देश में साझा संस्कृति का कोई राष्ट्रीय त्योहार होना चाहिए
राष्ट्र में रहने वालों के धर्म, भाषा, खान-पान, पहनावा अलग-अलग हो सकते हैं मगर राष्ट्र तो सबका एक ही है इसलिए राष्ट्रीय आस्था के किसी साझा बिंदु की आवश्यकता पहले भी थी, आज भी है, जिसका सम्मान प्रत्येक देशवासी करे। देश में साझा संस्कृति का कोई राष्ट्रीय त्योहार होना चाहिए। वाराणसी निवासी वरिष्ठ समाजसेवी श्रीराम माहेश्वरी ने सभी समाजबंधुओं से अपील की है कि स्वतंत्रता-दिवस और गणतंत्र-दिवस को सभी बंधु अपने घर में अन्य त्योहारों की भांति मनाएँ। त्योहारों के माध्यम से राष्ट्र से जुड़ने पर भी विचार होना चाहिए।
कोई एक त्योहार ऐसा हो जिसे राष्ट्र को समर्पित करते हुए देश के सभी नागरिक अपने घर में अन्य त्योहारों की भांति मनाएँ। त्योहारों के माध्यम से धर्म से जुड़ने में हमारी आस्था है। इसी प्रकार त्योहारों के माध्यम से राष्ट्र से जुड़ने पर भी विचार होना चाहिए।
इस दृष्टि से स्वतंत्रता-दिवस (15 अगस्त) तथा गणतंत्र-दिवस (26 जनवरी) सर्वाधिक उपयुक्त प्रतीत होते हैं। ये स्वतंत्र भारत के नए त्योहार हैं।
स्वतंत्रता-दिवस और गणतंत्र-दिवस को त्योहार के रूप में स्थापित करने के लिए इस उपलक्ष्य पर शुभ-कामना संदेश का आदान-प्रदान करिए। अपने घर-प्रतिष्ठान की आंतरिक व बाह्य सज्जा तिरंगी आभा के साथ करिए।
इन दोनों पावन दिवस पर परिवार में अस्थायी रूप से राष्ट्र-पताका (तिरंगा-झंडा) की स्थापना करके, उसके सामने खड़े होकर परिवार के सभी सदस्य राष्ट्रगान ‘जनगणमन………..’ राष्ट्रगीत ‘वन्दे मातरम्………’ का गान करें। राष्ट्र पताका पर पुष्प-वर्षा करिए।
अन्य त्योहारों की तरह रसोई महकाइए, मिठाई बाँटिए। स्वतंत्रता आन्दोलन की गाथा का पारायण-श्रवण करिए, देश के लिए बलिदान होने वालों का पुण्य स्मरण करिए। अपने से छोटों को तथा घर के सेवकों, प्रतिष्ठान के कर्मचारियों को उपहार अथवा नगद के रूप में त्योहारी दीजिए।
अपने से बड़ो को प्रणाम कीजिए। घर में मिल कर चिंतन करिए कि पानी कैसे बचाया जाए, पर्यावरण की रक्षा कैसे करें। राष्ट्र-हित के छोटे-छोटे काम करने का संकल्प करिए। सैनिक-परिवार-कल्याण योजना में दान दीजिए।
अपने पूजा स्थल पर विराजमान भगवान की मूर्तियों का तिरंगी आभा के साथ साज-श्रृंगार करिए। अपने आस-पास के उपासना स्थलों, मंदिरों की सजावट में तिरंगी आभा बिखेरिए। भगवान से प्रार्थना करिए कि हमारे परिवार में राष्ट्र-बोध सदा प्रवाहमान रहे।