Mulahiza Farmaiye
फुर्सत में करेंगे तुझसे हिसाब-ए-ज़िन्दगी?
पढ़िए इस महीने का मुलाहिजा फरमाइये- फुर्सत में करेंगे तुझसे हिसाब-ए-ज़िन्दगी
अभी तो उलझे है खुद को सुलझाने में?
कभी इसका दिल रखा और कभी उसका दिल रखा,
इसी कश-मकश में भूल गए खुद का दिल कहाँ रखा?
फिसलती ही चली गई, एक पल भी रुकी नहीं,
अब जा के महसूस हुआ, रेत के जैसी है जिंदगी?
कौन है जिसके पास कमी नही है,
आसमाँ के पास भी जमीं नही है?
चलें चलकर, सुकून ही ढूंढ़लाएँ,
ख्वाहिशें तो खत्म होने से रहीं?
ये इत्र की शीशियां बेवज़ह इतराती हैं … खुद पे
हम तो अपनो के साथ होते है .. तो ही महक जाते हैं….
कद बढ़ा नहीं करते हैं, एडियाँ उठाने से..
उँचाईया अक्सर मिलती हैं, सर झुकाने से…!!
न हमसफ़र न किसी हमनशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमी से निकलेगा
सब्र का घूंट दूसरों को पिलाना कितना आसान लगता है
ख़ुद पियो तो क़तरा-क़तरा ज़हर लगता है
–ज्योत्सना कोठारी, मेरठ
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