Readers Column

नवखुशियों का महादान है नेत्रदान

प्रकृति ने तो दुनिया बहुत सुंदर बनाई है, लेकिन यह दुनिया की खुबसूरत आंखों के बिना अधूरी है। दुनिया के हर नजारे का आनंद लेने के लिए आंखों जरूरी हैं। ऐसे में सोचें यदि आंखें न हों तो जीवन कैसा होता है? उत्तर होगा, अत्यंत भयावह। इसी भयावहता का समाधान है, नेत्रदान, जो हम मरणोपरांत करते हैं।

आंखों की रोशनी जाने की वजह कॉर्निया की बीमारियां, ग्लूकोमा, कैंसर आदि कई बीमारियां हैं। इसका एक मात्र इलाज नेत्रदान है। नेत्रदान से किसी ऐसे व्यक्ति को रोशनी मिलती है जिसकी आंखें नहीं होती या खराब हो जाती हैं।

भारत में लगभग 4.5 मिलियन लोग कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से पीड़ित हैं, जिसका समाधान नेत्रदान से हो सकता है। हर साल स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से 25 अगस्त से 8 सितंबर तक राष्ट्रीय नेत्रदान पखवाड़ा मनाया जाता है।

इसका मुख्य उद्देश्य नेत्रदान के महत्व के बारे में यानी कॉर्निया ट्रांसप्लांनटेशन के बारे में लोगों को व्यापक पैमाने पर जागरूक करना है तथा लोगों को मृत्यु के बाद अपनी आंखें दान करने की शपथ लेने के लिए प्रेरित करना है।

क्या है नेत्रदान ?

किसी भी पुरुष या महिला द्वारा अपने मरने के बाद आंख दान करने की क्रिया को आई डोनेशन कहते हैं। नेत्रदान का निर्णय पूरी तरह से स्वैच्छिक होता है। यह समाज सेवा का बेहतरीन माध्यम है। अपनी मृत्यु के बाद नेत्रदान करके आप किसी इंसान को जीवन दान दे सकते हैं।

आप किसी भी अंग का दान कर किसी इंसान की जिंदगी संवर सकते है। मरणोपरांत एक आंख किसी नेत्रहीन व्यक्ति को दान कर कॉर्नियल ट्रांसप्लांटेशन की मदद से ,सर्जरी के जरिए नेत्रहीन व्यक्ति को आंखों की रोशनी दी जा सकती है और उसके परिवार को ढेर सारी खुशियां दे सकते हैं।

आंखों की काली या ब्राउन परत को कॉर्निया कहते हैं। कॉर्निया साफ टिश्यू होता है जो आंख के बाहरी हिस्से को कवर करता है। कॉर्निया में जख्म होने से, या धुंधला होने से, या इंफेक्शन होने से दृष्टि कम या समाप्त हो जाती है।

कॉर्नियल ट्रांसप्लांटेशन, जिसे कॉर्नियल ग्राफ्टिंग भी कहा जाता है, एक सर्जिकल प्रक्रिया है, जिसमें क्षतिग्रस्त कॉर्निया को डोनेटेड कॉर्नियल टिश्यू द्वारा बदल दिया जाता है। रिसर्च कहती है कि एक कॉर्निया दो लोगों को नेत्र ज्योति दे सकता है।

कौन कर सकते हैं नेत्रदान:

किसी भी उम्र के पुरुष या महिला आंख दान कर सकते हैं। हाइपरटेंशन, डायबिटीज, अस्थमा, ट्यूबरक्यूलोसिस आदि से पीड़ित और चश्मा पहनने वाले भी और मोतियाबिंद का ऑपरेशन करा चुके लोग भी नेत्रदान कर सकते हैं।

रेबीज, कैंसर, ब्रेन ट्यूमर, सिफीलिस, हेपेटाइटिस बी और सी, मेनिंनज्यायटिस रोगी नेत्रदान के लिए अपवाद है। आइ डोनेशन प्रोसेस में नेत्रदान करने वाले व्यक्ति के मृत्यु के तुरंत बाद नजदीकी आई बैंक को तत्काल सूचित करें।

मृतक की आंखों को बंद करें, उसकी आंख में नमी बनाए रखने के लिए आंखों के ऊपर नम कपास रखें, उस पर लगातार साफ-सुथरे पानी की बूंदों का छींटा डालते रहिए। आंखों को संक्रमण से बाहर रखने के लिए एंटीबायोटिक बूंदों का उपयोग कर सकते हैं।

नेत्रदान कब और कैसे ?

मृत्यु के बाद 6 घंटे के अंदर मृत्यु की सूचना आई हॉस्पिटल, आई बैंक या प्रमुख सरकारी नेत्र विशेषज्ञों को फोन से देनी होती है। नेत्र विभाग का कोई डॉक्टर या प्रशिक्षित आई बैंक टेक्निशियन मृत व्यक्ति के घर जाकर मृतक की आंख का कॉर्निया निकालकर खाली जगह पर आर्टिफिशियल कांटेक्ट लैंस लगा देता है ताकि नेत्रदान करने वाले का चेहरा विकृत ना दिखे।

पूरी प्रक्रिया में 15 से 20 मिनट का समय लगता है। यह प्रक्रिया पूरी निःशुल्क है। अगर मृतक व्यक्ति ने अपना पंजीकरण नहीं करवाया है तो उसके आकस्मिक मृत्यु के बाद उसके परिजन या कोई निकट संबंधी आई बैंक को जानकारी देकर सारी प्रक्रिया को पूरा करके मृतक व्यक्ति का नेत्रदान करवा सकते हैं।

यह प्रक्रिया पूरी तरह से लीगल है। जीवित व्यक्ति वर्तमान में नेत्रदान नहीं कर सकता। नजदीकी आई बैंक में जाकर नेत्रदान करने की इच्छा जताकर एक फॉर्म भरकर रजिस्ट्रेशन करवा सकता है। नाम का पंजीकरण करने के लिए सिर्फ 2 मिनट का समय लगता है।

डॉ. मंगल शरद राठी, परतवाड़ा

Click here to download SMT app

Via
Sri Maheshwari Times

Related Articles

Back to top button