सगाई से विवाह का अंतराल- दाम्पत्य सम्बंध को मजबूत बनाता है या कमजोर ?
आज हमारे समाज में सगाई से विवाह तक का सफर भी नाजुकता से गुजरता है। जब तक विवाह ना हो जाये माता-पिता की चिंता बनी ही रहती है। सगाई से विवाह होने तक ऐसी कोई विध्न-बाधा ना आ जाये कि संबंध जुड़ने से पहले ही टूट जाये। यही कारण है कि जहां पहले सगाई से विवाह का अंतराल बरस दो बरस तक रखा जाता था वहीं समाज अब धीरे-धीरे चट मंगनी पट ब्याह की तरफ रुख करने लगा है। वर्तमान दौर में दाम्पत्य के रिश्ते विवाह के बाद भी तेजी से बिखरने लगे हैं। ऐसे में इसका दोष सगाई के बाद जल्द विवाह पर भी मड़ा जाने लगा है।
अत: विचारणीय हो गया है कि सगाई का लंबे समय तक रखना होने वाले दाम्पत्य संबंध को मजबूत/कमजोर बनाता है? समाज व पारिवारिक व्यवस्था के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण इस विषय पर प्रबुद्ध पाठकों से उनके विचार आमंत्रित हैं। आपके ये विचार समाज को नई दिशा दिखाऐंगे।
कम से कम समय ही श्रेयस्कर
सुमिता मूंधड़ा, मालेगांव
चूंकि आजकल विवाह-संबंध ही नहीं सगाई-संबंध भी बड़ी आसानी से टूटने लगे हैं जिसका एक बड़ा कारण सगाई से विवाह तक लंबा अंतराल रखना भी होता है। हजारों में से एकाध अपवाद को छोड़कर सगाई-संबंधों में लड़का-लड़की की पढ़ाई अथवा किसी अन्य कारण विशेष से सगाई और विवाह के बीच का समय अधिक रखना पड़ सकता है अन्यथा लंबे समय तक सगाई को रखने का आजकल कोई औचित्य दिखाई नहीं देता क्यूंकि लड़का/लड़की की सारी जानकारी तो सोशल मीडिया द्वारा आसानी से उपलब्ध होने लगी है।
जिससे निजी स्तर पर भी दोनों पक्ष एक-दूसरे की सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेते हैं। लड़का-लड़की को सगाई के बाद ही नहीं सगाई के पहले भी एक-दूसरे को समझने की अनुमति मिलने लगी है। लड़का-लड़की भी बालिग, पढ़े-लिखे और समझदार होते हैं; बिना किसी दबाब के सोच-समझकर ही फैसला लेते हैं।
अधिक समय तक सगाई को खींचना दोनों पक्षों पर मानसिक ही नहीं आर्थिक बोझ ही बढ़ाता है। कोई भी दो इंसान समान विचार और स्वभाव के नहीं हो सकते हैं और ना ही शत-प्रतिशत गुणवान। आपस में तालमेल बिठाकर ही दाम्पत्य जीवन का आनंद लिया जा सकता है। चाहे जितना भी समय दिया जाए दो लोगों को आपस में एक-दूसरे को समझने के लिए कम ही पड़ने वाला है।
अगर परिवार-खानदान, सामाजिक-आर्थिक स्तर, पढ़ाई-लिखाई, संस्कार-संस्कृति आदि मनमुताबिक मिल जाये तो विवाह में देर नहीं करने में ही दोनों पक्षों की भलाई है। एक-दूसरे के प्रति इधर-उधर की सुनी-सुनाई बातों पर ध्यान ना देकर दोनों परिवारों को सगाई से पूर्व ही आपस में खुलकर चर्चा करनी चाहिए साथ ही विवाह की तैयारियों के लिए जितना यथोचित समय चाहिए उसके अनुसार विवाह की तिथि निर्धारित कर देनी चाहिए।
दोनों पक्षों को विशेषकर नव-जोड़े को सगाई के बाद ही नहीं विवाह के बाद भी धैर्य, संयम, सामंजस्य और समझदारी बनाये रखना चाहिए।
परिस्थिति अनुसार सभी का दृष्टिकोण
सतीश लाखोटिया, नागपुर
भारतीय संस्कृति में परिणय बंधन का अति विशेष महत्व है। द्वापर युग, त्रेतायुग में भी विवाह बंधन किस तरह जुड़ते थे। वह हमने ग्रंथों से लेकर संतो की मुख वाणी से पढ़ा-सुना है। समयकाल के हिसाब से समाज ने चट मंगनी पट ब्याह से लेकर, सगाई और शादी के छोटे, बडे अंतराल के कई अनुभवो को साक्षी मानकर होनेवाले संबंधो में सावधानी बरतकर ही अपने कदम इस दिशा में बढाए है। इसमें दो राय नही।
अब एक नए युग की शुरुआत, और इस युग में हम नित-प्रतिदिन नई नई खबरों से अवगत होकर आश्चर्य के भाव से सोच में पड़ जाते हैं। यह कटु सत्य है कि आधुनिक युग का दौर मोबाइल का दौर, बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने का दौर, और न जाने किस-किस बारे में अपने आप को विशेष बताने का दौर है। संबंधो की बात की शुरुआत में ही पहले बच्चे एक दूसरे को मिलेंगे।
बच्चे एक दूसरे को फोन पर परखेंगे। बच्चों के हाँ बोलने पर अभिभावक आगे की बात करेंगे। यह है आज की कड़वी सच्चाई। जिन संबंधों की बुनियाद ही इस इस बात से शुरु होती है। वहाँ बाकी सब बातें करना मेरी नजरों में बेमानी। शादी संबंधों में समाज के हर बंधु की प्रवृत्ति, परिस्थिति, माहौल के अलग-अलग दृष्टिकोण हो सकते हैं।
अति बुरी चाहे अंतराल हो या न हो
महेश कुमार मारू,मालेगाँव
अति सर्वत्र वर्जयेत! यह उक्ति बहुत विचार करने पश्चात हमारे पूर्वजों ने लिखी थी। प्रत्यक्षत: आज की इन अत्यन्त गतिमान परिस्थितियों में ये अधिक प्रामाणिक सिद्ध हो रही हैं। संचार माध्यमों का आवश्यकता से अधिक उपयोग, इन माध्यमों द्वारा अनगिनत मित्रों से जुड़ना और उनमें अधिकांश ऐसों का होना, जिन्हें हम जानते तक नहीं हैं, न ही उनके स्वभाव से ही परिचित होते हैं।
मनुष्य के जितने भी नैसर्गिक गुण-अवगुण होते हैं, वे न्यूनाधिक मात्रा में सभी में विद्यमान होते ही हैं। जहां तक सगाई और विवाह के मध्य अंतर होता है, वह परिस्थति जन्य होता है। अनावश्यक कोई भी विलम्ब नहीं चाहता है। यह समय आपसी विश्वास को प्रगाढ़ करने का होता है, साथ ही साथ हम हमारे उन तथाकथित सोश्यल मित्रों को भी परख सकते हैं कि वे सभी हमारे भावी वैवाहिक सम्बन्धों को बाधित करने का प्रयास तो नहीं कर रहे हैं।
यह परिस्थिति हमें परिपक्व भी बनाती है, तो अशक्त भी। हमें अपने पर विश्वास करना, अपने चयनित जीवनसाथी पर विश्वास करना अपने परिवार जनों पर एवम् भावी सम्बन्धियों पर विश्वास करना आना ही चाहिये, तभी हम हमारे भावी वैवाहिक जीवन की नींव को सुदृढ़ बनाकर अपने सुन्दर स्वभाव से भव्य पारिवारिक महल बना सकते हैं।
कम ही सही पर अंतराल जरूरी
पूजा नबीरा, काटोल नागपुर
सगाई से शादी के बीच के अंतराल को आज के सन्दर्भ में उचित इसलिये कहा जा सकता है क्योंकि कुछ समय बच्चों को एक दूसरे को समझने का अवसर मिल जाता है। वे वैचारिक स्तर पर एक दूसरे को समझ सकते हैं। निश्चित तौर पर आज का समय विचार थोपने का बिलकुल नहीं, परिपक्वता से यदि वे परिवारों की विभिन्नता को आपस में साझा कर स्वयं भी एक दूसरे को समझ कर ग्रहस्थ जीवन में प्रवेश करें, तो कुछ हद तक समस्याओ को टाला जा सकता है। बशर्ते कि एक दूसरे को गुमराह न करें बल्कि समझने का प्रयास करें।
लड़के-लड़कियाँ दोनों ही अब अपनी स्वतंत्रत सोच रखते हैं व अपने दृष्टिकोण को वे समझा सकते हैं। सगाई के पहले भी सहज़ बातचीत के अवसर से भी उन्हें वंचित नहीं किया जाना चाहिये। कुछ हद तक लम्बा अंतराल न सही, थोड़ा समय लेना लाभकारी हो सकता है। यदि आपसी तालमेल और वैचारिक आदान प्रदान द्वारा वे स्वस्थ्य तरीके से अपने-अपने आगामी स्वप्न और सोच को सही तरह से विमर्श कर सकते हैंं।
पूर्ण नहीं तो कुछ हद तक विच्छेद को रोक सकें। सगाई और शादी के बीच कुछ समय अवश्य देना चाहिए जिससे समय का विवेक पूर्ण उपयोग कर बाधाओं पर नियंत्रण पाया जा सके।
विवाह की मजबूत नींव के लिये जरूरी अंतराल
इंजी शालिनी चितलांगिया, छत्तीसगढ़
जब दो लोगों में वैवाहिक संबंध जुड़ते हैं तो वो दो परिवारों के रहन-सहन, विशेषताएं, प्राथमिकता इत्यादि भावनाओ को साथ लिए एक-दूसरे के साथ रहने पर अपनी झलकियां छोड़ते हैं। जो आदतें और दिनचर्या है, उसमें व्यक्ति विशेष रूप से बचपन से ढलता हुआ आया रहता है इसलिए उसे बदलना या उसमे बदलाव कर सामने वाले के हिसाब से रहना ये कार्य शादी के बाद हर जोड़े को करना पड़ता है।
जो सगाई के बाद मिल जाता है इससे दो लोगों के बीच ये तय हो जाता है कि वे आपस में एक- दूसरे के साथ विवाह कर एक-दूसरे को पूर्ण कर पूरक बन पाएं या नहीं।
आपसी समझ, रिश्तों में लचीलापन, वैचारिक आदान-प्रदान, आपसी तालमेल ये घटक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सगाई से शादी के बीच की अवधि अधिक होने से लाभ ये होता है कि दो लोगों को इन घटकों पर विचार करने और दाम्पत्य जीवन की नींव को मजबूत करने का उपयुक्त समय मिल जाता है। जब नींव ही मजबूत होगी तो वैवाहिक इमारत तो सौ गुना मजबूत बनेगी क्योंकि किसी भी व्यक्ति विशेष के रहन-सहन और दिनचर्या को समझने में अच्छे खासे समय की आवश्यकता होती है।
अतः पुराने समय जितना अन्तराल तो नहीं क्योंकि आज तो संपर्क के बहुत साधन उपलब्ध हैं लेकिन सगाई व शादी के बीच कम से कम 4-6 महीने का अंतराल होना चाहिए और इस बीच जो नव दंपत्ति बनने वाले हैं उन्हें पर्याप्त अवसर मिल जाता है कि वे आत्मनिर्भर होकर विवाह जैसे पवित्र बंधन की वास्तविकता समझें और सही निर्णय लेकर दाम्पत्य जीवन सुखद बनाएं।