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लड़कों का गृह-कार्य में हाथ बंटाना भावी सुखी दांपत्य के लिए उचित अथवा अनुचित?

परम्परावादी सोच वाले किसी भी परिवार में लड़कों द्वारा गृहकार्य में योगदान दिये जाने को अनुचित मानते हुए उनके पुरुषत्व तक पर मात्र इसलिये अंगुली उठा देते हैं कि उनकी नजर में यह काम पुरुषों का नहीं है। लेकिन वर्तमान में दूसरा पक्ष यह भी सोचता है कि माता-पिता को वर्तमान समय में लड़की को ही नहीं बल्कि लड़कों को भी घर-गृहस्थी संभालने का ज्ञान देना अतिआवश्यक है। कारण यह है कि शिक्षा और कैरियर के प्रति सजग और अग्रसर रहने वाले युवा दम्पतियों को घर-गृहस्थी मिलकर चलानी होगी। अब घर-गृहस्थी संभालना सिर्फ लड़कियों की जिम्मेदारी नहीं रह गयी।

अब लड़कों को भी लड़कियों की तरह गृहकार्यों को बेहिचक सीखना और करना पड़ेगा वरना दाम्पत्य जीवन डगमगाने लगेगा । यही समय की मांग भी है अन्यथा दाम्पत्य जीवन सुखी नहीं रह पायेगा। ऐसे में यह विचारणीय हो गया है कि लड़कों का गृह कार्य में हाथ बंटाना उचित है या अनुचित? आइये जानें इस स्तम्भ की प्रभारी सुमिता मूंदड़ा से उनके तथा समाज के प्रबुद्धजनों के विचार।



सुखद दाम्पत्य जीवन के लिए संजीवनी बूटी
सुमिता मूंधड़ा, मालेगांव

सुमिता मूंधड़ा

आज जब हम अपनी बेटी को पढ़ा-लिखा कर कामकाजी बना रहे हैं तो हमें यह समझ लेना चाहिए कि हमारी बहुरानी भी कामकाजी ही आनेवाली है । ऐसे में हमारे जंवाई को बेटी का एवं बेटे को बहुरानी का घर-गृहस्थी के कार्यों में साथ देना ही होगा। यह भी एक कारण है कि आनेवाली पीढ़ी के सुखद दाम्पत्य-जीवन के लिए लड़कों को गृहस्थ-ज्ञान सिखाना बहुत आवश्यक है।

लड़के घर-गृहस्थी संभालने में अतिदक्ष हों या ना हो पर काम-चलाऊ गृहस्थ-ज्ञान होना अतिआवश्यक है। अधिकांशतः पढ़े-लिखे और खुली विचारधारा वाले कामकाजी लड़के और लड़कियों को इसमें कोई आपत्ति भी नहीं है। आजकल शौक से भी युवा रसोई में भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यंजन बनाते रहते हैं और यही शौक उनके भावी दाम्पत्य जीवन में बहुत फायदेमंद साबित हो रहा है। अगर दम्पति कामकाजी हों तो अर्थ के साथ-साथ घर-गृहस्थी का बोझ भी मिल-जुलकर उठा लेते हैं।

घर-परिवार के बड़े-बुजुर्गों को अथवा अन्य सदस्यों को इसमें आपत्ति हो सकती है पर समय के साथ उनको अपनी सोच में थोड़ा परिवर्तन लाना होगा और बेटियों की तरह ही बेटों को भी गृहस्थ-गीता पढ़ानी होगी।

यह एक बहुत अच्छी बात है कि आज शिक्षा के प्रति हर वर्ग, समुदाय और स्तर के लोग जागरूक हो गए हैं जिससे भविष्य में पढ़े-लिखे कामकाजी दम्पतियों को गृह-कार्यों को करने के लिए कामगारों का मिलना मुश्किल जान पड़ता है। अब ऐसी परिस्थिति में पति-पत्नि दोनों को घर-गृहस्थी मिलकर ही संभालनी होगी। यह भी एक बड़ा कारण है कि लड़कों को घर-गृहस्थी का ज्ञान होना ही चाहिए।


संकुचित सोच न रखें
राजश्री राठी, अकोला

समकालीन दौर में जब लड़कियां धनार्जन हेतु लड़कों के कंधें से कंधा मिलाकर चल रही हैं तो लड़कों का भी गृहकार्य में दक्ष होना समय की माँंग है। शिक्षा के बढ़ते प्रचार से विवाह पूर्व लड़कियां अधिक समय अध्ययन में ही देती है उन्हें भी घरेलू कार्यो का अधिक ज्ञान नहीं होता।

लड़कियां अकेली दोहरी भूमिका निभाये यह सोच ही गलत है। विवाह उपरांत तू और मैं की जगह ‘हम’ हो जाते हैं, अहम् का भाव जहां निर्मित होता है वहां रिश्तों की डोर कमजोर पड़ने लगती है। लड़कों का विवाह पूर्व घर के कार्यों को सीखना सुखी दाम्पत्य जीवन हेतु जरूरी है। नवदम्पत्ति नौकरी पेशा हैं तो उनके ऑफिस का समय अलग-अलग हो सकता है। ऐसे हालात में लड़कों का बराबरी में सहयोग करना जरूरी है।

कार्य का अत्याधिक दबाव लड़कियां सह नहीं पाती, आत्मनिर्भर होने के कारण वह भी परिवार में बराबरी की भागीदारी चाहती हैं। विचारों में जहां लड़के-लड़कियों को लेकर, उनकी कार्यप्रणाली को लेकर भेदभाव रखा जाता है, वहां मन में दूरियां बढ़ती है। परिणाम स्वरूप छोटी-छोटी बातों से रिश्तों में मन-मुटाव की स्थिति निर्मित होती हैं।

साथ ही कभी कोई अन्य स्थिति जैसे लड़कियों के ऑफिस में अधिक कार्य होना, प्रेग्नेंसी के दौरान उसे आराम की जरूरत होना आदि अनेक कारण होते हैं ऐसे समय लड़कों पर घरेलू कार्यभार का दायित्व आता है। इसलिए उन्हें पहले से ही गृहकार्य सिखायें।

जिस तरह आज लड़कियों को हम आत्मनिर्भर बना रहें हैं, उसी तरह लड़कों का भी हर क्षेत्र में स्वावलंबी होना जरूरी है। वर्तमान दौर में अपने बच्चों को हर स्थिति से निपटने के लिए हमें हर तरह से तैयार करना होगा।


यह वर्तमान दौर की अनिवार्यता
सतीश लाखोटिया,नागपुर

चुनाव उचित या अनुचित

मानव जीवन के इतिहास पर नजर डा़ले तो पुरातनकाल में संत महात्मा से लेकर सभी ज्ञानी स्वयं ही सभी कार्य स्वयं करते थे। कई राजा महाराजा सब सुविधा रहने के बावजूद बहुत से कार्य स्वयं करना पसंद करते थे।

समय बदला परिवार की परिभाषाएँ बदली, जरूरतें बदलने के साथ नर-नारी समान, यह बात चहुँओर देखने-सुनने को मिली और शुरू हुआ जीवन का नया चक्र, जिस चक्र को दुनिया कहती है समान अधिकार, समान अधिकार की लड़ाई जो स्वतंत्रता संग्राम से लेकर अभी तक कई महान नारीयों ने लड़ी। पर आज समान अधिकार का स्वरुप जो हम देख रहे है उसका मुख्य कारण सयुंक्त परिवार के विघटन होने के साथ एकल परिवार का बोलबाला, अति शिक्षित नई युवा पीढ़ी धनार्जन एवं आत्मनिर्भर बनने की पहल में बदलते दौर में यह करना बेहद जरुरी है।

महिलाएँ सिर्फ चारदिवारी में कैद रहकर चूल्हा चौका तक सीमित नहीं रहकर हर क्षेत्र में अग्रणीय, पैसा कमाने से लेकर हर काम में हिस्सेदार हैं। अत: पुरूषों की मजबूरी भी है और घर के काम में हाथ बंटाना जरूरी भी। यहीं आज की सही वस्तुस्थिति, जिसके बिना जीवनरथ का पहिया आगे बढ़ना मुश्किल ही नहीं, असंभव है।


लड़कों का गृह कार्य में हाथ बंटाना जरूरी
स्वाति मानधना, बालोतरा

एक समय था जब महिलाओं का काम घर की दहलीज तक ही सीमित था और बाहरी कार्य व धनार्जन पुरुष वर्ग के हिस्से में थे। बेहतर तालमेल था और गृहस्थी की गाड़ी सुचारू रूप से चला करती थी। समय बदला और लड़कियों को भी उच्च शिक्षा दिए जाने देने में माता पिता का रुझान बढ़ा।

बेटों व बेटियों के बीच रखा जाने वाला फर्क खत्म हो गया। बेटियां अब तक जिन अधिकारों से वंचित थीं वह सभी उन्हें दिए जाने लगे और निश्चित रूप से उन्होंने अपने आपको साबित कर दिखाया कि वे जितनी सक्षम दहलीज के भीतर हैं उतनी ही दहलीज के बाहर थी। उनकी महत्वाकांक्षा भी बढ़ गई।

ऐसी परिस्थिति में पति-पत्नी दोनों का कमाना जरूरी हो गया। जब आर्थिक जिम्मेदारी दोनों मिलकर उठाएंगे तो गृह कार्य की जिम्मेदारी भी दोनों में बटेंगी और यह सुखी दांपत्य जीवन के लिये जरूरी भी है।

रूढ़िवादी विचारों वाले भले ही इससे असहमत हों लेकिन परिस्थितियों में सामंजस्य बैठाने के लिये यह नितांत आवश्यक है कि लड़कों को भी गृह कार्य में हाथ बंटाना चाहिए। जिस तरह लड़कियाँ उच्च शिक्षा प्राप्त करके आत्मनिर्भर बन रही हैं उसी तरह लड़कों को भी गृह कार्य में निपुण होना बहुत जरूरी है।


‘परस्पर प्रेम एवं सहयोग, सुखी दाम्पत्य का आधार’
मनीषा राठी, उज्जैन

निसंदेह भारतीय संस्कृति पितृ सत्तात्मक रही है, किंतु विगत एक डेढ़ दशक में स्थितियों में बहुत परिवर्तन आया है। अब वो समय गया जब मात्र पुरुषों के कंधों पर कमाई व घर के ख़र्चों की आपूर्ति करने का दायित्व था ,और महिलायें मात्र गृह कार्य सम्पन्न करती थी।

चूँकि महिलायें गृह कार्य के लिए पूर्णत: उपलब्ध थी तो पुरूषों को आवश्यकता ही नही थी कि वो गृह कार्यों में हाथ बँटायें। किंतु आज के समय में लड़कियाँ उच्च शिक्षा प्राप्त कर बाहर काम कर रही हैं। जब पति-पत्नी दोनो को ही कार्यालयीन कार्य सम्पन्न करने हैं तो ये आज के समय की महती आवश्यकता हो गयी कि वो गृह कार्यों में पत्नी का सहयोग करें अन्यथा दाम्पत्य जीवन में अनेक समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।

चाणक्य कहते हैं कि पति-पत्नी का रिश्ता एक रथ के दो पहियों की तरह होता है। परिवार के निर्माण में दोनों की ही अहम भूमिका होती है। मनोवैज्ञानिकों का भी कहना है कि छोटी-छोटी बातें करते रहने से रिश्ते में आत्मीयता बनी रहती है।


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