Readers Column

हौंसले से भरनी होगी नारी को उड़ान

नारी को हमारे देश में वैसे तो देवी की तरह ही पूजा जाता रहा है। लेकिन पुरातन काल से वर्तमान तक की घटनाओं को देखें तो उसके साथ कई बार अन्याय भी हुआ है। अपने साथ न्याय के लिये हमें अपने हौंसले से सफलता की उड़ान भरनी होगी। आईये हम सोचें हमें अपने आपको कैसे तैयार करना है?


हकीकत में विश्वास रखें

पुरातन काल से आज तक नारी को देवी रूप में पूजा जाता है। उसे गृहलक्ष्मी, अन्न पूर्णा, शक्ति स्वरूपा और भी न जाने कितनी ही उच्चतम उपाधियों से नवाजा जाता रहा है। किंतु वास्तविकता में यह सारी बातें इतिहास के पन्नों और अखबारों की सुर्खियों में सिमट कर रह जाती हैं।

सीता जी जैसी महान पतिव्रता के घोर त्याग, समर्पण, तपस्या की रामायण साक्षी है, राधा जी का कृष्ण प्रेम में समर्पित भाव, द्रौपदी का चीरहरण, पग-पग पर नारियों को कठिन परीक्षा देनी पड़ी। उसके अंतस की पीड़ा पर दया, सहानुभूति व्यक्त की जाती है, किंतु उसके साथ हो रहे अन्याय के विरोध में कदम नहीं उठाये जाते तो कभी बने हुये नियमों का पालन नहीं किया जाता यह न्यायोचित नहीं है। हर नारी अपने साथ हो रहे न्याय अन्याय के व्यवहार भाव को समझने में सक्षम हो।


स्वयं को जानें

पारिवारिक और सामाजिक दृष्टि से नारी की जीवनशैली में बदलाव लाने का, उसके दायित्वों को साझा करने का प्रयास कम ही होता है। दोहरी भूमिका निभाने में नारी सक्षम है, यह कहकर उसका मान तो बढ़ा दिया जाता है किंतु उसका संघर्ष कम हो, वह स्वयं के स्वास्थ पर, रुचियों पर ध्यान दे पाये, खुशियों के हसीन लम्हों के रंग अपने जीवन में उतार पाये?

इसके लिए कोई पारिवारिक सदस्य प्रयासरत नहीं रहते। महिलाओं को बड़ा लक्ष्य साधना होगा। जीवन की वास्तविक खुशी किटी पार्टियों और आधुनिक परिवेश में नहीं है, यह समझना होगा और अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाने हेतु प्रयासरत रहना होगा।


अपनी स्वतंत्र पहचान बनायें

वर्तमान दौर में कुछ परिवर्तन हुआ है बेटियों के लालन-पालन, शिक्षा में कोई कोताही नहीं हो रही लेकिन उच्चतम शिक्षित वर्ग छोड़ दिया जाये तो आज भी सामान्य और ग्रामीण भागों में बेटियां जब बहू बनकर नये घर में जाती है तो उन्हें कई कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। हर नारी के भीतर कई तरह के कला, कौशल जैसे गुण विद्यमान रहते हैं।

पारिवारिक व्यस्तता और असीमित दायित्वों के चलते नारी के भीतर छिपी प्रतिभा धूमिल हो जाती है, उसकी कल्पनाओं की उड़ान के पंख काट दिये जाते है, चौके चूल्हे में उसे अपने अनंत गुणों की आहुति देनी पड़ती है। नारी केवल परिवार की इच्छापूर्ति का माध्यम बनकर रह जाती है।

अब उसे स्वयं ही अपने सपनों को साकार करने की दिशा में कदम उठाने होंगे, अपनी प्रतिभा पर जमीं धूल की परत को उसे ही साफ कर चमकाना होगा।


अपने अधिकारों के लिए जागरूक रहें

स्मार्ट युग की स्मार्ट नारी बन विज्ञान के युग से कदमताल मिलाकर चलना होगा। कोई भी क्षेत्र हमारे ज्ञान दायरे से अछूता ना रहे। चाहें बैंकों के कार्य हों, जायदाद संबंधित, बीमा पॉलिसी और भी महिलाओं के हित में अनेक अधिकार होते है जिनसे आज भी बहुत सी महिलायें अनजान हैं, इस अज्ञानता के चलते बाहरी दुनिया उनका लाभ उठाती है।

अपने स्वास्थ्य और पारिवारिक दायित्वों के प्रति जागरूक जरूर रहें किंतु उसमें अपने अस्तित्व की होली न होने दें। खुशियों की पुरवाई का आनंद महिलाओं को अधिक लेना होगा। उसका खुशहाल होना, परिवार, समाज और देश की प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


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