कैसे हो हमारा समाज सुखी
हम मानसिक तनावों, संकट, अभाव, पीड़ा आदि में जीते हैं, तो प्रश्न उठता है कि आखिर हम सुखी रहें तो कैसे? इन स्थितियों से मुक्ति के सूत्र आपके ही हाथों में हैं। आईये जानें वैष्णव विवेक विद्यालय जयपुर के सेवक ललित किशोर जाजू की जुबानी।
बड़ी पीड़ा होती है, जब हमारे प्रत्येक परिवार को दुखी, संकट ग्रस्त, अभाव में, प्रभाव में, पीड़ा में देखता हूँ। जब ये देखता हूं, कि घर के बुजुर्गों को उनका यथोचित सम्मान नहीं मिलता, अपितु समृद्ध घरों में उनके लिए ठौर नहीं रही है, जिससे कि उन्हें वृद्धाश्रमों का मुख देखना पड़ता है।
- कि भाई-भाई में छोटी छोटी बातों के कारण घर अलग करने की मांग उठती है।
- कि पति पत्नी एक दूसरे के साथ अब जी नहीं सकते।
- कि पितृ दोष से घर में सदैव अशांति बनी रहती है।
- कि BP और शुगर की तो कोई बात ही नहीं, हार्ट-किडनी-कैंसर-साइलेंट अटेक-ब्रेन डिसआर्डर एवं माइग्रेन जैसे रोगों से एक भी परिवार नहीं बचा है।
- कि छोटे-बडे सभी मोबाइल के एडिक्ट हो चुके हैं, किशोर अवस्था के बच्चों में इसके कारण भारी तनाव, क्रोधावेश, शक्ति हीनता, कुसंस्कार एवं दुश्चरित्रता आ गये हैं।
- कि माता-पिता बच्चों के व्यवहार से कुंठित हो गये हैं।
- कि नव युवा बच्चे केरियर कन्फ्यूजन से भारी डिप्रेशन में आ रहे हैं, और इससे सुसाइड़ केस बढ़ रहे हैं।
- कि व्यापारी बंधु टेक्स सोल्यूशंस, बिजनिस ग्रोथ, फाइनेंशियल लिवरेज, पोर्टफोलियो आदि को लेकर सही निर्देशन के अभाव में बडे परेशान हैं एवं गलत निर्णय द्वारा अपने धन-समय एवं शांति का ह्रास कर रहे हैं।
- कि कुछ बंधु धनाभाव से भारी समस्या ग्रस्त हैं।
- कि संतों की बातें तो समझ आती है और अपना अनुभव भी कहता है, कि बच्चों को आधुनिक पाश्चात्य शिक्षा बरबाद कर रही है, शक्ति -सामर्थ्य-चरित्र-संस्कार से हीन बना रही है, एवं डिग्री पाकर भी बेरोजगारी बढ़ रही है, फिर भी कोई विकल्प नहीं दिखता,जो बच्चों को समर्थ,चरित्र वान, सुसंस्कारी एवं समृद्ध बनाने का ठोस विज्ञान प्रदान करे।
- कि यदि कोई आकस्मिक या सामाजिक विपत्ति आए, तो कोई साथ देने वाला या कोई इससे निपटने का रास्ता दिखाई नहीं देता।
- कि समाज के बंधुओं का वो वैचारिक सामंजस्य एवं सामाजिक सोहार्द केवल औपचारिकता बनकर रह गया है।
- कि शास्त्रोचित की जगह मन-मुताबिक दिखावे का व्यवहार बढ़ जाने से धर्म हीनता आ गई है। जिससे ‘यतो धर्म ततो जय:’ सिद्धांत के अनुसार सभी धर्म च्युत होने से दु:खी हो गए हैं।
- कि जो शांति-समृद्धि और धर्म की मूल श्री गौमाताजी सनातनी घरों की शोभा थी, वो कत्लखानों की ओर भेज दी गई हैं। जबकि श्रीकृष्ण भगवान ने हम वणिकों को गोरक्षा एवं गो सेवा हेतु अधिकृत किया है।
- कि अर्थ सक्षम बंधुवर अपने CSR फंड का उपयोग सही स्थान का पता नहीं होने से या तो विकृती बढ़ाने वाले स्थानों पर या मजबूरन शासन को देकर के, दोनों ही स्थिति में अपना ही पतन कर रहे हैं।
- कि सभी किंकर्तव्य विमूढ़ होकर अपनी ही आँखों से अपना विनाश देख रहे हैं।
आइये विचार करें, कि क्या कोई ऐसा भी रास्ता है कि इस समस्या चक्रव्यूह की परिधि से हम बाहर निकल सकें और उस आदर्श स्थिति (देहिक दैविक भौतिक तापा, राम राज काहूँ नहिं व्यापा) को प्राप्त कर सकें, जहाँ अभाव और प्रभाव नहीं हो, जहाँ सरस जीवन हो, निर्भय एवं निश्चिन्त जीवन हो।
जी, हाँ। एकमात्र रास्ता है सनातनी जीवन। कोई झाड़ फूंक या टोना टोटका नहीं है अपितु हर समस्या का निश्चित (गारंटेड) समाधान है विशुद्ध सनातनी प्रणाली से। आइये आपके ही समाज का एक बालक आपका लघु भ्राता आपसे निवेदन करता है कि आगे बढ़िये और इस अद्भुत सनातनी प्रकल्प को ठीक से समझिये और अपने जीवन को सुंदर बनाइये।