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गृहिणी को कामकाजी महिला से कमतर आंकना उचित अथवा अनुचित?

परिवार की धुरी गृहिणी, जिसके बिना परिवार के हर सदस्य की दिनचर्या अधूरी पर फिर भी वह कामकाजी महिला की अपेक्षाकृत कमतर ही आंकी जाती है। गृहिणी एक दिन किसी कारणवश गृहकार्यों की तरफ ध्यान न दे तो घर के सभी छोटे-बड़े सदस्य मिलकर कितनी भी कोशिश कर लें गृहिणी की तरह किसी भी कार्य को दक्षता के साथ नहीं कर पाते हैं। फिर भी एक कामकाजी महिला की तुलना में उसके वजूद को कभी महत्व नहीं दिया जाता। इस सच्चाई को जानते सभी हैं पर मानते नहीं कि घर को गृहिणी के सिवाय कोई भी नहीं संभाल सकता है। हकीकत में जो महिला घर पर रहकर अपने जीवन का हर पल अपने परिवार के नाम कर देती है, उस महिला का सम्मान कामकाजी महिला की तुलना में अधिक होना चाहिए। पर हमारे समाज में घर के काम करने वाली और घर से बाहर निकलकर काम करने वाली महिलाओं के प्रति हमारा नजरिया अलग-अलग है। यही कारण है कि महिलाऐं अब अपने आपको गृहिणी कहलाने में कतराने लगी है।

ऐसे में इस विषय पर चर्चा अनिवार्य हो गई है कि यह भेदभाव उचित है अथवा अनुचित?आइये जानें इस स्तम्भ की प्रभारी सुमिता मूंदड़ा से उनके तथा समाज के प्रबुद्धजनों के विचार।


गृहलक्ष्मी और कामकाजी नारी दोनों सम्मानित
सुमिता मूंधड़ा, मालेगांव

sumita mundra

गृहिणी और कामकाजी महिला को एक-दूसरे की प्रतियोगी मान लेना, हमारी बहुत बड़ी भूल होगी। दोनों का अपना अलग-अलग और विशेष अस्तित्व है। गृहिणी के बिना घर का अस्तित्व नहीं है, पर उसकी तुलना कामकाजी महिला से करना भी तर्कसंगत नहीं। परिवार के लिए पूर्णतः समर्पित गृहिणी का स्थान कोई नहीं ले सकता ना ही कोई उसकी बराबरी कर सकता है।

वो जितनी कुशलता से घर को संभाल और संवार सकती है उतना समय घर और परिवार को देना एक कामकाजी महिला के लिए संभव नहीं है। घर ही नहीं परिवार के हर सदस्य की हर छोटी से बड़ी बात गृहिणी से होकर गुजरती है पर कामकाजी महिला को घर और दफ्तर में सामंजस्य बिठाना पड़ता है। यह आवश्यक नहीं है कि घर से बाहर निकलकर काम करने वाली हर महिला पढ़-लिखकर अपना कैरियर बनाने की चाह ही रखती हो, कहीं-कहीं महिलाओं को घर से बाहर निकलकर काम करना उनकी आवश्यकता / मजबूरी भी होती है।

वैसे भी एकल परिवार की कामकाजी महिलाओं को घर और दफ्तर दोनों को संभालना पड़ता है जो किसी चुनौती से कम नहीं है। इस प्रकार देखा जाये तो गृहणी और कामकाजी महिला का तुलनात्मक आंकलन करना गलत होगा। गृहिणी को घर की मुर्गी दाल बराबर समझने की भूल करने वाले यह क्यूँ भूल जाते हैं कि अगर उनकी गृहलक्ष्मी एक दिन का भी अवकाश ले तो उनकी दिनचर्या चरमरा जाती है।

गृहिणी का अपने परिवार के प्रति निःस्वार्थ समर्पण अमूल्य है। माना कि कामकाजी महिला घर की आर्थिक स्थिति में मददगार साबित होती है पर इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि वो गृहिणी से अधिक सम्मान की अधिकारी है बल्कि गृहिणी और कामकाजी महिला दोनों ही समान रुप से सम्मान पाने का अधिकार रखती है।


गृहिणी स्वयं को कमतर न आंके
मनीषा प्रतीक पलोड़ ‘मनु’, बेंगलूरु

manisha palod

‘फोटो के लिए सभी गृहणियां भी मंच पर आ जाए’। संचालक महोदय द्वारा एक कार्यक्रम में इतना कहते ही, वहां पर खड़ी अनेक महिलाओं ने अपनी आपत्ति दर्ज करवा दी- ‘हम गृहिणी नहीं एन्टरप्रिनियोर हैं महोदय, जरा विचार कर बोलिएगा’। फटकार मौखिक तक ही नहीं बल्कि लिखित में भी संचालक को भविष्य में इस बात पर ध्यान रखने के लिए चेतावनी दे दी गई। यह है, हमारे समाज में गृहिणी की वास्तविक स्थिति।

स्वयं गृहिणी ही, स्वयं को गृहिणी कहने से घबराती है। क्योंकि घर संभालना, बच्चे संभालना इत्यादि सारे कार्य एक उद्योग अथवा व्यापार संभालने से बहुत ही छोटे हैं। क्योंकि गृहिणी के सभी कार्य बहुत ही सामान्य हैं, प्राचीन काल से होते आ रहे हैं, इसमें नया क्या है? यही सोच कर हर कोई गृहिणी की अवहेलना करता रहता है। सबसे बड़ी बात इस श्रम के बदले में कोई निश्चित मानदेय प्राप्त नहीं होता और बिना मानदेय के सम्मान प्राप्त नहीं होता।

इसी सम्मान को प्राप्त करने के लिए प्रत्येक गृहिणी आज के युग में स्वयं को वर्किंग वुमन कहना पसंद करती हैं। किन्तु मेरी दृष्टि में यह भेदभाव करना बिल्कुल अनुचित है। यह सच है कि कामकाजी महिलाएं अपने लिए धन और सम्मान दोनों प्राप्त कर लेगी। परंतु परिवार को जो पोषण और प्रेम एक गृहिणी अपना समय देकर करती है, वह अतुलनीय है। जो संस्कारों का सिंचन भावी पीढ़ी में एक गृहिणी कर सकती है, वह कामकाजी महिला चाह कर भी नहीं कर पाती है।

लेकिन कामकाजी महिला अपने धन, मान से अपने परिवार को एक नई ऊंचाई पर ले जा सकती है, अपने बच्चों में नया आत्मविश्वास भर सकती हैं तो मुझे लगता है कि गृहिणी और कामकाजी महिला दोनों ही अपने-अपने स्थान पर मन और मस्तिष्क की ही तरह हैं। इसीलिए किसी भी गृहिणी को स्वयं को कमतर नहीं आंकना चाहिए और इसके लिए स्वयं गृहिणी को ही स्वयं पर गर्व करना चाहिए। ताकि कोई अन्य उसकी ओर उंगली ना उठा सकें।


आर्थिक कारण से होता है भेदभाव
भूषण धीरेन, वर्धा

Bhushan Dhiren

हम कितना भी ना मानने का प्रयत्न करें परंतु सत्य ही है कि मान तथा प्रतिष्ठा पैसों से ही आती है। एक पति जो दिन में 8 से 10 घंटा काम करता है, उसे ज्यादा मान मिलता है अपनी पत्नी की अपेक्षा जो दिन में घर में 16 घंटे काम करती है। सिर्फ इसीलिए क्योंकि वह पति पैसा कमाता है और वह पत्नी घर का काम करती हैं। घर में बने भोजन पर पहले अधिकार से लेकर मंदिर में पूजे जाने तक सारे सम्मान पति को प्राप्त हैं।

वह गृहिणी पैसों के लिए पूरी तरह से अपने पति पर निर्भर होती हैं। एक पति बेबाकी से अपना पैसा खर्च करता है और वही पत्नी हर छोटी चीज भी अपने पति से पूछ कर खर्च करना पड़ती है। एक कामकाजी महिला को अपने पैसे खर्च करने की स्वतंत्रता मिलती है।

शायद घर में नहीं मगर बाहर उसे वह मान और प्रतिष्ठा मिलती है। अपने अस्तित्व को पहचानने का मौका मिलता है। तो क्यों एक महिला गृहिणी बनना चाहेगी? अगर आप सही मायनों में एक गृहिणी और एक कामकाजी महिला को एक समान आंकना चाहते हैं तो उस गृहिणी को वही सम्मान, अधिकार तथा स्वतंत्रता दीजिए जो एक कामकाजी पुरुष को प्राप्त है।


गृहिणी समाज व राष्ट्र की धुरी
विनीता काबरा, जयपुर

Vinita Kabra

गृहिणी तो देश राष्ट्र समाज की वह धुरी है जिस के सहयोग से ही हम सभी पायदानों पर सफल होते हैं। गृहिणी के इस मौन सहयोग से ही यह समाज और यह संसार रहने लायक बनता है। कामकाजी महिला तो सिर्फ देश के विकास में आर्थिक योगदान दे पाती है लेकिन एक गृहिणी देश के सामाजिक आर्थिक और बौद्धिक चहुँमुखी विकास में सहयोग देती है।

वह अपनी संतानों को अपनी सभ्यता और संस्कृति से जोड़े रखती है। औरत का कामकाजी होना गलत नहीं है लेकिन उसका दूसरा पहलू यह भी है कि जब से औरत ने कमाना शुरू किया है और तभी से हम अपनी सभ्यता व संस्कृति से दूर हो रहे हैं। क्योंकि ईश्वर प्रदत्त यह गुण गृहिणी को मिला है कि संतानों की परवरिश एक औरत ही अच्छी तरह से कर सकती है। गृहिणी को कमतर आंकना समाज की छोटी मानसिकता को दर्शाता है।

आर्थिक उन्नति को देखकर ही किसी को कमतर आंकना विकास नहीं है। यह तो हमारे पिछड़ेपन की निशानी है क्योंकि जड़ों से दूर होकर कभी भी कोई उन्नति नहीं कर सका है। हम पाश्चात्य संस्कृति के अनुकरण से अपनी ही सभ्यता और अपने ही विकास को नुकसान पहुंचा रहे हैं। वहां की संस्कृति अपने से अलग है तो वहां के संस्कार और सभ्यता भी अलग है।

आज अगर कामकाजी महिला बाहर काम कर रही है तो सिर्फ और सिर्फ गृहिणी के सहयोग की वजह से ही। क्योंकि उसके दिए संस्कार ही काम के माहौल को सकारात्मक बनाए हुए हैं। एक गृहिणी घर परिवार में कितने ही काम स्वयं करके आर्थिक योगदान भी देती है क्योंकि बचाना भी एक तरह से कमाना ही है। गृहिणी के इस अमूल्य सहयोग को नकार कर समूचा समाज अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा है। गृहिणी तो सदा से ही आदरणीय, वंदनीय है और रहेगी।


कतई कम नहीं गृहिणी
पूजा काकाणी, इंदौर

गृहिणी को कामकाजी महिला से कमतर आंकना कतई भी उचित नहीं है। एक स्त्री सारे रिश्तों को कितने अच्छे से संभालती है। आज महिलाओं का योगदान सभी क्षेत्र में अहम है। महिलाएं किसी भी देश के विकास का मुख्य आधार होती हैं। वे परिवार, समाज और देश की तरक्की में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वहीं आज महिलाएं हर क्षेत्र में खुद को योग्य साबित कर रही हैं एवं पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं।

लेकिन आज भी कई क्षेत्रों में महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार नहीं मिल रहा है। उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ रहा है। वहीं हमारे देश मे लगातार घट रही महिलाओं की संख्या और बढ़ रहे भ्रूण हत्या, महिलाओं पर अत्याचार के मामले काफी चिंताजनक हैं। इसलिए महिलाओं के सम्मान के प्रति सभी को जागरूक होने की जरुरत है। दुनियाभर में महिलाओं को उनके अधिकार और सम्मान देने के लिये बहुत से संगठन आगे आ रहे हैं।

हर साल 8 मार्च को दुनियाभर में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का आयोजन किया जाता है। ताकि विश्व भर में महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मना सकें। कोई भी देश यश के शिखर पर तब तक नहीं पहुंच सकता जब तक उसकी महिलाएं कंधे से कन्धा मिला कर ना चलें। ‘हम हमेशा देखते हैं जब आदमी स्त्री से प्यार करता है, वो अपनी ज़िन्दगी का बहुत छोटा हिस्सा देता है।

पर जब स्त्री प्यार करती है वो सबकुछ दे देती है।’ महिला एक मां, पत्नी, बहन, बहू कई रुपों में अपना कर्तव्य निभाती है एवं सशक्त समाज के निर्माण में मदद करती है। सुयोग्य स्त्री परिवार की शोभा तथा गृह की लक्ष्मी है। ‘स्त्रियों की मान-हानि साक्षात् लक्ष्मी और सरस्वती की मान हानि है। ‘जीवन की कला को अपने हाथों से साकार कर नारी ने सभ्यता और संस्कृति का रूप निखारा है, नारी का अस्तित्व ही सुन्दर जीवन का आधार है।’


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