क्या कोरोना का खतरा बढ़ाता है तामसिक आहार
तामसिक आहार – वर्तमान में सम्पूर्ण विश्व के वैज्ञानिक मांसाहार के कोरोना संक्रमण पर प्रभाव के बारे में बोलने से बिल्कुल बच रहे हैं, लेकिन कुछ तथ्य हैं जो इस ओर संकेत करते हैं कि मांसाहारी इससे अधिक प्रभावित होते हैं।
पूरी दुनिया के लोग मांसाहार की जगह शाकाहार की ओर अधिक बढ़ रहे हैं। भारतीय संस्कृति और जीवन शैली की ओर दुनिया का रूझान बढ़ा है। ऐसे में वैज्ञानिक रूप से ठोस उत्तर की आवश्यकता महसूस होने लगी है कि क्या तामसिक आहार कोरोना का खतरा बढ़ाता है।
हमारी भारतीय संस्कृति संस्कारों से ओतप्रोत है। यहां एक दूसरे के प्रति सम्मान की संस्कृति है। जहाँ व्यक्ति विशेष के सम्मान के साथ जीव-जन्तु, पशु-पक्षी का भी सम्मान किया जाता रहा है। ‘‘अहिंसा परमोधर्म’’ हिंसा को सबसे बड़ा पाप माना जाता है।
कई संस्थाएं जीव रक्षा के लिए कार्य करती है। कहते हैं कि विश्व में सबसे कम मांसाहारी भोजन करने वाले भारत में हैं, इसलिए अन्य देशों की तुलना में भारत कोरोना जैसे वायरसों से सबसे कम संक्रमित हुआ है।
इसी का नतीजा है कि दुनिया में भारत का अनुसरण करके मांसाहार छोड़ने वालों की संख्या भी बढ़ी है। तामसिक भोजन की श्रेणी में आने वाले आहार (मांसाहार) का कोरोना वायरस पर प्रभाव हेतु चीन भी दावा कर रहा है कि कोरोना वायरस चमगादड़ का सूप पीने से इन्सानों में पहुंचा है। इसी से हमें समझ लेना चाहिये कि मांसाहारी होना कितना घातक है।
विकृतियां पैदा करता है मांसाहार:
हमारे पाचन तंत्र में कई तरह के बैक्टीरिया होते हैं, जो खाना पचानें एवं ऊर्जा के स्तर को बढ़ाने और रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने में सहायक सिद्ध होते हैं। मांसाहारी भोजन को पचने में अत्यधिक समय लगता है जिससे कई जटिल बीमारियों को पनपने का अवसर मिलता है और कोरोना जैसे वायरस भी अपने पांव पसार लेते हैं।
यह भी कहा जाता है कि जब किसी जानवर को मारा जाता है तो वह भयभीत होता है और इससे उसके शरीर में भयंकर जहरीले तत्व उत्पन्न होते हैं और वो जहरीले तत्व मांसाहार के रूप में खाने वाले व्यक्ति के शरीर में पहुंच जाते हैं जिससे कोरोना जैसे कई वायरस व विकृतियां पैदा होती है।
और यह भी कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इससे भी भयंकर महामारी उत्पन्न हो सकती हैं। मांसाहार से जो तामसिक वृत्तियां पैदा होती हैं वो इंसान को हिंसक भावनाओं से ग्रसित कर देती है जबकि शाकाहारी व्यक्ति में दया, करूणा, प्रेम, ममत्व एवं वात्सल्य का भाव बना रहता है।
सुखी जीवन का है ये आधार:
अगर शाकाहार को बढ़ावा मिले जो धरती को और ज्यादा स्वस्थ और ज्यादा दौलतमंद बनाया जा सकता है। शाकाहार ही हमारा उत्तम आहार है। इन्सान का पेट कोई श्मशान नहीं जहां मृत पशुओं को डाला जाए। जो लोग मांसाहार में अधिक प्रोटीन का दावा करते हैं उनको बता देती हूं कि उससे कई अधिक प्रोटीन और विटामिन दालों में मिलता है जो पचता भी जल्दी है।
शाकाहारी भोजन के लिए बताया जाता है कि 4 घंटे पहले बना भोजन स्वास्थ्य की दृष्टि से उपयुक्त नहीं होता है तो हम समझ सकते हैं कि मांसाहारी भोजन कितना घातक हो सकता है। अत: यही कहुंगी कि अपनी जिव्हा के स्वाद के लिए किसी निरीह पशु की हत्या सरासर पाप है।
संत शिरोमणी तुलसीदास ने कहा है कि कोई व्यक्ति अगर राई के दानें का बारहवां हिस्सा भी मांसाहार खाता है तो वह नरक चोरासी में घूमता रहता है, उसे मोक्ष नहीं मिलता है और वह जीते जी या मरकर नरक ही भोगता है। इसलिए मांसाहार के लिए स्वतंत्र है तो जीव हत्या का कर्म भोगने के लिए आप परतंत्र हैं।
शाकाहारी भोजन = सकारात्मक व्यक्तित्व + शांति पूर्वक जीवन। योग, प्राणायाम, मेडिटेशन का अभ्यास तामसिक प्रवृत्तियों से मुक्त होने में सहायक हैं।
-उर्मिला तापड़िया, पाली मारवाड़