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अभी भी शोध का विषय है- माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति

सर्वमान्य रूप से माहेश्वरी समाज महेश नवमी को अपना उत्पत्ति दिवस मानता आ रहा है। इन सब के बावजूद यह अभी भी शोध का विषय है कि माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति कितने वर्ष पूर्व हुई? आखिर वह कितने वर्ष पूर्व की महेश नवमी थी, जब क्षत्रिय से हमने वैश्य कर्म अंगीकार किया था?

प्रचलित मान्यताओं के अनुसार माहेश्वरी जाति की उत्पत्ति का घटनाक्रम एक पौराणिक कथा से जोड़ा जाता है। इसके अनुसार खण्डेला के राजा खड़गल सेन के पुत्र सुजान कुँवर व उनके 72 उमराव यज्ञ विध्वंस के दोष के कारण ऋषि श्राप से पाषाणवत हो गये थे। भगवान महेश और पार्वती के आशीर्वाद से वे पुनर्जीवित हुए तथा महेश नवमी पर लोहार्गल नामक तीर्थस्थल पर तलवार छोड़ तराजू धारण कर वैश्य हो गये और माहेश्वरी कहलाऐ। समाज के प्रथम इतिहासकार श्री शिवकरण दरक व विभिन्न जागाओं की बहियों से समाज की उत्पत्ति का सर्वमान्य रूप से यही कथानक सामने आता है।


उत्पत्ति का काल शोध का विषय

समाज की उत्पत्ति के काल को लेकर बहुत मतभेद है। मगनीरामजी जागा के अनुसार यह माहेश्वरी समाज का उत्पत्ति दिवस विक्रमादित्य से 3984 वर्ष पूर्व था। शिवकरणजी दरक ने इस वर्ष को ‘‘शक प्रथम’’ का संवत 9 लिख दिया जो अस्पष्ट है। उत्पत्ति दिवस को लेकर भी मतभेद हैं, क्योंकि दरकजी ज्येष्ठ शुक्ल नवमीं को उत्पत्ति दिवस मानते हैं, जबकि जागा कार्तिक शुक्ल एकादशी शनिवार को उत्पत्ति का समय मानते हैं।


क्या कहते हैं पुराने साक्ष्य

अधिकांश जागा माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति विक्रमादित्य से 3984 वर्ष पूर्व कार्तिक शुक्ल 11 को ही मानते हैं और लाला सालिगरामजी माहेश्वरी (सोमानी) ने भी इस तथ्य को स्वीकार करते हुए इसी कालावधि को अपनी पुस्तक में समाहित किया। स्व. श्री दरक ने अथक प्रयत्नों से जागाओं से जानकारी प्राप्त कर पुस्तक में इन्हें समाहित किया था, अतः हो सकता है किन्हीं कारण वश अस्पष्टता बन गई हो। उनके पुत्र रामरतनजी दरक ने काल सम्बंधित इस त्रुटि का सुधार करते हुए इसमें विक्रमादित्य से 3984 वर्ष पूर्व का काल जोड़कर भूल सुधार किया है।


शोध के आयने में उत्पत्ति

अधिकांश जागाओं ने अपनी बहियों में माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति का वर्ष युधिष्ठिर संवत 9 माना है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार युधिष्ठिर ने राजसूयी यज्ञ के समय अपने नाम से संवत प्रारम्भ किया था। इसके बाद ही जुए में हारने के कारण उन्हें 12 वर्ष वनवास तथा 1 वर्ष अज्ञातवास बिताना पड़ा।

महाभारत युद्ध जीतकर ही वे पुनः राजा बने थे। अतः महाभारत युद्ध युधिष्ठिर संवत 13 में हुआ था, तो युधिष्ठिर संवत 9 महाभारत युद्ध से निश्चित ही चार वर्ष पूर्व था। इसके पश्चात उन्होंने 36 वर्ष राज्य किया था। उनके हिमालय गमन के साथ ही द्वापर युग समाप्त हो गया था। ज्योतिष के आधार पर कई विद्वानों ने वसंत सम्पात को आधार मानकर काल गणना की है। इसमें विदेशी विद्वानों के साथ ही लोकमान्य तिलक आदि ने भी महाभारत काल की गणना की है।

उन्होंने इसे वर्तमान समय से लगभग पाँच हजार एक सौ चौबीस वर्ष पूर्व बताया है। इसमें कलयुग के 5124 वर्ष शामिल हैं। इस मान से माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति का युधिष्ठिर संवत 9 वर्तमान वर्ष से 5124+36+5= 5164 वर्ष पूर्व माना जाऐगा। मगनीरामजी जागा आदि की गणना में 899 वर्ष का समय अधिक आता है।


अभी भी अनिर्णित है उत्पत्ति काल

तमाम प्रयासों के बावजूद अभी भी विद्वानों की आम सहमति किसी भी कालगणना पर नहीं बनी है। समाज की उत्पत्ति पर शोध करने वाले ‘‘माहेश्वरी वंशोत्पत्ति तथ्यान्वेषण’’ के लेखक कलकता के गौरीशंकर सारदा इस मत से पूर्ण सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि मगनीरामजी जागा के अनुसार माहेश्वरी जाति की उत्पत्ति के समय बृहस्पति मेष राशि में स्थित था।

ज्योतिर्विज्ञान की गणना के अनुसार पाँच वर्ष पश्चात यह कन्या राशि या इसके आस-पास ही होना चाहिये, क्योंकि यह प्रतिवर्ष एक राशि आगे बढ़ता है। यदि महाभारत काल की ग्रह स्थितियाँ देखी जाऐं तो उस समय बृहस्पति मकर राशि में था। अतः युधिष्ठिर संवत 9 में माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति मानना विवादास्पद होगा। वे जागाओं की बहियों के आधार पर मानते हैं कि भगवान राम के काल से 300 वर्षों के अन्दर माहेश्वरी जाति की उत्पत्ति हो चुकी थी।

महाभारत युद्ध में उनकी 30 वीं पीढ़ी के राजा बृहदबल ने भाग लिया था। यदि 30 वर्ष प्रति पीढ़ी का आकलन किया जाऐ तो यह माना जाऐगा कि राम से 900 वर्ष पश्चात महाभारत युद्ध हुआ था। अतः माहेश्वरी समाज की उत्पत्ति महाभारत युद्ध से 5 वर्ष नहीं बल्कि लगभग 600 वर्ष पूर्व हो चुकी थी।


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