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वृद्धाश्रम और अनाथाश्रम एक छत के नीचे होना उचित अथवा अनुचित?

बीसवीं सदी के माता-पिता अपने बच्चों के भावी भविष्य के लिए धन संचय करते हैं। इसके लिए माता-पिता अपनी अनाथाश्रम और वृद्धाश्रम का अस्तित्व हमारे लिए बेहद शर्मनाक है। फिर भी दिनोंदिन इनकी संख्या में वृद्धि हो रही है। हम चाहकर भी इनको बंद करने का कोई उपाय नहीं ढूंढ पाए हैं। हमारे संस्कारों में चूक का परिणाम वृद्धाश्रम और अनाथाश्रम के रुप में हमारे समक्ष है। दोनों प्रकार के आश्रमों के अस्तित्व को स्वीकार करना हमारी विवशता है। पर एक सोच चल रही है कि अगर दोनों का एकाकार कर दिया जाए तो इसका परिणाम निश्चय ही बहुत सुंदर होगा। एक ही छत के नीचे वृद्ध और बच्चे दोनों एक-दूसरे का सहारा बनेंगे। बच्चों को अच्छी परवरिश और वृद्धों को उनका बचपन मिल जाएगा। बुजुर्गों के अनुभव का उपयोग भावी भविष्य के निर्माण में होगा।

ऐसे में इस गम्भीर विषय पर चिंतन अनिवार्य हो गया है कि वृद्धाश्रम और अनाथाश्रम को एक करने के लिए आवश्यक कदम उठाना उचित है अथवा अनुचित? आइये जानें इस स्तम्भ की प्रभारी सुमिता मूंदड़ा से उनके तथा समाज के प्रबुद्धजनों के विचार।


बचपन और पचपन का समागम हितकारी
सुमिता मूंधड़ा, मालेगांव

sumita mundra

वृद्धाश्रम और अनाथाश्रम का एकाकार होना बचपन और पचपन दोनों के लिए हितकारी साबित होगा। अनाथ बच्चों की बुजुर्गों की छत्रछाया में परवरिश होगी। बच्चों और बुजुर्गों दोनों को ही एक पारिवारिक माहौल प्राप्त होगा। बच्चों की उम्र का पहला पड़ाव और बुजुर्गों की उम्र का अंतिम पड़ाव हँसते-खेलते व्यतीत होगा।

बच्चों का समुचित सांस्कारिक और मानसिक विकास होगा। बुजुर्गों के नि:स्वार्थ पालन-पोषण करने से उनमें भी परोपकार और मानवता की भावना विकसित होगी। बुजुर्गों के जीवनभर का अनुभव और ज्ञान कभी भी अनाथ कदमों को गलत मार्ग पर नहीं ले जायेगा।

इतना ही नहीं अनाथ होकर भी वो बच्चे अपने भाग्य और नियति पर निर्भर नहीं रहकर आत्मनिर्भर बन जाऐंगे। बुजुर्गों को भी वृद्धाश्रम दुखदायी नहीं लगेगा, उन्हें जीवनयापन करने का मकसद मिल जाएगा। निसंतान बुजुर्ग भी संतान का सुख भोग पाएंगे और अनाथ बच्चों को माता-पिता का प्यार मिलेगा।

हम वृद्धाश्रम और अनाथाश्रम की बढ़ती संख्या पर रोक लगाने में असमर्थ हैं पर दोनों को एक छत के नीचे लाकर अनाथ बच्चों के जीवन में प्रगति और बुजुर्गों के जीवन की ढ़लती शाम में एक नया सवेरा जरूर ला सकते हैं। साथ ही इससे समाज-बंधुओं की कुछ बड़ी चिंताओं का निवारण भी होगा कि अनाथ बच्चों का भविष्य सुरक्षित और वृद्धाश्रम के बुजुर्गों का जीवन सुखद हो गया है।


परिवार सा माहौल होगा
राजश्री राठी, अकोला

rajshree rathi

आधुनिक परिवेश में अनेक कारणों के चलते अनाथालयों में बच्चों की संख्या बढ़ रही है। वहीं बड़े बुजुर्ग वृध्दाश्रमों में आश्रय पा रहे हैं। परिवार में प्रतिपल अवहेलना का शिकार हो उपेक्षित, कुंठा भरा जीवन जी रहे वरिष्ठ समुदाय को बच्चों का सानिध्य मिल जाए तो उन्हें कुछ हद तक परिवार द्वारा मिले कटु अनुभवों को भूलने में सहायता प्राप्त होगी।

इससे निश्चित उनका मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। बालमन जिज्ञासु होता है, उनके मन में अनेक सवाल उत्पन्न होते हैं। बच्चे अपने साथ रहने वालों को पूरे समय व्यस्त रखते है जिसके चलते तनाव से राहत मिलती है। बड़े बुजुर्गों की छत्रछाया में पल रहे बच्चों को जीवनावश्यक नैतिक मूल्यों का ज्ञान भी मिल जायेगा और ममत्व के अभाव का जो गहरा घाव वह सहते है उसमें बुजुर्गों का प्रेम मरहम का काम करेगा।

बचपन में सही-गलत का निर्णय स्वयं कर पाना मुश्किल होता है, बहुत से बच्चों को आगे सुधार गृह में रखने की नौबत आती है। ऐसी विकट परिस्थितियों से बचाव हेतु भी बड़े बुजुर्गो का साथ हितकर होगा। उनका अनुभव कच्ची उम्र के बच्चों को सही राह दिखायेगा। अनाथालयों और वृध्दाश्रमों का एक छत में होना हर दृष्टि से हितकर है। इसमें लिंग भेद के अनुसार विभाजन भी कर सकते है, जिससे लैंगिक शोषण जैसी समस्या का भय भी नहीं रहेगा।


हर प्रकार से यह उचित
पूजा काकाणी, इंदौर

pooja kakani

‘अनाथ आश्रम और वृद्ध आश्रम दोनों ही जगह का हम विरोध करते हैं। किंतु, घोर कलयुग के प्रभाव और नास्तिकता को हम चाह कर भी नहीं हटा पा रहे हैं। आज इतनी नकारात्मकता बढ़ती जा रही है कि इंसान-इंसान को नहीं सुहा रहा है। इससे सकारात्मकता की रोशनी को दबाव सा मिल रहा है, हम इसमें कुछ ट्विस्ट यह कर सकते हैं कि, वृद्ध आश्रम और अनाथ आश्रम एक छत के नीचे कर देना चाहिए।

जब छोटे बच्चे और जवान पट्ठे बड़े बूढ़ों के तजुर्बे से अपना जीवन अध्ययन करेंगे, तो अवश्य ही ऊंचाइयां हासिल कर सकते हैं और वह एक परिवार की तरह रहना सीख सकते हैं। बड़ों-बूढ़ों को भी उनके बुढ़ापे की लाठी मिल जाएगी और छोटे व बड़े बच्चों के साथ रहने, हंसने, गाने का मौका मिल जाएगा।

उन सभी के जीवन में आस्तिकता और सकारात्मकता के प्रभाव के कारण एक उजाला उत्पन्न होगा और उल्लासिता पैदा होगी। बड़े-बूढ़ों के साथ कम उम्र के बच्चे भी अच्छे से अच्छे संस्कार सीख पाएंगे और दोनों की एकता और हिम्मत बढ़ेगी।

एक वृद्ध आश्रम के गेट पर लिखा हुआ था, एक अप्रतिम सुविचार:- ‘नीचे गिरे सूखे पत्तों पर अदब से चलना जरा, कभी कड़ी धूप में तुमने इनमें ही पनाह मांगी थी।’ भावार्थ – उस चीज को कभी नहीं भूलना चाहिए, जो हमारे बुरे वक्त पर हमारे सहज अच्छे काम आयी थी। हमारे पास वही लौटकर आता है, जो हम करते हैं। क्योंकि दुनिया गोल है और हम सभी उसका एक हिस्सा हैं।


यह समय की आवश्यकता
शरद दरक, नवी मुंबई

sharad darak

आजकल फैमिली में सदस्य भी एडजस्ट नहीं कर पा रहे है उनमे भी मन मुटाव होता है। आज तिरस्कार, घृणा, बैर, लालच का बोलबाला है। जिसके चलते जिन्होंने ऊँगली पकड़ कर चलना सिखाया उनका ही तिरस्कार होता है और यही कारण होता है, वृद्धाश्रम पनपने का।

दूसरी ओर अनाथ होने के भी कई कारण हैं। आज के समय में अनाथ होना भी एक अभिशाप जैसा ही है। लेकिन अगर अनाथाश्रम में वृद्धाश्रम भी मिल जाये तो यह सुनिश्चित हो जायेगा कि अब आगे आने वाली उस (अनाथ) पीढ़ी में संकोच और संकीर्ण मानसिकता नहीं रहेगी।

जो वृद्धजन हैं वो पूरा समर्पण करके चाहेंगे कि कोई अनाथ अभाव अनुभव नहीं करे। अगर आप चाहते हैं कि आगे आने वाली अनाथ जनरेशन कर्तव्यों का सही तरीके से पालन करे तो यह सुनिश्चित करना होगा कि उन्हे वह संस्कार मिलें जिससे उनमे एकल खोरी की भावना न पनपे। यह सब संभव है अगर वृद्धाश्रम और अनाथाश्रम एक छत के नीचे हों।


जरूरत है, नन्हीं कलियों को पुष्पों की
जय बजाज, इन्दौर

jay bajaj

हमारे सामाजिक ताने बाने की बुनियाद में संस्कारों के स्तंभ का मजबूत होना बहुत जरुरी है। लेकिन वर्तमान समय में संस्कार विहीन आचरण के कारण कई घरों में कल्चर का कचूमर और मर्यादा की वॉंट लग रही है। अपनों से अपमानित और प्रताड़ित अनेक बुजुर्ग दंपति आपस में ही एक दूसरे को ‘आंसुओं के इंजेक्शन’ और ‘ममता का मल्हम’ लगाते रहते हैं।

ऐसे हालातों में फिर एक दिन वृद्धजनों का अगला ठिकाना वृद्धाश्रम में हो जाता है। हालांकि वृद्धाश्रम में उन्हें सारी सुविधाएं उपलब्ध होती हैं लेकिन अपने प्यारे नाती-पोतों की याद आती रहती है। दूसरी तरफ अनाथालय के बच्चे बुजुर्गों के स्नेह की आस लगाए बैठे रहते है।

वृद्धाश्रम प्लस अनाथाश्रम की ‘एक छत’ की अवधारणा से बुजुर्गों को राहत मिलेगी और बच्चे आशीर्वाद की रिमझिम से तरबतर हो जाएंगे। वृद्धाश्रम में धरती के इन देवताओं और अनाथाश्रम के बालगोपालों का परस्पर मिलन आज की परम आवश्यकता है।


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