बदलता वानप्रस्थ
इस स्तम्भ में अ.भा. माहेश्वरी महिला संगठन की पूर्व अध्यक्ष तथा मुम्बई विश्वविद्यालय की सेवानिवृत्त प्रोफेसर कल्पना गगडानी ‘‘जिन्दगी की नई राह’’ दिखाएंगी। इसके अंतर्गत अपनी ओजस्वी वाणी व लेखनी के लिये ख्यात श्रीमती गगडानी इस बार दिखा रही हैं, वरिष्ठजनों की ऊर्जा को एक नया आयाम। पढ़े ये रचना “बदलता वानप्रस्थ”
सिटीजन नागरिक होता है और सीनियर विशेष क्षेत्र में वरीयता प्राप्त व्यक्ति होता है। वरीयता अनुभव से, ज्ञान से और काम से प्राप्त होती है और बुद्धिमता इसमें है कि हम प्राप्त का प्रयोग किसी हित कार्य में करें और इससे उसमें वृद्धि करें। इस जीवन यात्रा में हमने उम्र में भी वरीयता प्राप्त की है तो उससे मिले अनुभव, ज्ञान का बुद्धि से प्रयोग करना होगा।
भारतीय संस्कृति सुंदर वर्णाश्रम व्यवस्था पर टिकी थी। आश्रम व्यवस्था अर्थात सौ वर्ष की आयु के 25-25 के चार समूह ब्रह्मचर्य के 25, ज्ञानार्जन व गृहस्थ के 25, कर्म क्षेत्र तथा वानप्रस्थ के 25- कितना सुनियोजित विधान वन गमन- जंगल की ओर प्रस्थान। विकासवाद ने व्यवस्था का विकास किया। शाश्वत मूल्य वही हैं परस्थिति अनूरूप बदलने का चलन हमेशा चला। मूल्यों और बदलाव का सामंजस्य अब हमें समझना और समझाना है।
क्यों जरूरी था वानप्रस्थ
वानप्रस्थ इसलिये आवश्यक था क्योंकि जब हम पचास के अगली पीढ़ी में कदम रखते हैं। ऐसे में ब्रह्मचर्य में ज्ञान अर्जित कर ग्रहस्थ के द्वार पर दस्तक देने लगी, कर्मक्षेत्र में उतरने को तैयार। अब हम यही जगह उन्हें नहीं देंगे तो ट्रेफिक जाम हो जायेगा वो बेचारे हमारे अनुभव का हार्न सुन-सुनकर परेशान हो जायेंगे। सामाजिक व्यवस्था को संयोजित करने हेतु आश्रम व्यवस्था थी। राष्ट्र, समाज और परिवार सुनियोजित रहेगा तब ही सबका जीवनसुखी रहेगी।
वर्तमान में वानप्रस्थ का यह रूप
पारिवारिक नियोजन धक्कामार के ट्रेफिक हटाने की नौबत न आये हम अपने आप धीरे से किनारा कर लें। गृहस्थी की बागडोर नये गृहस्थ के हाथों में सौंप दे। हमारे अनुभव की राय यदि वे चाहें तो जरूर दे वर्ना हमारे जमाने में का राग न अलापें। उन्हें उनकी योग्यता और ज्ञान से काम करने दें। मन में निश्चय कर लें कि हमने हमारी पारी खेल ली है। अब दूसरे को उसके ढंग से खेल खेलने दें।
सामाजिक नियोजन
वानप्रस्थ का भाव था कि गृहस्थ में जो अर्जित किया है अब उसे बांट दें, धन, ज्ञान सेवा सब बांटें। वनगमन अब सुख सुविधा के हम अभ्यस्तों के लिये संभव नहीं परंतु घर में ही वानप्रस्थ की भावना का अनुसरण करें। घर में आपके बच्चों को यदि आपकी इस धन, ज्ञान, कर्म, संपदा की आवश्यकता नहीं है तो समाज में बांटें। समाज आपका ऋणी रहेगा।
व्यक्तिगत नियोजन
यह आज सबसे अधिक जरूरी है। संयुक्त परिवार में हम उम्र भाइयों, रिश्तेदारों के बीच अकेलेपन का अहसास नहीं होता था। बोलने-बताने वाले बहुत थे। अब बेटे-बहू पोते-पोती कर्मक्षेत्र की जद्दोजहद में व्यस्त हैं। उनसे नाराज मत होइये, अपने दोस्त बनाइये, अपने शौक जगाइये ये बोनस है, इसे मनमर्जी से खर्च कीजिये।
स्वास्थ्य नियोजन
ये बहुत जरूरी है, स्वस्थ नहीं रहे तो बोनस का मजा कैसे उड़ायेंगे? उम्र के साथ जो बीमारियां आनी हैं, वो तो अब तक खूब आ ही गई हैं, उन्हें मनाते बैठेंगे तो कैसे चलेंगे, हां वॉकिंग, योगा, एक्सरसाइज करेंगे तो पिकनिक पार्टी का हर दिन मजा लेंगे। डर-डर के क्यों जिएं, अब भी क्या सौ साल की चाह में प्यारे आठ दस साल गवां दें। अरे पूरी जिंदगी तो भागदौड़ करते रहे, अब तो हम छककर जियेंगे, जब तक जियेंगे, अनुभव की डोर, संतोष का साथ, सुविधाओं की लकड़ी थाम, जिंदगी खूब जियेंगे, खुशियों को लेकर चारों धाम।