सांस्कृतिक धरोहर है, वास्तविक धन संपदा
होली जलाकर, रंग खेलकर, फाल्गुन को अर्थात् संवत के आखरी मास को हम विदा कर रहे हैं। नवीन संवत्सर का प्रारंभ होगा। आरंभ शुभ से होना चाहिये तब ही तो वर्ष शुभ होगा। माना कि आजकल हमारे अधिकतर कारोबार वैश्विक परम्परा के अनुरूप जनवरी से दिसम्बर तक होते हैं परंतु हमारे तीज त्यौंहार, शादी-ब्याह तो हमारे हिंदू पंचांग के अनुसार ही होते हैं और ये सब हमारी जलवायु और कृषि प्रधान सभ्यता के अनुरूप बनाये गये हैं। हमें इसकी आवश्यकता और महत्व को जानना, समझना और समझाना चाहिये। सांस्कृतिक धरोहर है, वास्तविक धन संपदा
ठंड के बाद गर्मी का प्रकोप। शीतलता से भरे शरीर को एक दम से उष्ण वातावरण के लिये तैयार करना। आधुनिक चिकित्सा पद्धति में जिसे ‘‘डिटोक्सिन’’ करना कहते हैं और हजारों खर्च किये जाते हैं। इन पार्लरों में वहां हमारी सनातनी अनुमती संस्कृति में जीवन के आवश्यक क्रियाकलापों को जीवन शैली बना दिया। कालांतर में इस पर धर्म का कलेवर चढ़ गया और ये सर्वग्राह्य बन गई।
होली के बाद गर्मी को स्वीकार करते हुए सीतला माता को पूजते हुये ठंडी तासीर के भोजन को पर्व रूप में स्वीकार करना और संवत प्रारंभ होते ही नवरात्रि को उपवास द्वारा शरीर को डीटॉक्सीन करना। फलाहार (फल का सेवन) द्वारा शरीर को गर्मी सहने लायक बनाने का सफल सहज प्रयास।
ठीक इसी प्रकार शरद के आगमन पर शारदीय नवरात्र में नौ दिन फलाहार कर शरीर को पुन: शीत हेतु तैयार करना।
एक ओर सुंदर उपचार पद्धति एकादशी के दिन भी फलाहार। हर चौदह दिन बाद नियमित रूप से शरीर को टॉक्सीन मुक्त करना।
साधारण दिनचर्या, जीवनशैली के साथ आप अपने स्वास्थ्य को संभालते हुए जीवन का, भोजन का आनंद उठा सकते हैं।
हमारे सभी रीति रिवाज और त्यौहार इसी प्रकार शारीरिक स्वस्थता, कृषि विशेष, मौसम विशेष को ध्यान में रखकर बनाये गये हैं।
ये त्यौंहार रोजमर्रा की जिंदगी की एकरूपता को हटाकर जिंदगी की राह को सुंदर और आकर्षक बनाते हैं। हमें भी इन्हें समारोह पूर्वक मनाकर जीवन को आनंदमयी बनाना है।