कैसा हो हमारा समाज नेतृत्व
माहेश्वरी समाज के संगठनात्मक चुनावों की सरगर्मी प्रारम्भ हो गयी है। शीघ्र ही स्थानीय, जिला, प्रदेश व महासभा के चुनाव होंगे। समाज के संगठनो का नेतृत्व समाज के विकास को सुनिश्चित करता है। अतः सही नेतृत्व के चयन के लिए इस विषय पर चिंतन अनिवार्य हो गया है कि “कैसा हो हमारा समाज नेतृत्व”। आईये जानें इस ज्वलंत विषय पर स्तंभ प्रभारी मालेगांव निवासी सुमिता मुंदरा से उनके व समाज के प्रबुद्धजनों के विचार।
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जो ‘स्व’ को भूल ‘पर’ को अपनाएं – सुमिता मूंधड़ा, मालेगांव
हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक सफल नेतृत्व का जीता जागता सबसे उम्दा उदाहरण हैं। अगर हम और आप वर्तमान में भारत देश की ही भांति अपने समाज को ऊंचाइयों पर देखना चाहते हैं और समाज-बंधुओं को एकता में पिरोकर रखना चाहते हैं तो हमें श्री मोदी का अनुसरण करना चाहिए। समाज का नेतृत्व वंशानुगत उत्तराधिकारी के हाथों में कदापि नहीं जाना चाहिए, नई सोच के साथ सबको साथ लेकर आगे बढ़ने वाले सशक्त हाथों में यह जिम्मेदारी होनी चाहिए। नेतृत्वकर्ता को ‘स्व’ को भूलकर ‘पर’ को अपनाना होगा तभी वह हर समाज-बंधु से जुड़ सकता है। जब से डिजिटल युग का आरंभ हुआ है, समाज के हर बंधु से संपर्क रखना भी बहुत आसान हो गया है। बरसों से कुर्सियों पर विराजे समाज नेताओं को युवा-वर्ग को आगे बढ़ाकर उनका मार्गदर्शक बनना चाहिये। नई सोच और विचारधारा के युवाओं को अपने अनुभवों से सिंचित कर पनपने का अवसर देना होगा। समाज के उच्च-पदों पर पैसे और शक्ति के बल पर अपना हक ना जमाएं, तो उनका मान-सम्मान दिल से होगा वरना तो उनके आस-पास चमचागिरी का बोलबाला रहेगा। वर्षों से सामाजिक कार्यभार और पदों को संभालने वाले नेतृत्वकर्ता को अपनी पारखी आंखों से भावी युवा सामाजिक कार्यकर्ताओं को परख कर उन्हें जिम्मेदारियां सौंपनी चाहिए। परिवर्तन संसार का नियम है और हमारी समझदारी होगी कि हम इस बात को स्वीकार लें। समाज के नियम और कानूनों में निरंतर परिवर्तन कर एक सजीवता बनाए रखें। कुप्रथाओं का सहयोग नहीं विरोध करें। नेतृत्वकर्ता को समाज-बंधुओं के वैचारिक मतभेदों को मनभेद नहीं बनने दें वरना समाज-बंधुओं में आपसी गुटबाजी को बढ़ावा मिलेगा। जो भी सामाजिक आचार-संहिता बनाये जाए उस पर पदाधिकारी सदैव खरे उतरें क्योंकि उच्च-पदों का तो पूरा समाज अनुसरण करता है।
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बॉस रहित पद्धति पर आधारित हो समाज का नेतृत्व – पूजा नबीरा, काटोल नागपुर
नेतृत्व का तात्पर्य है, सही दिशा में निर्देशित करना, किन्तु आज पद पर बैठते ही बॉस प्रवृत्ति की एक प्रद्धति ने अपना प्रभुत्व जमा लिया है। प्रतिनिधि बनकर जब कोई व्यक्ति पद संभालता है, तब वास्तव में उसका उद्देश्य हुकूमत शाही न होकर सेवाभावना होना चाहिए। सामाजिक संस्थाएं वास्तव में समाज की उन्नति एवं समस्याओं के निराकरण के लिए गठित की जाती हैं। चयनित व्यक्ति में समाज के प्रति समर्पण एवं निष्पक्षता के साथ पूरे समाज को संगठित एवं संचालित करने की क्षमता अवश्य होना चाहिए। शीर्ष नेतृत्व को संवेदनशील मुद्दे पर जागरूक एवं संस्कृति को अक्षुण्य बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील होना चाहिए। अहंकार एवं दिखावा, स्वप्रभुत्व हेतु मतभेद से संगठन में जो बिखराव दिखाई देते हैं, वे निश्चित ही पीड़ादायक हैं।
नेतृत्व हो ऐसा, कर सके जो विकास..
बिन अहंकार के लेकर चले, सबको साथ साथ…।’
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ऐसा ऊर्जावान जो ऊर्जा का संचार करें- हंसमुख हेड़ा, कोषाध्यक्ष, भीलवाड़ा जिला माहेश्वरी युवा संगठन
समाज के नेतृत्व का प्रश्न है, तो हमें यह कभी नही भूलना चाहिए कि समाज को दिशा देना, नई सोच प्रदान करना, भावी पीढ़ी का मार्गदर्शन करना, समाज के लोगों में त्याग की भावना पैदा करना, समाज के प्रति लोगों को उत्तरदायी बनाना, समाज का नेतृत्व करने वालों का ही कार्य है। समाज में एक नई ऊर्जा का संचार करने के लिए नए ऊर्जावान नेतृत्व की आवश्यकता है। आज देश की आबादी का ७० प्रतिशत युवा वर्ग है। ऐसी स्थिति में युवाओं को समझने के लिए, समाज की बागडोर युवाओं के हाथो में होनी चाहिए। नेतृत्व युवाओं को दिया जाना चाहिये लेकिन निगरानी वरिष्ठ बुद्धिजीवियों द्वारा की जानी चाहिए। ताकि समाज की गाड़ी अपना संपूर्ण माइलेज दे सके।
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नेतृत्व क्षमता होना जरूरी- महेशकुमार मारू, मालेगांव
सर्वप्रथम प्रत्येक स्तर के चुनाव निर्विघ्न पूर्ण हो, इसके लिए शुभकामना व्यक्त करता हूं। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हर सामाजिक और पारिवारिक कर्म रुचि प्रधान होते हैं, जैसे व्यवसाय करना, उद्योग चलाना, नौकरी करना या सामाजिक कार्य करना। अतः यह निश्चित है कि जिन्हें सामाजिक कार्य करने में रुचि होती है। वही चयन प्रक्रिया में हिस्सा लेते हैं। रुचि होना और कर्तव्य बोध भी होना यह सामाजिक कार्यकर्ता के दो महत्वपूर्ण गुण हैं। साथ ही साथ समाज की वर्तमान स्थिति तथा भविष्य में होने वाले बदलाव, समाज का संगठनात्मक ढांचा कैसे अबाध रह सके, इसके लिए नेतृत्वकर्ताओं की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसलिये नेतृत्वकर्ता का चयन करते समय हमें इस विषय का संपूर्ण बोध होना चाहिए कि हम जिसे चयनित कर रहे हैं, उस व्यक्ति में नेतृत्व करने की क्षमता किस स्तर की है। वह वर्तमान में अत्यंत महत्वपूर्ण तथा ज्वलंत सामाजिक विषयों पर कितना संवेदनशील है, उनकी कितनी जानकारी रखता है और उन समस्याओं का सही निदान करने में कितना सक्षम हैं?
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सबका साथ सबका विकास की सोच हो- मधु भूतड़ा, जयपुर
समाज के नेतृत्व के चयन के लिए एक अच्छा नेता वही होता है जो सच्चा, ईमानदार, पारदर्शी, दूरदर्शी, हंसमुख, मिलनसार और सुखद व्यक्तित्व का होता है, जिसके लक्ष्य में समाज का विकास और सेवाभाव की प्रतिबद्धता होती है। नेतृत्व करने वाले नेता के साथ एक सहयोगी एवं प्रभावशाली टीम का होना अति आवश्यक है, और उनका मनोबल बढ़ाने की काबिलियत भी नेतृत्व के लिए जरूरी है। सबका साथ सबका विकास ही उसका लक्ष्य होना चाहिए। समाज के नेतृत्व के लिए चयन में विशेष तौर पर एक बात और ध्यान रखने योग्य है कि धैर्यपूर्वक जो समाज बंधुओं की बात सुनने की क्षमता रखता हो, मर्यादित भाषा का प्रयोग करने वाला हो, ऐसे ही विशेषता वाले व्यक्ति ही नेतृत्व की सही बागडोर संभाल कर रख सकते हैं। कुल मिलाकर जो व्यक्ति तन-मन और धन तीनों से समाज को सर्वश्रेष्ठ योगदान दे सकते हैं, वही समाज के नेतृत्व पद के लिए सच्चे अधिकारी हैं।
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समाज के निचले स्तर पर भी जिसकी दृष्टि हो- नृसिंह करवा ‘बन्धु’, जोधपुर, राजस्थान
जनवरी में सूर्यनगरी जोधपुर में अंतरराष्ट्रीय महाअधिवेशन में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और लोकसभा की तत्कालीन अध्यक्षा सुमित्रा ताई ने जब अपने संबोधन में कहा कि हमारे सामने ‘भारतवर्ष का जीडीपी बैठा है’ सच मानिए सदन में बैठे हर माहेश्वरी बंधु की छाती गर्व से चौड़ी हो गई होगी। भारत का जीडीपी के रूप में जाने जाना वाले हमारे समृद्ध और संपन्न समाज जब ‘हमारा नेतृत्व कैसा हो’ का जबाब ढूंढे तो ये शायद औपचारिक मात्र ही होगा। वास्तव में उन्हें समाज रूपी परिवार के मुखिया की भूमिका में रहना अति आवश्यक है। उसकी दूरदृष्टि समाज के अंतिम छोर पर खड़े अपने ही सामाजिक भाई तक पहुंचे जो अभावों में कुछ कदम पिछड़ गया हो। ये नेतृत्व का ही धर्म है कि सब को एक समान समझ साथ लेकर चले। आज कोटा सांसद ओम बिड़ला देश के सर्वोच्च लोकतंत्र की पंचायत के अध्यक्ष पद पर सुशोभित हुए हैं। अगर नेतृत्व की पैनी नजर हो, तो प्रतिभाओं के अकूत भंडार हमारे बीच में ही मिल सकते हैं। दुर्भाग्य से समाज के कई बड़े चुनावों को नजदीक से देखने पर नजर आया है कि प्रतिस्पर्धा की गरिमा से नीचे उतर प्रतिपक्षी पर आरोप-प्रत्यारोप लगा कर चुनाव लड़े गए हैं। कुशल नेतृत्व के प्रयासों में हमें ऐसी बातों से परे होना पड़ेगा।
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जिसके सामने बिना झिझक अपनी बात रख सकें- भगवती शिवप्रसाद बिहानी, नाजिरा,असम
हमारे समाज का नेतृत्व करने वाला व्यक्ति ऐसा हो जिससे हर कोई आदमी अपने दिल की बात बिना झिझक के उनके सामने रख सके। जिसे हम चनुें उनका स्वभाव शांत, सुशील व अच्छे विचार वाला हो। एक खास बात यह भी हो कि जो वादा करे सभी से, वो कभी तोड़े नहीं। विश्वास ही हम सब की धरोहर है। जिन्हें हम चुनकर लाए वो समाज के लिए पूरी मेहनत व लगन से काम करे। ताकि हमारे समाज वालों को नौकरियों के लिए भटकना ना पड़े। किसी माहेश्वरी भाई का मैसेज आता है कि मेरा भाई या बेटा बीमार है, उसे रक्त की जरूरत है या फिर उसका ऑपरेशन करवाना है। ३ लाख रुपये चाहिए। २-४ आदमी तो पढ़ करके सहायता जरूर करते हैं बाकी पढ़कर छोड़ देते हैं क्योंकि १००० या फिर २००० से तो काम होगा नहीं। मैं चाहती हूं कि ऐसी नौबत ही क्यों आए? हम हमारे समाज में ऐसे नेतृत्व को चुनें जो ऐसे जरूरतमंद लोगों की सहायता के लिये तत्पर रहे और फंड की व्यवस्था भी रहे ताकि इलाज संभव हो सके। माहेश्वरी परिवार में भी मां व बाप की सेवा नहीं हो रही है। उनके लिए अलग से माहेश्वरी समाज व्यवस्था करे।
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सहनशीलता का गुण जरूरी- स्वाति रामचंद्र मानधना, बालोतरा जिला बाड़मेर (राजस्थान)
नेतृत्व यानी अग्रणी भूमिका का निर्वाहन। समाज रूपी संस्था में अग्रणी भूमिका मतलब बेहद जिम्मेदारी भरा पद। नेतृत्व की बागडोर अगर सही हाथों में हो, तो समाज तरक्की की सीढ़ियों पर चढ़ता है और अगर नेतृत्व क्षमता में दम और जज्बा ना हो तो सामाजिक स्तर का पतन हो जाता है। अब विचारणीय विषय यह है कि नेतृत्व कैसा हो? मेरी समझ में नेतृत्व करने वाले में सहनशीलता गुण मुख्य रूप से होना चाहिए। इसके अलावा उसे कुशल संगठनकर्ता होना अति आवश्यक है। कोई भी नेतृत्व तभी सफल होगा जब उसके पास संगठित समूह होगा। सबको साथ लेकर चलने की भावना से ही सामाजिक स्तर पर प्रयास सफल होंगे। योजनाओं का क्रियान्वयन होगा। नेतृत्व करने वाले को अपने पद की गरिमा का ख्याल होना चाहिए। शब्दों का चयन पद को ध्यान में रखते हुए हो क्योंकि यह शब्द ही तय करते हैं कि इंसान किसी के दिल में उतर जाएगा या किसी के दिल से उतर जाएगा। सामंजस्य बिठाकर काम का बंटवारा करना कुशल नेतृत्व क्षमता को परिलक्षित करता है।