स्वदेशी को अपनाने में क्या खरे उतर पाऐंगे हम?
कोरोना महामारी ने हमें ‘आत्मनिर्भर’ होने का सन्देश दिया है। इसके लिये स्वदेशी उत्पादों को प्राथमिकता दी जाएगी। लेकिन प्रश्न ये है कि हमारी सोच अभी भी उत्पादों के मामले में “इम्पोर्टे ही बेस्ट” वाली बनी हुई है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या स्वदेशी को अपनाने में खरे उतर पाएंगे हम? क्या हमारी सोच “लोकल ही बेस्ट” की बन पाएगी। इस विषय पर आईये जानें इस स्तम्भ की प्रभारी सुमिता मूंदड़ा से उनके तथा समाज के प्रबुद्धजनों के विचार।
स्वदेशी का अर्थ समझना जरूरी:
– सुमिता मूंध़ड़ा, मालेगांव
बरसों से हम भारतीयों से निरंतर गुजारिश की जा रही थी कि आत्मनिर्भर बनों, देशीअपनाओ, देश में रोजगार बढ़ाओ, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करो, पर नतीजा कुछ भी नहीं निकला। आज कोरोना महामारी के कारण हमें आत्मनिर्भर बनने का अहसास हुआ। भारत को स्वदेशी उपयोग और आत्मनिर्भरता का पाठ सीखने के लिए बहुत बड़ी जानलेवा कीमत चुकानी पड़ी है। काश हमने पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के सरल-सपाट देशी परिभाषा को आत्मसात किया होता कि स्वदेशी क्या है?
‘‘स्वदेशी वस्तु नहीं चिंतन है।
स्वदेशी तंत्र है ऋषि जीवन का।
स्वदेशी मंत्र है सुख शाँति का।
स्वदेशी शस्त्र है युग क्रान्ति का।
स्वदेशी सम्मान है श्रमशीलता का।
स्वदेशी समाधान है बेरोजगारी का।
स्वदेशी आन्दोलन है सादगी का।
स्वदेशी संग्राम है जीवन मरण का।
स्वदेशी कवच है शोषण से बचने का।
स्वदेशी प्रतीक है आत्मसम्मान का।
स्वदेशी संरक्षक है प्रकृति पर्यावरण का।
स्वदेशी आग है अनाचार भस्म करने का।
स्वदेशी अधार है समाज के उत्थान का।
स्वदेशी उपचार है मानवता के पतन का।
स्वदेशी ही मार्ग है राष्ट्र के परम वैभव का।’’
मानसिकता को भी बनाऐं स्वदेशी:
-उर्मिला तापड़िया (राजस्थान)
स्वदेशी हमारा विचार हो, यह अति आवश्यक है। सिर्फ उत्पाद को लेकर चर्चा नहीं हो बल्कि हमारी मानसिकता स्वदेशी हो, हमारा संपूर्ण जीवन का दृष्टिकोण स्वदेशी होना चाहिए। अभी हम स्वदेशी विचारों की बात करते हैं, तो मेरे मन में एक प्रश्न आता है कि क्या मदर्स डे, फादर्स डे यह हमारी भारतीय संस्कृति है? हम सभी जानते हैं कि नहीं हैं, तो हमारी युवा पीढ़ी की मानसिकता पर पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण को मिटाना होगा। मेरा मानना है कि छोटे-छोटे प्रयोगों द्वारा हमारी वैचारिकता को बदलना होगा और इस स्थिति में विदेशी उत्पादों से लगाव स्वत: ही कम होगा।
देशी उत्पाद हम खरीदें उससे पहले सरकार को इस बात का भी अवश्य ध्यान रखना होगा कि हमारे उत्पाद की गुणवत्ता बेहतर हो। साथ ही उनका मूल्य विदेशी उत्पादों से कम ना हो, तो अधिक भी नहीं हो। अगर कीमत व गुणवत्ता दोनों पर हम खरे उतरते हैं तो हमें हमारे देशवासियों को देशी वस्तुओं को खरीदने के लिए जगाने की आवश्यकता नहीं होगी वे स्वतः ही जाग जाएंगे। देश सेवा के लिए इससे अच्छी बात क्या होगी कि इससे भारतीय कारीगरों, कामगारों और उत्पादकों को लाभ मिलेगा, कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन मिलेगा व देश को आर्थिक, सामाजिक और व्यापारिक दृष्टि से विकसित किया जा सकता है।
एक वृहद योजना की जरूरत:
-नवीन सारड़ा, दिल्ली
केंद्र सरकार का ‘वोकल फॉर लोकल’ का कदम ‘‘मेक इन इंडिया’’ का दूसरा रूप नहीं है, बल्कि यह उससे बेहतर है। मेक इन इंडिया में विदेशी कंपनियां भारत में आकर उद्योग लगाने पर काम करती हैं, जबकि ‘वोकल फॉर लोकल’ में स्वदेशी के साथ ही स्थानीय प्रोडक्टस पर फोकस किया जाएगा। हमारा नारा और हमारा सपना ‘चाहत से देसी, जरूरत में देशी और मजबूरी में विदेशी’ अब आगे बढ़ता दिखाई दे रहा है।
देशी की बात करने का मतलब यह नहीं है कि विदेशों से व्यापारिक संबंध समाप्त कर लेना, ऐसा बिल्कुल नहीं है। भारत के कई देशों से व्यापारिक संबंध रहे हैं, लेकिन जो हमारे देश में बन सकता है या उपलब्ध है, उसका इस्तेमाल अब हम करेंगे। समाज में देशी अपनाने को लेकर एक जनजागरुकता अभियान शुरु करना होगा। इस हेतु राष्ट्रीय स्तर से लेकर श्रंखलाबद्ध संघटनात्मक तरीके से एक वृहद् योजना की आवश्यकता है।
स्वदेशी वस्तुओं को अपनाकर आत्मनिर्भर बने:
-शरद गोपीदासजी बागडी, नागपुर
कोरोना महामारी ने हमें संदेश दिया है कि हम स्वदेशी वस्तुओं को अपनाकर आत्मनिर्भर बने। महामारी के बाद के आर्थिक संकट के समय भी स्वदेशी वस्तुओं को अपनाकर अपनी अर्थव्यवस्था को संबल देना बहुत जरूरी होगा।सफलता के लिए सबसे जरूरी होता है कि हम समय व परिस्थितियों अनुसार ढालकर अपने आप को बदल ले। अभी लोकडाऊन के 60-65 दिनों में हमने अनुभव किया कि हमारे अलमारी मे रखें ब्रांडेड कपडे, लक्झरी आदि हमारे जीवन को बचा नहीं सकती, इस अनुभव को हमारे बचें हुये जीवन में प्रत्यक्ष उतारना होगा।
देशी को अपनाने के लिए हम सबको थोडी थोड़ी अपनी सोच, चरित्र, विचारों मे बदलाव लाना होगा व सादगी, सरलता, सच्चाई अपनाना होगी। कभी कभी विदेशी वस्तुओं पर हमारा झुकाव अपने आप को सबसे अलग, श्रेष्ठ, अमीर साबित करना भी होता है। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने इंडियन चेंबर आँफ कामर्स के संबोधन में हमारे समाज, देश की कमजोर कड़ी, नब्ज पकडते हुये कहा कि आत्मनिर्भरता की शुरुआत हमें परिवार से करने की जरुरत है। अर्थात इस समय आत्मनिर्भरता की शुरुआत से पहले हम सबको परिवार की परिभाषा समझना जरूरी है।
कोरोना ने हमें स्वावलम्बी बना दिया:
-गोवर्धन दास बिन्नाणी, बीकानेर
सरकार भी चाहती है कि देश में वे सब सामान बनें जिसकी खपत ज्यादा है ताकि आयात को कम किया जा सके। इसलिये आवश्यक है कि देश के ग्रामीण इलाकों में उद्योगों की स्थापना की जाय ताकि ग्रामीण स्तर पर ही रोज़गार के अत्यधिक अवसर उत्पन्न होंं इसके चलते शहरों की ओर पलायन भी रुकेगा और सभी प्रकार से लागत में भी कमी लायी जा सकेगी। धीरे-धीरे, इन उद्योगों द्वारा निर्मित उत्पादों की गुणवत्ता में सुधारात्मक कदम उठाकर उत्पादकता में वृद्धि का प्रयास करते रहने से हमें निश्चित रूप से उत्पाद सस्ती दरों पर उपलब्ध होने लगेंगे।
आज की विपरीत परिस्थितियों में हमें उपरोक्त की ओर सोचना चाहिए एवं केवल देश में उत्पादित वस्तुओं के उपयोग करने का प्रण लेना चाहिए। समाज के हर तबके के लोगों को इस विशेष प्रयास में शामिल होना आवश्यक है। विदेशी उत्पादों पर निर्भरता अब कम करनी ही होगी। समय आ गया है कि जब हम सभी नागरिक मिलकर आपस में एक दूसरे के भले के लिए काम करें एवं आगे बढ़ें।
समाज मे प्रत्येक परिवार ने डोनेशन देना चाहिये …
समाज का एक ही बँक खाता हो , खाता संचालन 3संयुक्त लोक करे ..
प्रत्येक शहर मे समाज का सुंदर , स्वच्छ भवन हो …
भवन संचालन का स्वतंत्र पॅनल हो ….
प्रतिदिन समाज कार्यकारिणी की बैठक मे समाज विषयक समस्या पर चिंतन हो …