकार्ट जिसको 2018-19 में 3837 करोड का नुकसान का अनुमान था फिर भी वह कम दरों में सामान धड़ल्ले से बेच रही है।


हितकर ही होगा ऑनलाईन जीवन:
– अनिता ईश्वरदयाल मंत्री, अमरावती

लॉकडाउन से पहले का जीवन लॉकडाउन के बाद के जीवन से बिल्कुल अलग होगा। कोरोना महामारी से वैश्विक स्तर पर बदलाव का संकेत मिलने लगा है। लॉकडाउन के बाद सभी की जीवन की असली लड़ाई शुरू होगी। लॉकडाउन के बाद स्वयं की और अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारी ज्यादा होगी। सारी बातों का विचार करते हुए एसा लगता है कि वैक्सीन नहीं निकली तब तक सभी का झुकाव डिजिटल की और रहेगा। लॉकडाउन में कंपनी मे कार्यरत कर्मचारी घर से ही कार्य कर रहे है। इससे कंपनी का सबसे बड़ा खर्चा इलेक्ट्रीक का कम हुआ है।

आर्थिक-सामाजिक सर्वेक्षण
अनिता ईश्वरदयाल मंत्री

किराना दुकानदार अपनी सेवा घर बैठे ही माल की सप्लाई दे रहे हैं। पठन-पाठन, सभा, शिबिर का भी तरीका बदल गया है। सामाजिक कार्य भी ऑनलाइन पटरी पर दौड़ रहे हैं। ऑनलाइन से सगाई भी हो रही है ।संस्थानो के ऑनलाइन क्लास संचालन से भवन किराया, कर्मचारियो का वेतन, भवन की साफ सफाई सहित अन्य खर्च कम होगा। इसे देखते हुए ऐसा लगता है कि अब ऑनलाइन कोचिंग संचालित करने से खर्चा कम होगा तो विद्यार्थियो की फीस भी कम होगी और आम परिवार को इसका लाभ मिलेगा। विद्यार्थियों को घर बैठे पढ़ने की सुविधा मिलेगी, तो अपना गाँव,घर छोड़कर दूसरी जगह नही जायेगा। घर पर ऑनलाइन पढ़ाई से हॉस्टल का रहने का किराया, खाने-पीने सहित अन्य खर्च भी कम होंगे।


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Sri Maheshwari Times

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