रहन-सहन एक जीवन शैली
रहन-सहन भारतीय संस्कृति का बड़ा ही सारगर्भित शब्द युग्म है जिसका प्रयोग परिवार विशेष में बड़ी ही उपयुक्तता के साथ किया जाता था।
जब भी परिवार विशेष में कोई विवाह प्रसंग का प्रारंभ होने जाता, लड़के या लड़की के लिये संबंध ढूंढने का कार्य शुरू होता, घर के बुजुर्ग और जानकार पुरूष संबंध देखकर लौटते तो महिलाएं पहला सवाल करतीं कि उस घर का रहन सहन कैसा है?
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‘‘रहन’’ अर्थात उस घर का लिविंग स्टेण्डर्ड कैसा है? घर कैसा है? घर में नौकर चाकर कितने हैं। गाड़ियां कितनी हैं? घर का खान-पान कैसा है? इसी के साथ दूसरा शब्द पूछा जाता था ‘‘सहन’’ अर्थात परिवार के लोगों में आपसी भाईचारा कैसा है? उनकी सहन शक्ति कितनी है? इस आधार पर परिवार की योग्यता अयोग्यता का निर्धारण किया जाता था। ‘‘रहन’’ और ‘‘सहन’’ को बराबरी का दर्जा दिया जाता था।
आज परिस्थितियां बदल गई हैं। रहन-सहन में रहन को हम बहुत उच्च स्थान पर ले गए हैं। हमारा स्टेण्डर्ड आज बहुत ऊँचाई पर पहुंच गया है। खर्च करने की प्रवृत्ति बहुत अधिक बढ़ गई है। बिना ब्रांड के अब हम बात नहीं करते। खुशी की बात है यह हमारी बढ़ती हुई आर्थिक क्षमता की निशानी है। कमाई के अनुरूप खर्च में घटत-बढ़त करने में कोई हर्ज नहीं।
‘‘रहन’’ जितना ही जरूरी था ‘‘सहन’’। सहन अर्थात उस परिवार में आपसी सामंजस्य कैसा है, वहां के लोगों की सहनशक्ति कैसी है? वह सुख-दुख हार जीत, प्रिय-अप्रिय को कितना सहन कर सकते हैं? ये सहनशीलता आदमी की सच्चरित्रता की निशानी होती थी।
अफसोस आज हमने रहन को तो बहुत उच्च स्थान पर बैठा दिया किन्तु ‘‘सहन’’ के भाव को ही विस्मृत कर दिया है। सहनशक्ति मृत प्राय हो गई है।
इसके प्रारंभिक परिणाम परिवारों के टूटने में नजर आने लगे। संयुक्त परिवार टूट कर विभक्त परिवार बने, विभक्त से एकल परिवार से गुजरता आदमी अब केवल एकाकी रह गया। सहनशक्ति खत्म होने के अनेकों भीषण परिणाम भी आज समाज में और व्यक्तिगत जीवन में नजर आ रहे हैं।
बच्चे, युवा पीढ़ी से लेकर बुजुर्ग तक बात-बात में डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। यह बीमारी अत्यधिक आम होती जा रही है। चुनौतियों का सामना करने वाली उम्र में युवा डिप्रेशन की दवाईयां खाएगा तो देश और समाज का हित चौपट हो जायेगा। सहन शक्ति के अभाव में फ़्रस्टेशन का स्तर भी बहुत अधिक बढ़ गया है। बात – बात में फ्रस्टेट होने से आपसी संबंध बुरी तरह टूटते जा रहे हैं। ‘‘मैं’’ और ‘‘मेरा’’ के अलावा कोई कुछ जानना समझना ही नहीं चाहता। टूटते हुए परिवार और बढ़ते हुए तलाक, संबंध विच्छेद इसी की परिणिती हैं।
यदि हम खुश रहना चाहते हैं तो हमें ‘रहन’ के साथ ‘सहन’ की राह को समझना होगा। सहन शक्ति के साये में ही आप रहन अर्थात् उच्च जीवन शैली का आनंद उठा पायेंगे और जिंदगी की राह को भी अनुकूल बना पायेंगे।