Aapni Boli

काल का पहिया घूमे भय्या

काल का पहिया खम्मा घणी सा आज पूरो विश्व कोरोना महामारी सूं उभर नहीं पायो है विनो मूल कारण प्रकृति री छेड़छाड़ है। योग वशिष्ठ में श्री राम ने गुरु वशिष्ठ जी एक प्रश्न रे उतर में बतावें कि जो व्यक्ति आपरे व्यवहार ने, प्रवृति ने प्रकृति रे साथे तालमेल कर लेवे वो ही व्यक्ति जीवन मे सफल हुवें। मनुष्य प्रकृति री आ तारतम्यता ही जीवण ने सुखी बणावे। प्रकृति आपाणो गुरु है जो ज्ञान दैवे तो अनुपालना नहीं करण पर दंड भी देवे।

आज लोग घर मे सिमट ग्या। पेली चौक में धूप आ जावती। आज कई बच्चों ने धूप नहीं मिळने सूं विटामिन डी री गोलियां खावणी पड़े। असंख्य मानव रोग दैहिक, दैविक,आधिदैविक कारणों सुं होवै हुक्म….पर कैवों तो कुण सुणे। आज आध्यत्मिकता, पूजा-पाठ दिन पर दिन कम हूग्या। अब किने समझाओं ‘ रामकृपा नाशहि सब रोगा, जो एहि भांति बने संयोगा ‘, समझाओं तो मिनखा मज़ाक फेर बणावे।

हुकम मानव प्रकृति रे साथे बड़ी छेड़छाड़ की है। आपरे स्वार्थ रे कारण जल, हवा ने प्रदूषित कियो…और तो और पृथ्वी रे विनाश पर उतारू हूँ ग्यों, इणसूं पृथ्वी री उपजाऊँ क्षमता कम हुगी। प्रकृति ही नहीं मनुष्य आपरी हरकतों सुं परमात्मा ने भी रूष्ट कर दियो। मानव री लोभ -लालसा रो ही यो परिणाम हैं कि जल थल आकाश सब प्रभावित हुया है हुकम।

कोरोना बीमारी लंबे अंतराल रे बाद भी टस सूं मस नहीं हूँ रही है मतलब प्रकृति अने परमात्मा री तरफ सूं सन्देश है कि अब भी समय रेता चेत जाओ, सुधर जाओ अन्यथा प्रकृति रे साथे छेड़छाड़ भारी पड़ैला, भावी पीढ़ियों रो भविष्य अंधकारमय हूँ जावेला।

आपाणा पूर्वज तो हमेशा या बात समझावता कि प्रकृति परमात्मा रो दूत है। परमात्मा परमारथ सुं रीझे हुक्म। इंसान परमारथ ने भूल ने स्वार्थ सिद्धि में लाग ग्यो है, प्रकृति एक ही झटके में समझा दियों की स्वार्थ री राह आत्मघाती है। परमार्थ ही जीवन रो आधार है।

अबार भी देर नहीं हुई है अगर मानव समझ ले तो… अगर मानव प्रकृति री छेड़छाड़ जारी रखी और पृथ्वी रो दोहन आपरे स्वार्थ वास्ते करतो रियो तो वो दिन दूर नहीं की मानव री संख्या कम और चारों तरफ जीव-जंतु, जानवर औऱ बंजर जमीन इज नजर आवेल।

जागो जदि सवेरा। परमात्मा रे कोप ने शांत करनो एक इज उपाय है कि आपां समझ रूपी प्रह्लाद ने वाणे आगे करों। उण सूं प्रसन्न हो जगदाधार नरसिंह रूप सुं इण कोरोना रूपी हिरण्यकश्यप ने आपरा तीखा नाखून सुं चीर ने जगत ने नई आशा, रोशनी देवेला। मनुष्य जदे जदे धर्म सुं गिरयो, भगवान इज उने उठायो। नरसिंह भगवान ने बुलावणो है तो मन वचन कर्म सुं प्रह्लाद बणनो पड़सी। विश्वास सुं पर्वत हिले हुकम।

काल दुरतिक्रम है। इणरो पहियो लगातार घूमे हुकम। उणनै कुण रोक सकै सा।

– स्वाति ‘सरु’ जैसलमेरिया



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Sri Maheshwari Times

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