ऑनलाइन शिक्षा कितनी उचित-कितनी अनुचित?
वर्तमान में कोविड वैश्विक माहमारी के कारण ऑनलाइन शिक्षा ने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई को डिजिटल बना दिया है। ३ वर्ष से लेकर हर उम्र का विद्यार्थी मोबाइल और लैपटॉप में आँखे गढ़ाए अपना भविष्य संवारने में लगा है। ऐसे में प्रश्न खड़ा हो गया है कि क्या इससे प्रत्येक विषय की समुचित पढ़ाई हो रही है?
इसने पढ़ाई के लिये विश्वव्यापी द्वार खोले हैं, तो स्वास्थ्य की चुनौती भी उत्पन्न की है। ऐसे में विचारणीय हो गया है कि “ऑनलाइन शिक्षा” कितनी उचित है, कितनी अनुचित? आइये जानें इस स्तम्भ की प्रभारी सुमिता मूंधड़ा से उनके तथा समाज के प्रबुद्धजनों के विचार।
स्वास्थ्य व संस्कारों की बलि:
-सुमिता मूंध़ड़ा, मालेगांव
कोरोना महामारी के हानिकारक प्रभाव से शिक्षा का क्षेत्र भी अछूता नहीं रहा। सोशल डिस्टेंसिंग के कारण उच्च-शिक्षा ही नहीं प्ले ग्रुप के छोटे तुतलाते बच्चों की शिक्षा भी ऑनलाइन हो रही है। अभिभावक ना चाहते हुए भी अपने हर उम्र के बच्चों के हाथ में लैपटॉप और स्मार्टफोन देने को मजबूर हैं।
निम्नवर्गीय परिवारों में कोरोनाकाल की डगमगाई आर्थिक परिस्थितियों पर ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली का इंटरनेट खर्च आ गया है। दुःख का विषय तो यह है कि घरेलू कामगारों ने तो डिजिटल खर्च के बारे में सोचकर ही बच्चों की पढ़ाई तक बंद करवा दी है। बच्चों की आंखों और स्वास्थ्य पर भी इसका गहरा असर दिखाई देने लगा है।
दूसरी तरफ विभिन्न सोशल साइट्स और यूट्यूब पर आधुनिकता और पाश्चात्य संस्कारों की होड़ में हमारे भारतीय संस्कारों के नाश होने का खतरा मंडराने लगा है। साथ ही हम इस बात को भी अनदेखा नहीं कर सकते कि विद्यालय में सामूहिक शिक्षा द्वारा अर्जित व्यावहारिक ज्ञान और जिज्ञासाओं का आदान-प्रदान विषयों को मजबूत बनाते हैं।
यह सच है कि हम भारतीय भी डिजिटल होना चाहते हैं, विश्व के हर देश की तरह हर कार्य ऑनलाइन करके समय और अर्थ की बचत करना चाहते हैं। हम भी चाहते हैं कि हर भारतीय कम्प्यूटर और मोबाइल का ज्ञानी हो, गूगल से पलभर में वो अपनी हर जिज्ञासा पूरी कर पाए, कभी भी हम भारतवासी दुनिया में किसी के समक्ष पिछड़ा और उपेक्षित महसूस ना करें पर क्या इसके लिए हमें अपने और अपने बच्चों के स्वास्थ्य और संस्कारों की बलि चढ़ानी होगी?
आत्मनिर्भर भारत के तहत ऐसे डिजिटल उपकरणों का आविष्कार करना होगा जो हमारे अर्थ और संस्कारों की धज्जियां ना उड़ा सकें। जिसकी सीमाएं भारतीय बच्चों के हिसाब से निर्धारित की जा सकें।
छोटे बच्चों के लिए अनुचित:
–श्यामसुंदर धनराज लखोटिया, मालेगांव
संपूर्ण विश्व में कोविड बीमारी फ़ैल रही है। पूरे संसार में हाहाकार मचा है। ऐसे समय भारत में शिक्षा का प्रसार मोबाइल, लैपटॉप के माध्यम से हो रहा है। अभी-भी ६० प्रतिशत बच्चों के पास लैपटॉप, मोबाइल व्यवस्था नहीं है। कुछ गांवों में तो इंटरनेट भी समस्या है।
छोटे बच्चों को मोबाइल हाथ में देने से स्वास्थ्य के साथ वे अपने मूल संस्कार से भी तेजी से भटक रहे हैं और यूट्यूब से अपनी संस्कृति, भारतीय संस्कृति के संस्कार खत्म हो रहे हैं और बाहर के संस्कार, पाश्चात्य संस्कृति के संस्कार हावी होते जा रहे हैं। इससे आज हमारी नई पीढ़ी खतरे में है, इसलिए ऑनलाइन से छोटे बच्चों को पढ़ाना अनुकूल नहीं है।
उभरते रंग ऑनलाइन स्कूल:
-अनिता ईश्वरदयाल मंत्री, अमरावती
पिछले कुछ वर्षों से हम डिजिटल कक्षा, ऑनलाइन या आभासी कक्षा आदि शब्द सुन रहे हैं। अब तक, यह ऑनलाइन नमक, जो कार्यालय की बैठकों तक सीमित था, किंडर गार्डन तक पहुंच गया है। अब इन ऑनलाइन स्कूलों का उद्देश्य पहली नजर में घर पर छात्रों को उच्चतम गुणवत्तापूर्ण और कौशलतापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है।
क्योंकि अब पारंपरिक तरीके से स्कूलों को भरने की सीमाएं हैं। जब स्कूल को अपने बुनियादी ढांचे का उपयोग नहीं करना पड़ता है, तो अन्य खर्चों में स्वचालित रूप से कटौती की जाती है। हालांकि, सामान्य माता-पिता की लागत बढ़ गई है।
ऑनलाइन शिक्षा का मतलब है इंटरनेट। उसमें बहुत कठिनाइयां हैं। जहां इंटरनेट नेटवर्क नहीं है, जहां स्पीड नहीं है। तो कुछ जगहों से आने वाली आवाज, तस्वीर स्पष्ट नहीं है।
मुख्य कारण यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में कई माता-पिता की वित्तीय स्थिति अच्छी नहीं है। कोरोना की वजह से पहले ही वित्तीय कठिनाई से जूझ रहा है। ऑनलाइन शिक्षा भले ही अच्छी हो। लेकिन सवाल यह है कि कितने माता-पिता इसे वहन कर सकते हैं। लगभग ४५ प्रतिशत बच्चों के पास स्मार्टफोन खरीदने के लिए वित्तीय साधन तक नहीं हैं।
हर उम्र विद्यार्थी की जरूरत:
-भारती काल्या, कोटा
कोविड-वैश्विक महामारी के कारण आज ऑनलाइन शिक्षा हर उम्र के विद्यार्थी के लिए एक जरूरत बन गई है। यह उचित भी है और अनुचित भी।
घर बैठे-बैठे आसान हुई पढ़ाई,
पर आलसपन आया है हमारे व्यक्तित्व में।
बैग लेकर समय पर जाते स्कूल,
अब समय की पहचान नहीं।
कम लागत में सीखे बहुत कुछ,
पर अब सोच व क्षमता संकीर्ण हुई।
ब्लैक बोर्ड पर देखते दूर से,
अब आँखे लैपटॉप पर हैरान हुईं।
पेन से लिखना हाथों को भाता,
अब मोबाइल पर उंगलियां शिथिल हुईं।
क्लास में करते पढ़ाई संग मस्ती,
अब एकांकीपन के शिकार हुए।
शिक्षक का जो डर था मन में,
वह अब कोसों दूर हुआ।
जो बच्चे हैं जागरूक स्वयं के प्रति,
और पढ़ाई के प्रति, उनकी राह आसान हुई।
जो करते बहाने, नेट स्लो का,
उनकी राह मुश्किल हुई।
ऑनलाइन शिक्षा का करें सदुपयोग,
यदि होगा दुरुपयोग तो समाज और स्वास्थ्य को
भुगतना पड़ेगा खामियाजा।
अन्य विकल्प अपनाएं:
-अनुश्री मोहता, खामगांव
कोरोना काल के बाद शिक्षा प्रणाली जारी रखने के लिए पर्यायी व्यवस्था के रूप में डिजिटल शिक्षा की ओर रुख किया गया है। इसके फायदे कम नुकसान ज्यादा हैं। जहां अभिभावक अपने बच्चों को मोबाइल से दूर रखना चाहते हैं, वहीं ऑनलाइन कक्षाओं के लिए बच्चों को मोबाइल देना पड़ रहा है।
फोन के दुष्परिणामों को ध्यान में रखकर उसे स्कूल में प्रतिबंधित किया गया था, आज उसी फोन को शिक्षा का आधार बना दिया गया। फोन से कम उम्र के बच्चों का शारीरिक, मानसिक व नैतिक पतन होने की आशंका बनी रहती है। वर्चुअल प्लेटफॉर्म बच्चों को यौन शोषण की तरफ ले जा सकता है।
स्क्रीन टाइम बढ़ने से आंखों पर बुरा असर पड़ता है। जिससे पलकें झपकाने का पैटर्न भी बिगड़ सकता है। यौन संबंधी समस्याएं, तनाव व चिड़चिड़ापन भी आ सकता है। इसलिए ई शिक्षा को बंद कर देना चाहिए।
पढ़ाई के लिए हम इंटरनेट की मदद ले सकते हैं। पर नई शिक्षा व्यवस्था के तौर पर ई-शिक्षा ही एकमात्र विकल्प नहीं है। छोटे बच्चों के लिए होम स्कूलिंग एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है।
जिसमें अभिभावक अपने बच्चों को स्वयं घर पर ही पाठ्यक्रम तथा खेल, संगीत, कला आदि सभी तरह की शिक्षा दे सकते हैं। वहीं बड़े बच्चों के लिए सेल्फ स्टडी का विकल्प है। इसमें बोर्ड या विद्यापीठों द्वारा सुझाई गई किताबों से विद्यार्थी खुद अध्ययन कर परीक्षा दे सकता है।